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जिसने देश के लिए कारगिल में दी शहादत, सालों बाद भी नहीं बना उसका स्मारक

आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है. लेकिन इस दिवस को विजय दिवस बनाने वाले शहीद मिथलेश पाठक के नाम का अबतक स्मारक नहीं बन पाया है. सरकारी मुलाजिमों ने उस वक्त घोषणाओं की झड़ी लगा दी की बहुत सारी घोषणाएं तो हुई लेकिन सबकुछ अधूरा है.

शहीद मिथिलेश पाठक
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Published : Jul 26, 2019, 10:47 PM IST

गया: आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है. कारगिल के युद्ध में गया के टिकारी के दो वीर सपूतों ने देश की रक्षा करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी. गया के मिथलेश पाठक भी उनमें से एक थे. उन्होंने भी देश के नाम अपना जीवन कर दिया.

शहादत का ऋणी है देश
मिथलेश पाठक की शहादत का ऋणी पूरा देश है. लेकिन इस वीर बेटे की वीरता को याद रखा जाए इसके लिए अबतक कोई स्मारक नहीं बना है. 19 साल बीत जाने के बाद भी उनके नाम का कोई स्मारक नहीं है.

शहीद मिथलेश पाठक
नहीं मिली सच्ची श्रद्धांजलिएक वीर योद्धा को सच्ची श्रद्धांजलि तब मिलती है. जब उसके शहादत को याद रखा जाता है. लेकिन आज उनके शहादत को याद करने वाला सरकार, प्रशासन और अवाम कोई नहीं है. गया के टिकारी के वीर सपूत मिथलेश पाठक का परिवार अभी भी उनकी सच्ची श्रद्धांजलि की राह देख रहा है.
गया
शहीद के परिजन
वादा भूल गई सरकारशहीद की चिता की आग जबतक जल रही थी तबतक सियासतदानों ने खूब घोषणाएं कीं. सरकार का हर मुलाजिम कुछ न कुछ करने की बात कही. लेकिन आज किसी को कोई वादा याद नहीं. मिथलेश पाठक के बड़े भाई चंद्र विलास पाठक बताते हैं कि मिथलेश हमारा मंझला भाई था. घोषणा तो बहुत हुई लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला. मुझे अब कुछ नहीं चाहिए. बस एक शहीद-द्वार और शहीद स्मारक बना दिया जाए जिससे मेरे भाई की वीर गाथा अमर रहे.

गया: आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है. कारगिल के युद्ध में गया के टिकारी के दो वीर सपूतों ने देश की रक्षा करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी. गया के मिथलेश पाठक भी उनमें से एक थे. उन्होंने भी देश के नाम अपना जीवन कर दिया.

शहादत का ऋणी है देश
मिथलेश पाठक की शहादत का ऋणी पूरा देश है. लेकिन इस वीर बेटे की वीरता को याद रखा जाए इसके लिए अबतक कोई स्मारक नहीं बना है. 19 साल बीत जाने के बाद भी उनके नाम का कोई स्मारक नहीं है.

शहीद मिथलेश पाठक
नहीं मिली सच्ची श्रद्धांजलिएक वीर योद्धा को सच्ची श्रद्धांजलि तब मिलती है. जब उसके शहादत को याद रखा जाता है. लेकिन आज उनके शहादत को याद करने वाला सरकार, प्रशासन और अवाम कोई नहीं है. गया के टिकारी के वीर सपूत मिथलेश पाठक का परिवार अभी भी उनकी सच्ची श्रद्धांजलि की राह देख रहा है.
गया
शहीद के परिजन
वादा भूल गई सरकारशहीद की चिता की आग जबतक जल रही थी तबतक सियासतदानों ने खूब घोषणाएं कीं. सरकार का हर मुलाजिम कुछ न कुछ करने की बात कही. लेकिन आज किसी को कोई वादा याद नहीं. मिथलेश पाठक के बड़े भाई चंद्र विलास पाठक बताते हैं कि मिथलेश हमारा मंझला भाई था. घोषणा तो बहुत हुई लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला. मुझे अब कुछ नहीं चाहिए. बस एक शहीद-द्वार और शहीद स्मारक बना दिया जाए जिससे मेरे भाई की वीर गाथा अमर रहे.
Intro:आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है कारगिल के युद्ध में गया के टिकारी के दो लाल ने भारत मां की रक्षा करने के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी। अफसोस इन दो वीरों के शहादत आज कोई नही याद कर रहा है। 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी एक स्मारक तक नहीं बन सका शहीद परिजनों का कहना है कि जब तक जीता जलता रहा तब तक घोषणा होते रहा। जैसे ही चिता का आग ठंडी हुई घोषणाएं भी ठंडी बस्ते में बन्द हो गयी।



