गयाः सनातन पंचांग के अनुसार 20 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत (Pitrapaksha) होगी. पितृपक्ष में काफी संख्या में लोग पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान (Pinddan) करने गया आते हैं. शास्त्रों के अनुसार एक दिन का पिंडदान या 17 दिनों का पिंडदान अक्षयवट में ही करना होता है. लेकिन बुडको की लापरवाही के कारण पिंडदान करने पर संशय मंडरा रहा है.
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दरअसल, अगले तीन दिनों तक गया शहर में देश के कोने-कोने से अपने पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए काफी संख्या में पिंडदानी आएंगे. लेकिन अक्षयवट तक जाने का रास्ता बेहद खराब है. स्थानीय लोगों ने बताया कि बुडको ने पेय जलापूर्ति के लिए पिछले चार महीने से रास्ते को खोदकर छोड़ दिया है. बारिश होने के कारण पूरा रास्ता किचड़युक्त हो गया है.
जब अभी ही इस रास्ते से गुजरना मुश्किल है तो जब हजारों की संख्या में लोग पिंडदान करने के लिए कैसे जा पाएंगे. ईटीवी भारत को बुडको और नगरनिगम प्रशासन ने बताया कि पितृपक्ष शुरू होने से पहले सड़क का निर्माण संपन्न हो जाएगा.
"माड़नपुर से अक्षयवट और केंदुई से माड़नपुर तक जलापूर्ति के लिए पाइपलाइन बिछाया जा रहा था. पाइपलाइन बिछाने का काम पूरा हो चुका है. अब इन सड़कों का मरम्मत करने का काम शुरू किया जा रहा है. पितृपक्ष शुरू होने तक पोर्टबल सड़क बनाया जाएगा, उसके बाद स्थायी सड़क बना दिया जाएगा."- सावन कुमार, आयुक्त, गया नगर निगम
अक्षयवट पिंडवेदी के पंडा सुनील कुमार दुबहलिया बताते हैं कि पूरे देश मे पांच स्थानों पर अक्षयवट है. जिसमें से एक गयाजी में भी है. पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए विष्णुपद, फल्गु नदी के तट और अक्षयवट में पिंडदान करने का काफी महत्व है.
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इस अक्षयवट का संबंध माता सीता से भी है. कहा जाता है कि जब राम-लक्ष्मण और माता सीता गयाजी में पिंडदान करने आए थे उस वक्त एक ऐसी घटना घटित हुई कि भगवान राम भी उसपर भरोसा नही कर पाए. जब पिंडदान की सामग्री लाने दोनो भाई नगर में चले गए तो माता सीता फल्गु नदी के जल से अटखेलियां करने लगीं थीं.
इसी बीच अकाशवाणी हुई बेटी मुझे पिंड दे दो कहकर राजा दशरथ ने हाथ फैलाया. उस वक्त माता सीता के पास कुछ नहीं था. फिर उन्होंने फल्गु नदी, ब्राह्मण, गाय और अक्षयवट को साक्षी मानकर बालू का पिंडदान दे दिया. इसके बाद जब राम और लक्ष्मण वापस आये तो उन्होंने पूरा वाक्या बताया. इसे सुनने के बाद दोनों भाइयों को विश्वास नहीं हुआ.
प्रभु श्रीराम और श्री लक्ष्मण को भरोसा दिलाने के लिए जब मां सीता ने फल्गु नदी, ब्राह्मण और गाय से पूछा. लेकिन सभी ने नकार दिया. इसके बाद केवल अक्षयवट ने सारी घटना दोनों भाइयों को सारी घटना बताई. फिर नाराज मां सीता ने तीनों को श्राप दे दिया वहीं, अक्षयवट को अमर रहने का वरदान दिया था.
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