ETV Bharat / state

बिहार के दूसरे 'दशरथ मांझी' बने लौंगी भुईयां, 30 साल में पहाड़ काटकर बना डाली 5 किमी लंबी नहर

लौंगी भुईयां ने पानी को अपने गांव तक लाने के लिए एक डीपीआर यानी नक्शा तैयार किया. उसी नक्शे के अनुसार दिन में जब भी समय मिलता था. तो वह नहर बनाने में लग जाते. ऐसा करते-करते 30 साल बाद उनकी मेहनत रंग लाई और नहर पूरी तरह तैयार हो गई.

loungi bhuiyan
loungi bhuiyan
author img

By

Published : Sep 11, 2020, 8:19 PM IST

Updated : Sep 13, 2020, 4:45 PM IST

गया: बिहार के गया जिले के 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी को कौन नहीं जानता. वही दशरथ मांझी, जिनके नाम पर फिल्म बनी, जिनकी मेहनत का गवाह गया के गहलौर गांव स्थित दो हिस्सों में बंटा पहाड़ है. ऐसे में बुद्ध की पावन धरती गया से अब ऐसी एक और जीवंत कहानी सामने आई है. तीन दशक की मेहनत की ये कहानी लौंगी भुईयां नाम के शख्स की है, जिसने पहाड़ खोद कर अपने गांव तक नहर ला दी.

गया के दशरथ मांझी ने 22 वर्षों की कड़ी मेहनत कर जहां पहाड़ तोड़ रास्ता बना दिया. वहीं, इमामगंज प्रखंड के रहने वाले लौंगी भुईयां ने 30 वर्षों की कड़ी मेहनत कर नहर खोद दी. लौंगी ने ये कदम सिर्फ इसलिए उठाया, ताकि उनके गांव की बंजर भूमि खेती के लायक हो जाए. खेतों में फसलें लहलहाने लगे.

लौंगी भुईयां
लौंगी भुईयां, किसान

गया जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर बांकेबाजार प्रखंड के लुटुआ पंचायत के जंगल में बसा कोठीलवा गांव के रहने वाले लौंगी भुईयां ने पहाड़ के पानी को संचय कर गांव तक लाने की ठान ली. वो प्रतिदिन घर से जंगल में बकरी चराने जाते थे. उसी दरम्यान वो पहाड़ तोड़ नहर बनाने का काम करते रहे.

लौंगी भुईयां की मेहनत लाई रंग
लौंगी के गांव के लोग सिंचाई के अभाव में सिर्फ मक्का और चना की खेती करते थे. इन दो फसलों से ग्रामीणों का भरण-पोषण नहीं हो पाता था. ऐसे में गांव से पलायन होने लगा. रोजगार की तलाश में गांव के अधिकतर लोग दूसरे प्रदेशों में काम करने चले गए. यह बात लौंगी भुईयां को घर कर गई. एक रोज लौंगी भुईयां बकरी चराने जंगल गए और उन्हें ख्याल आया कि अगर गांव तक पानी आ जाए, तो लोगों का पलायन रुक जाएगा. खेतों में सभी फसलों की पैदावार होने लगेगी. इसके बाद लौंगी पूरा जंगल घूम कर आए और वहां उन्होंने देखा कि बंगेठा पहाड़ पर बारिश का पानी रुक जाता था.

लौंगी भुईयां
लौंगी भुईयां

उन्होंने पानी को अपने गांव तक लाने के लिए एक नक्शा तैयार किया. उसी नक्शे के अनुसार दिन में जब भी समय मिलता, लौंगी नहर बनाने में लग जाते. 30 साल बाद उनकी मेहनत रंग लाई और नहर पूरी तरह तैयार हो गई. बारिश के पानी को गांव में बने तालाब में स्टोर कर दिया गया. जहां से लोग सिंचाई के लिए पानी का उपयोग कर रहे हैं. जानकारी अनुसार, गांव के 3 हजार से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल रहा है.

'लोग कहते थे पागल'
लौंगी भुईयां ने बताया कि 'उनके परिवार के लोग उनको काम करने से मना करते थे. गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे. लेकिन आज, जब नहर का काम पूरा हुआ और उसमें पानी आया. तो लोग प्रसंशा कर रहे हैं. लौंगी ने बताया कि सरकार अगर, हमें ट्रैक्टर देती, तो वो बंजर पड़ी जमीन को खेती लायक, उपजाऊ बना सकते हैं.

