गया: आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है. कारगिल के युद्ध में गया के टिकारी के दो वीर सपूतों ने देश की रक्षा करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी. गया के मिथलेश पाठक भी उनमें से एक थे. उन्होंने भी देश के नाम अपना जीवन कर दिया.
शहादत का ऋणी है देश
मिथलेश पाठक की शहादत का ऋणी पूरा देश है. लेकिन इस वीर बेटे की वीरता को याद रखा जाए इसके लिए अबतक कोई स्मारक नहीं बना है. 19 साल बीत जाने के बाद भी उनके नाम का कोई स्मारक नहीं है.
नहीं मिली सच्ची श्रद्धांजलिएक वीर योद्धा को सच्ची श्रद्धांजलि तब मिलती है. जब उसके शहादत को याद रखा जाता है. लेकिन आज उनके शहादत को याद करने वाला सरकार, प्रशासन और अवाम कोई नहीं है. गया के टिकारी के वीर सपूत मिथलेश पाठक का परिवार अभी भी उनकी सच्ची श्रद्धांजलि की राह देख रहा है.
वादा भूल गई सरकारशहीद की चिता की आग जबतक जल रही थी तबतक सियासतदानों ने खूब घोषणाएं कीं. सरकार का हर मुलाजिम कुछ न कुछ करने की बात कही. लेकिन आज किसी को कोई वादा याद नहीं. मिथलेश पाठक के बड़े भाई चंद्र विलास पाठक बताते हैं कि मिथलेश हमारा मंझला भाई था. घोषणा तो बहुत हुई लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला. मुझे अब कुछ नहीं चाहिए. बस एक शहीद-द्वार और शहीद स्मारक बना दिया जाए जिससे मेरे भाई की वीर गाथा अमर रहे.