गया: राज्य के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र गया में अभी भी नक्सली संगठन सक्रिय हैं. समय के साथ ये हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं. हालांकि पहले की अपेक्षा इस समय घटनाओं में कमी आई है. नक्सली पहले किसी घटना को अंजाम देने से पहले मोबाइल टावर को नुकसान पहुंचाते थे. लेकिन पिछले दो वर्षों से नक्सलियों ने किसी भी कंपनी के मोबाइल टॉवर को नुकसान नहीं पहुंचाया है.
सुरक्षा एजेंसी और बीएसएनएल ने किया प्रयोग
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नक्सली अपने सॉफ्ट टारगेट मोबाइल टॉवर को जलाकर या उड़ाकर अपना दहशत कायम करते थे. नक्सलियों द्वारा मोबाइल टॉवर उड़ा देने के कई महीनों तक सुदूर ग्रामीण इलाकों के लोगों का जिला मुख्यालय से संपर्क टूट जाता था. इसी बीच नक्सली अपना पांव आसानी से पसारते थे. नक्सलियों के इस कारनामे के जवाब में बीएसएनएल और सुरक्षा एजेंसी ने एक प्रयोग किया कि मोबाइल टावर सरकारी भवन या सुरक्षा बल कैम्प के परिसर में लगाया. यह प्रयोग इतना सफल रहा कि जिले में सैकड़ों नक्सली घटनाएं घटित हुए, लेकिन एक भी मोबाइल टॉवर को हानि नहीं पहुंचा.
सुरक्षा बलों के घेरे में लगाए गए टावर
अब गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कई कंपनियों के मोबाइल टावर सुरक्षा बलों के घेरों में है. गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र इमामगंज, डुमरिया, बांके बाजर और शेरघाटी में सीआरपीएफ, एसएसबी कैम्प और थाना परिसर में मोबाइल टॉवर लगाया गया है. पहले इन इलाकों में सुरक्षा बलों के घेरे से बाहर लगे कई मोबाइल टॉवर को नक्सलियों ने जला दिया था.
'नक्सली घटनाओं में कमी के कारण टावर हैं सुरक्षित'
बीएसएनएल के महाप्रबंधक एस.के. चौरसिया ने बताया कि दो साल पहले नक्सलियों ने हमारे टावर को जला दिया था. लेकिन 2 साल के अंदर सुरक्षाबलों के भय के कारण नक्सली घटनाओं में कमी हुई है. नक्सल क्षेत्र में हमारे 130 टावर लगे हुए हैं. ज्यादातर टावर थाना के नजदीक या उसके परिसर में ही लगाया गया है. हम लोगों को विभाग की तरफ से आदेश मिले हैं कि जो भी टावर नक्सली प्रभावित क्षेत्र में लगाया जाए वह सरकारी भवनों और सुरक्षाबलों के कैम्प के नजदीक में लगाया जाए. बता दें कि पहले नक्सलियों का टारगेट टावर हुआ करता था. नक्सली टावर को उड़ा देते थे जिससे ग्रामीणों का प्रशासन से संपर्क टूट जाए और वह घटना को अंजाम दे सकें. इसमें कमी आई है.