देखें रिपोर्ट

'ज्यादातर जंगलों में दिखाई देते थे लौंगी'
ग्रामीणों ने कहते हैं कि जब से होश संभाला है, तब से लौंगी भुईयां को जंगल में ज्यादा देखते थे कि वे कुदाल से नहर बना रहे हैं. आज उसी नहर से पानी तालाब तक पहुंचा है और खेत को उपजाऊ बनाने का कदम उठाया गया है. कभी नक्सल प्रभावित रहे इस इलाके में जल संकट की स्थिति आज भी है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि लौंगी भुईयां के इस साहसिक कदम के बाद उन्हें सम्मान जरूर मिले. पत्थरों में अपनी जिंदगी के 30 साल देने वाले लौंगी भुईयां को मूलभूत सुविधाएं दी जाएं. उन्हें पेंशन, आवास योजना का लाभ मिल सके ताकि, घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हो.

House of loungi bhuiyan
लौंगी भुईयां का घर

प्रखंड विकास अधिकारी जय किशन ने कहते हैं, 'जल संरक्षण और जल संचय के लिए राज्य सरकार भी कार्य कर रही है. ऐसे में लौंगी भुईयां के जज्बे को सलाम है, जिन्होंने 5 फिट चौड़ी और 3 फिट गहरी नहर का निर्माण कर दिया. इससे बारिश के जल को संचय कर सिंचाई के लिए उपयुक्त बनाया है.'

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं
कोठीलवा गांव निवासी लौंगी भुईयां अपने बेटे, बहू और पत्नी के साथ मिट्टी के घर में रहते है. लौंगी का कहना है कि सरकार कच्ची नहर को पक्का कर दे. उसमें सालभर पानी रहने की व्यवस्था बना दे. बस यही उनकी मेहनत को सफल करेगा. वहीं, ग्रामीणों ने सरकार से लौंगी भुईयां को आर्थिक सहायता देने की मांग की है.

यूं तो बिहार से अक्सर ऐसी खबर आती हैं, जब सरकारी उदासीनता के चलते लोग खुद कदम उठाने को विवश दिखते हैं. बाढ़ के समय खुद से पुल का निर्माण कर देते हैं, तो वहीं सड़क की मरम्मती कर लेते हैं. ऐसे में लौंगी भुईयां का उठाया गया कदम हुक्मरानों को आईना दिखाने के लिए काफी है कि उनकी तमाम योजनाएं लांच तो हुईं हैं. लेकिन ये पूरी तरह जमीन ना तो जमीन पर उतरी हैं और निचले स्तर तक भी नहीं पहुंची हैं. बड़े पैमाने पर पलायन का दंश झेल रहा बिहार इसको रोकने के लिए लौंगी भुईयां का सरोकार जरूर करेगा.

गया: बिहार के गया जिले के 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी को कौन नहीं जानता. वही दशरथ मांझी, जिनके नाम पर फिल्म बनी, जिनकी मेहनत का गवाह गया के गहलौर गांव स्थित दो हिस्सों में बंटा पहाड़ है. ऐसे में बुद्ध की पावन धरती गया से अब ऐसी एक और जीवंत कहानी सामने आई है. तीन दशक की मेहनत की ये कहानी लौंगी भुईयां नाम के शख्स की है, जिसने पहाड़ खोद कर अपने गांव तक नहर ला दी.

गया के दशरथ मांझी ने 22 वर्षों की कड़ी मेहनत कर जहां पहाड़ तोड़ रास्ता बना दिया. वहीं, इमामगंज प्रखंड के रहने वाले लौंगी भुईयां ने 30 वर्षों की कड़ी मेहनत कर नहर खोद दी. लौंगी ने ये कदम सिर्फ इसलिए उठाया, ताकि उनके गांव की बंजर भूमि खेती के लायक हो जाए. खेतों में फसलें लहलहाने लगे.

लौंगी भुईयां
लौंगी भुईयां, किसान

गया जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर बांकेबाजार प्रखंड के लुटुआ पंचायत के जंगल में बसा कोठीलवा गांव के रहने वाले लौंगी भुईयां ने पहाड़ के पानी को संचय कर गांव तक लाने की ठान ली. वो प्रतिदिन घर से जंगल में बकरी चराने जाते थे. उसी दरम्यान वो पहाड़ तोड़ नहर बनाने का काम करते रहे.

