गया: पटना-गया-डोभी एनएच-83 पिछले पांच सालों में भी बन कर पूरा नहीं हो पाया है. सड़क की बदहाल स्थिति के कारण आए दिन यहां कोई न कोई दुर्घटना होती रहती है. पांच वर्षों में भी सड़क नहीं बन पाने का कारण यह है कि कभी सड़क बनाने वाली कंपनी भाग जाती है तो कभी जमीन अधिग्रहण का मामला आ जाता है. बता दें कि इस सड़क का प्रयोग रोज सैकड़ों विदेशी लोग, सरकार के मंत्री और हुक्मरान करते हैं, बावजूद किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि किसी दल ने इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है.
3 घंटे की दूरी बन गई 5-6 घंटे की
गया से पटना को जोड़ने वाली और गया को जीटी रोड से जोड़ने वाली एनएच-83 कब बनेगी इसकी सूचना किसी को नहीं है. जबकि गया एक पर्यटन स्थल है. बोधगया दर्शन को रोजाना सैकड़ों लोग आते हैं. हालात ऐसे हैं कि इस सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क है यह समझना मुश्किल है. जनता कहती है कि रोड से होकर पटना जाना किसी दुर्गम पहाड़ी इलाके की चढ़ाई से कम नहीं है. उनका कहना है कि यह सड़क जब एक लेन थी तब लोगों को पटना जाने में 3 घंटे लगते थे. अब उसी सड़क पर 5 से 6 घंटे लग रहे हैं. 127 किलोमीटर लंबी डोभी-गया-पटना एनएच-83 आज मौत की राह बन गई है.
कुछ दिनों पहले ही हुआ हादसा
2014 में एनडीए सरकार के आते ही एनएच-83 फोर लेन बनाने का कार्य शुरू हुआ था. कुछ दूर तक फोर लेन सड़क भी बन गई. लेकिन, इस कार्य पर ग्रहण लग गया और सड़क बनाने वाली कंपनी दिवालिया हो गई. वे सड़क बनाने का काम अधूरा छोड़कर चले गई. लोग कहते हैं कि सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं. डायवर्सन से लोगों को काफी दिक्कत होती है. अक्सर यहां दुर्घटनाएं होती रहती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि होली के एक दिन पहले इस सड़क पर दो लोगों की मौत हो गयी थी और 15 लोग घायल हो गए थे.
नई कंपनी को अबतक नहीं मिली निविदा
ज्ञात हो कि 1232 करोड़ से बनने वाली इस सड़क के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य भी अब तक पूरा नहीं हुआ है. साल 2014 में डोभी-गया-पटना के फोर लेन सड़क निर्माण के लिए निविदा के बाद साल 2015 में इसकी आधारशिला रखी गई थी. इसका जिम्मा आईएल एंड इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड को दिया गया. पिछले साल तक इसे पूरा कर देना था, लेकिन जो स्थिति है उससे इस साल भी काम होना मुश्किल लगता है. पिछली कंपनी ने काम छोड़ दिया और नए सिरे से निविदा निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई है. जो अब तक पूरी नहीं हुई है. उसी का परिणाम है कि निर्माण कार्य आधा-अधूरा पड़ा है.