Body:सन 1999 में कारगिल युद्ध में आज ही कि दिन भारत विजय हुआ था इस विजय की वीर गाथा में शहीद होने वाले में दो वीर बिहार के गया जिले के टेकारी से आते हैं यहां के दो बेटों ने देश के खातिर खुद को कुर्बान कर दिया था,लेकिन सरकार के वादे- घोषणाए 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी शहीद के गांव और उनके परिवार तक नहीं पहुंच सका।

आज ईटीवी भारत कारगिल विजय दिवस पर कारगिल में शहीद हुए गया के मिथलेश पाठक के घर पहुँचा। शहीद मिथिलेश पाठक का घर गया-टेकारी रोड स्थित धर्मशाला गांव में है इनकी शहादत 5 सितंबर 1999 को हुआ था।शहादत में सरकार द्वारा कई घोषणाएं की गई थी लेकिन आज तक घोषणा ही रह गया। शहीद के सम्मान में सरकार नहीं स्मारक तक नहीं बनवाया। आलम ये है आज उनके शहादत को याद करने वाला सरकार, प्रशासन और अवाम कोई नही है।

मिथिलेश पाठक के बड़े भाई चंद्र विलास पाठक बताते हैं मिथलेश हमारा मंझला भाई था। उसकी शहादत की सूचना आया, पिता जी जिंदा थे। घर मे कोहराम मच गया। शव को जहानाबाद से लेकर अपने गाँव धर्मशाला आये। धर्मशाला गाँव मे उनका अंतिम संस्कार किया गया। लाखो हुजूम जुटा था क्या नेता क्या संतरी सब यहां आए थे। राज्य सरकार के द्वारा 10 लाख देने की।घोषणा थी जो आज तक नही मिला। मुझे अब कुछ नही चाहिए घोषणा तो बहुत हुआ था। बस एक शहीद द्वार और शहीद स्मारक बना दिया जाए जिससे मेरा भाई वीर गाथा अमर रहे।

शहीद मिथलेश की भतीजी बताती है मैं अपना चाचा का बहादुरी को सुनकर गर्व महसूस करती हूं। मेरे परिवार वाले बताते हैं चाचा को एक गोली लगने के बाद भी दुश्मनों से लड़ते रहे और कई को मार गिराया था तब जाकर शहीद हुए थे। आज उनकी शहादत कोई याद नही करने वाला है। सब भूल रहे हैं। मैं चाहती हूं कम से कम एक स्मारक बना देना चाहिए।

ग्रामीण हरिहर ठाकुर बताते हैं उनके अंतिम संस्कार के बाद उनके बुझी चिता के पास एक पत्थर रखकर और उनकी तस्वीर लगाकर अस्थायी स्मारक बनाया था इस उम्मीद के साथ घोषणा हुआ है तो स्थायी तौर जल्द बनकर तैयार हो जाएगा। पर 20 वर्ष बीत गया अब तक स्मारक के नाम पर एक ईंट नही लगा।


Conclusion:सामाजिक कार्यकर्ता रामानन्द शर्मा बताते हैं गांव में स्मारक नहीं बना इसका तो दुख है इससे सबसे बड़ा दुख है कि पटना के कारगिल चौक पर बनाया गया शहीद स्मारक में टिकारी प्रखंड के दोनों शहीदों का नाम तक दर्ज नहीं हैं।
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