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प्रेतशिला की चढ़ाई आसान बनाने वालों की पालकी Lockdown, दाने-दाने को मोहताज

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Published : Sep 5, 2020, 10:52 PM IST

प्रेतशिला पिंडवेदी के लिए 676 सीढ़ियां चढ़ने के लिए पिंडदानी पालकी का इस्तेमाल करते थे. पालकी मजदूर इसी से अपनी जीविका चलाते थे. लेकिन कोरोना ने उनकी इस रोजी रोटी को छीन लिया है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

गया से सुजीत पांडेय की रिपोर्ट
गया से सुजीत पांडेय की रिपोर्ट

गया: मोक्ष की नगरी गयाजी में वीरानी छायी हुई है. कोरोना के चलते विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला इस बार रद्द कर दिया गया है. लिहाजा, पिंडदानी गया जी नहीं आये हैं. ऐसे में पालकी मजदूरों के सामने आर्थिक संकट आ गया है.

दरअसल, पितृपक्ष में प्रेतशिला पर्वत के शिखर पर स्थित वेदी पर पिंडदान करने का बड़ा महत्व रहता है. पितृपक्ष की अवधि में प्रेतशिला पर लाखों पिंडदानी पिंडदान करते हैं. प्रेतशिला के शिखर पर पहुंचना इतना आसान नहीं है. यहां जाने 676 सीढ़ी चढ़नी पड़ती है. इतनी लंबी चढ़ाई के लिए यहां पालकी की सेवा उपलब्ध है. इन्ही पालकी मजदूरों को आज दाने-दाने के लिए मुहताज होना पड़ रहा है.

गया से सुजीत पांडेय की रिपोर्ट

एक दिन में 2 हजार की कमाई, अब...
पितृपक्ष के दौरान प्रेतशिला के नीचे सैकड़ों पालकी रहा करती थी. लेकिन इस वर्ष लॉकडाउन के वजह से एक दो पालकी दिख रही हैं. मध्यप्रदेश से आये दंपति को प्रेतशिला के शिखर पर ले जाने वाले पालकी मजदूर बिखु मांझी ने बताया दो दिन में एक पिंडदानी मिला है. पहले हम लोग हर दिन 2 हजार कमा लेते थे.

आ रहे एक-दो पिंडदानी
आ रहे एक-दो पिंडदानी

बिखु कहते हैं कि पितृपक्ष की कमाई से कोई बेटी की शादी करता था या बहुत लोग नई झोपड़ी बनाते थे.

यही है रोजी रोटी का सहारा
यही है रोजी रोटी का सहारा

भूतों का पहाड़: यहां पिंडदान करने से प्रेतयोनि के पितरों को मिलती है मुक्ति

वहीं, संजय मांझी कहते हैं कि पितृपक्ष में 300 पालकी चलती थीं. इससे एक हजार परिवार का पालन पोषण होता था. इस वर्ष पिंडदान बन्द कर दिया गया है, तो हमलोग राजमिस्त्री का काम करके पेट पाल रहे हैं. हम तो सरकार से गुहार लगाए गए कि इस पितृपक्ष रोक लगा दी गई है तो कोई बात नहीं. लेकिन दिसम्बर में आने वाले मिनी पितृपक्ष पर रोक ना लगाई जाये.

एक कोने में पड़ी पालकी
एक कोने में पड़ी पालकी

कुल मिलाकर, पालकी मजदूर पितृपक्ष को अपना त्योहार मानते थे. लगने वाला मेले में ये सभी मेहनत कर रुपया जोड़ सालभर उसी से गुजर बसर करते थे. लेकिन कोरोना के ग्रहण ने उनके सभी अरमानों पर पानी फेर दिया है.

गया: मोक्ष की नगरी गयाजी में वीरानी छायी हुई है. कोरोना के चलते विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला इस बार रद्द कर दिया गया है. लिहाजा, पिंडदानी गया जी नहीं आये हैं. ऐसे में पालकी मजदूरों के सामने आर्थिक संकट आ गया है.

दरअसल, पितृपक्ष में प्रेतशिला पर्वत के शिखर पर स्थित वेदी पर पिंडदान करने का बड़ा महत्व रहता है. पितृपक्ष की अवधि में प्रेतशिला पर लाखों पिंडदानी पिंडदान करते हैं. प्रेतशिला के शिखर पर पहुंचना इतना आसान नहीं है. यहां जाने 676 सीढ़ी चढ़नी पड़ती है. इतनी लंबी चढ़ाई के लिए यहां पालकी की सेवा उपलब्ध है. इन्ही पालकी मजदूरों को आज दाने-दाने के लिए मुहताज होना पड़ रहा है.

गया से सुजीत पांडेय की रिपोर्ट

एक दिन में 2 हजार की कमाई, अब...
पितृपक्ष के दौरान प्रेतशिला के नीचे सैकड़ों पालकी रहा करती थी. लेकिन इस वर्ष लॉकडाउन के वजह से एक दो पालकी दिख रही हैं. मध्यप्रदेश से आये दंपति को प्रेतशिला के शिखर पर ले जाने वाले पालकी मजदूर बिखु मांझी ने बताया दो दिन में एक पिंडदानी मिला है. पहले हम लोग हर दिन 2 हजार कमा लेते थे.

आ रहे एक-दो पिंडदानी
आ रहे एक-दो पिंडदानी

बिखु कहते हैं कि पितृपक्ष की कमाई से कोई बेटी की शादी करता था या बहुत लोग नई झोपड़ी बनाते थे.

यही है रोजी रोटी का सहारा
यही है रोजी रोटी का सहारा

भूतों का पहाड़: यहां पिंडदान करने से प्रेतयोनि के पितरों को मिलती है मुक्ति

वहीं, संजय मांझी कहते हैं कि पितृपक्ष में 300 पालकी चलती थीं. इससे एक हजार परिवार का पालन पोषण होता था. इस वर्ष पिंडदान बन्द कर दिया गया है, तो हमलोग राजमिस्त्री का काम करके पेट पाल रहे हैं. हम तो सरकार से गुहार लगाए गए कि इस पितृपक्ष रोक लगा दी गई है तो कोई बात नहीं. लेकिन दिसम्बर में आने वाले मिनी पितृपक्ष पर रोक ना लगाई जाये.

एक कोने में पड़ी पालकी
एक कोने में पड़ी पालकी

कुल मिलाकर, पालकी मजदूर पितृपक्ष को अपना त्योहार मानते थे. लगने वाला मेले में ये सभी मेहनत कर रुपया जोड़ सालभर उसी से गुजर बसर करते थे. लेकिन कोरोना के ग्रहण ने उनके सभी अरमानों पर पानी फेर दिया है.

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