गया: कोरोना काल में ऐसी घटनाएं सामने आ रहीं हैं, जिन्हें देख लगता है जैसे इंसानियत खत्म होती जा रही है. वहीं, महामारी के इस दौर में ऐसे लोग भी सामने आ रहे हैं जो अपने कर्म से इंसानियत की मिसाल पेश कर रहे हैं. गया के इमामगंज के रानीगंज के तेतरिया गांव में ऐसी ही घटना सामने आई.
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58 साल की महिला की मौत शुक्रवार को हो गई थी. महिला का शव करीब 4 घंटे तक गाड़ी में पड़ा रहा. महिला के पति और दो बेटों ने शव को कोरोना के डर से हाथ नहीं लगाया. गांव के मुस्लिम समाज के लोगों को जानकारी मिली तब कुछ लोग मदद के लिए आगे आए. शव को गाड़ी से उतारकर घर में रखा. शनिवार सुबह अंतिम संस्कार किया गया. मुस्लिमों ने शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए अर्थी बनाई और कंधा भी दिया.
कोरोना रिपोर्ट आई थी निगेटिव
मृतक महिला का नाम प्रभावती देवी था. वह दिग्विजय प्रसाद की पत्नी थी. प्रभावती काफी समय से बीमार थी. रानीगंज के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. शुक्रवार को उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो डॉक्टर ने कोरोना टेस्ट कराने को कहा. परिजन महिला को इमामगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए. कोरोना जांच में महिला की रिपोर्ट निगेटिव आई. इसके बाद परिजन उन्हें लेकर घर लौटने लगे. इसी दौरान रास्ते में उनकी मौत हो गई.
गाड़ी में पड़ा रहा शव
परिजनों को डर था कि मौत कोरोना संक्रमण के कारण हुई है. परिजन शव को हाथ नहीं लगा रहे थे. शव को गाड़ी पर ही छोड़ दिया गया था. रात 8 बजे तक शव उसी तरह गाड़ी में पड़ा रहा. जब मुस्लिम समाज के लोगों को इसकी जानकारी मिली तो वे परिवारवालों को दिलासा देने पहुंचे. शव को खुद गाड़ी से उतारा. शनिवार सुबह बांस काटकर अर्थी बनाई. यह सब देख उनके पीछे-पीछे मृतक के पति दिग्विजय प्रसाद, बेटे निर्णय कुमार और विकास कुमार आगे आए. इसके बाद पार्थिव शरीर को मृतका के दोनों बेटों और मुस्लिम समाज के लोगों ने कंधा देकर श्मशान घाट पहुंचाया.
कोरोना के चलते डर रहे थे लोग
"रात के आठ बजे हमलोगों को घटना की जानकारी मिली. उनकी मृत्यु शाम चार बजे हो गई थी. कोरोना के डर से कोई शव के पास नहीं जा रहा था. हमलोगों ने मदद की पेशकश की. परिजनों की सहमति के बाद शव को गाड़ी से निकाला. शनिवार सुबह मृतका के परिजन और हमलोग अंतिम संस्कार के लिए शव को नदी किनारे ले गए."- मो. कलमुदीन अंसारी
"परिजनों को कोई हौसला देने वाला नहीं था. उनलोगों को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अंतिम संस्कार होगा. कोरोना के डर से आसपास के लोग मदद के लिए नहीं आए थे. मैंने खुद बांस काटा, अर्थी बनाई और पार्थिक शरीर को कंधा देकर नदी के घाट तक ले गया." - मो. रफीक
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