गया:बिहार में जापानी बुखार यानी जेई-एईएस (JE-AES) के मरीज सबसे ज्यादा मुजफ्फरपुर में मिलते हैं. उसके बाद इस बीमारी का सबसे बड़ा क्लस्टर (Cluster) गया (AES in anmmch gaya) जिला है. ऐसे में एईएस (जेई) बीमारी से निपटने के लिए तैयारियों का दावा किया जा जाता है. लेकिन सच्चाई ये है कि इस खतरनाक बीमारी से निपटने के लिए मगध के सबसे बड़े हॉस्पिटल मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल ( Anugrah Narayan Magadh Medical College Hospital) में पुख्ता इंतजाम नहीं हैं.
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JE- AES से कैसे निपटेगा मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल?: जांच के लिए मार्कल वायरल मशीन सबसे महत्वपूर्ण है लेकिन अस्पताल में यह मशीन उपलब्ध ही नहीं है. आज भी पटना के भरोसे मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल है. एईएस (जेई) जैसी घातक बीमारी के दस्तक देने का समय फिर से आ चुका है. गर्मी के सीजन के शुरू होते ही यह बीमारी कहर बरपाना शुरू कर देती है. लेकिन इसके बावजूद गया में पुख्ता तैयारी नहीं दिख रही है. एक ओर मेडिकल प्रशासन का दावा है कि एईएस से निपटने के लिए मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पुख्ता तैयारियां हैं वहीं दूसरी ओर इलाज में सबसे महत्वपूर्ण मार्कल वायरल की मशीन ही यहां उपलब्ध नहीं है.
मार्कल वायरल मशीन से ही होती है 6 तरह की जांच: एईएस के इलाज में मार्कल वायरल मशीन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में होती है. इससे 6 से 7 तरह की जांच होती है. लेकिन मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में यह महत्वपूर्ण जांच मशीन ही उपलब्ध नहीं है. इसके कारण मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाजरत बच्चों के सैंपल जांच के लिए पटना भेजा जाता है. एक ओर बच्चों की जान जाने का खतरा बना रहता है तो दूसरी ओर पटना से आने वाले जांच रिपोर्ट पर मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टर निर्भर रहते हैं. जांच में विलंब के कारण बच्चे दम भी तोड़ देते हैं. यही वजह है कि अब तक कई बच्चों की जान मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराए जाने के बावजूद चली गई है.
अस्पताल अधीक्षक का पुख्ता इंतजाम होने का दावा: इस संबंध में मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ प्रदीप कुमार अग्रवाल दावा करते हैं कि यहां पूरी तैयारियां कर ली गई है. एईएस का यही सीजन होता है, जो किसी भी जिले में 15 दिन आगे तो किसी जिले में 15 दिन पीछे आता है. एईएस बीमारी काफी गंभीर होती है, जिसे लेकर मगध मेडिकल को पूरा तैयार रखा गया है. 30 बेड सुरक्षित रखे गए हैं. सिस्टर और डॉक्टर आदि को अभी से ही तैयार रखा गया है. दवाइयां भी पर्याप्त मात्रा में है.
"कुछ कमियां है. मेडिकल में मार्कर वायरल मशीन उपलब्ध नहीं है. इससे मरीजों के 6-7 तरह के जांच किए जाते हैं. प्रयास किया गया है कि यह मशीन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हो, जिससे किसी मरीज की मौत या उसकी स्थिति गंभीर नहीं हो. एईएस से निपटने के लिए मेडिकल को पूरी तरह से तैयार रखा गया है."- डॉ प्रदीप कुमार अग्रवाल,अधीक्षक,मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल
जा चुकी है कई बच्चों की जान: गौरतलब हो कि गया जिले में एईएस बीमारी के कारण कई बच्चों की जान जा चुकी है. जिला में पूर्व में एईएस (चमकी बुखार) के मामले देखने को मिल चुके हैं. वर्ष 2017 में एईएस के 38 मामले आये थे, जिसमें पांच मौत हुई थी. वहीं वर्ष 2018 में दो मामले आये और इस वर्ष कोई मौत नहीं हुई. वहीं वर्ष 2019 में 54 एईएस के मामले आये, जिसमें 13 मौत के मामले दर्ज किये गये. 2020 में कोरोना काल के कारण कोई मरीज चिन्हित किया जा सका. 2021 में कोरोना काल में भी सिर्फ एक ही मरीज चिन्हित किया जा सका, जिसकी मौत हो गई थी. 6 माह से 15 वर्ष के बच्चे आमतौर पर इस बीमारी की चपेट में आते हैं.
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