लौंगी भुईयां की मेहनत लाई रंग
लौंगी के गांव के लोग सिंचाई के अभाव में सिर्फ मक्का और चना की खेती करते थे. इन दो फसलों से ग्रामीणों का भरण-पोषण नहीं हो पाता था. ऐसे में गांव से पलायन होने लगा. रोजगार की तलाश में गांव के अधिकतर लोग दूसरे प्रदेशों में काम करने चले गए. यह बात लौंगी भुईयां को घर कर गई. एक रोज लौंगी भुईयां बकरी चराने जंगल गए और उन्हें ख्याल आया कि अगर गांव तक पानी आ जाए, तो लोगों का पलायन रुक जाएगा. खेतों में सभी फसलों की पैदावार होने लगेगी. इसके बाद लौंगी पूरा जंगल घूम कर आए और वहां उन्होंने देखा कि बंगेठा पहाड़ पर बारिश का पानी रुक जाता था.

लौंगी भुईयां
लौंगी भुईयां

उन्होंने पानी को अपने गांव तक लाने के लिए एक नक्शा तैयार किया. उसी नक्शे के अनुसार दिन में जब भी समय मिलता, लौंगी नहर बनाने में लग जाते. 30 साल बाद उनकी मेहनत रंग लाई और नहर पूरी तरह तैयार हो गई. बारिश के पानी को गांव में बने तालाब में स्टोर कर दिया गया. जहां से लोग सिंचाई के लिए पानी का उपयोग कर रहे हैं. जानकारी अनुसार, गांव के 3 हजार से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल रहा है.

'लोग कहते थे पागल'
लौंगी भुईयां ने बताया कि 'उनके परिवार के लोग उनको काम करने से मना करते थे. गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे. लेकिन आज, जब नहर का काम पूरा हुआ और उसमें पानी आया. तो लोग प्रसंशा कर रहे हैं. लौंगी ने बताया कि सरकार अगर, हमें ट्रैक्टर देती, तो वो बंजर पड़ी जमीन को खेती लायक, उपजाऊ बना सकते हैं.

देखें रिपोर्ट

'ज्यादातर जंगलों में दिखाई देते थे लौंगी'
ग्रामीणों ने कहते हैं कि जब से होश संभाला है, तब से लौंगी भुईयां को जंगल में ज्यादा देखते थे कि वे कुदाल से नहर बना रहे हैं. आज उसी नहर से पानी तालाब तक पहुंचा है और खेत को उपजाऊ बनाने का कदम उठाया गया है. कभी नक्सल प्रभावित रहे इस इलाके में जल संकट की स्थिति आज भी है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि लौंगी भुईयां के इस साहसिक कदम के बाद उन्हें सम्मान जरूर मिले. पत्थरों में अपनी जिंदगी के 30 साल देने वाले लौंगी भुईयां को मूलभूत सुविधाएं दी जाएं. उन्हें पेंशन, आवास योजना का लाभ मिल सके ताकि, घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हो.

House of loungi bhuiyan
लौंगी भुईयां का घर

प्रखंड विकास अधिकारी जय किशन ने कहते हैं, 'जल संरक्षण और जल संचय के लिए राज्य सरकार भी कार्य कर रही है. ऐसे में लौंगी भुईयां के जज्बे को सलाम है, जिन्होंने 5 फिट चौड़ी और 3 फिट गहरी नहर का निर्माण कर दिया. इससे बारिश के जल को संचय कर सिंचाई के लिए उपयुक्त बनाया है.'

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं
कोठीलवा गांव निवासी लौंगी भुईयां अपने बेटे, बहू और पत्नी के साथ मिट्टी के घर में रहते है. लौंगी का कहना है कि सरकार कच्ची नहर को पक्का कर दे. उसमें सालभर पानी रहने की व्यवस्था बना दे. बस यही उनकी मेहनत को सफल करेगा. वहीं, ग्रामीणों ने सरकार से लौंगी भुईयां को आर्थिक सहायता देने की मांग की है.

यूं तो बिहार से अक्सर ऐसी खबर आती हैं, जब सरकारी उदासीनता के चलते लोग खुद कदम उठाने को विवश दिखते हैं. बाढ़ के समय खुद से पुल का निर्माण कर देते हैं, तो वहीं सड़क की मरम्मती कर लेते हैं. ऐसे में लौंगी भुईयां का उठाया गया कदम हुक्मरानों को आईना दिखाने के लिए काफी है कि उनकी तमाम योजनाएं लांच तो हुईं हैं. लेकिन ये पूरी तरह जमीन ना तो जमीन पर उतरी हैं और निचले स्तर तक भी नहीं पहुंची हैं. बड़े पैमाने पर पलायन का दंश झेल रहा बिहार इसको रोकने के लिए लौंगी भुईयां का सरोकार जरूर करेगा.

Last Updated : Sep 13, 2020, 4:45 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.