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70 सालों में किया क्वाइन का अनूठा कलेक्शन, गया के महेंद्र प्रसाद के शौक ने बनाया 'सिक्कों का संग्रहालय' - gaya coin collector

भले ही बाजारों में आज सिक्कों की कमी देखने को मिलती हो लेकिन बिहार के गया के एक शख्स के घर में 4 हजार वर्ष तक के पुराने सिक्के से लेकर 2022 तक के सिक्कों का कलेक्शन है. इनका घर म्यूजियम से कम नहीं है. देखने वाले लोगों का भी इस म्यूजियम में तांता लगा रहता है. पढ़ें पूरी खबर..

gaya coin collector
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Published : May 4, 2022, 2:57 PM IST

गया: बचपन में सिक्कों के संग्रह करने का जुनून चढ़ा तो 78 वर्ष की उम्र तक गया के महेंद्र प्रसाद (Mahendra Prasad of gaya) ने घर में ही मिनी म्यूजियम बना दिया है. इनके पास पुराने भारतीय और अन्य देशों के सिक्के हैं. महेंद्र (Mahendra Prasad Rare coin collector of bihar) के म्यूजियम में आपको 4 हजार वर्ष तक के पुराने सिक्के मिल जाएंगे.

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सिक्कों का अनूठा कलेक्शन: गया के नई सड़क के रहने वाले महेंद्र प्रसाद शिल्पकार हैं. शिल्प कला में सरकार द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. इनकी पहचान शिल्पी महेंद्र प्रसाद के रूप में है. 8 वर्ष से सिक्कों का संग्रह करने की इन्हें जो धुन लगी, वह 78 साल की उम्र में भी तनिक भी कम नहीं हुई है. इस धुन को ईश्वर की देन बताते हैं और इसे समाज और देश के लिए संजोकर रखने की बात कहते हैं. महेंद्र आने वाली पीढ़ी को पुराने समय के सिक्कों के माध्यम से इतिहास से जुड़ी अहम जानकारियां देते हैं.

1831 से लेकर 2022 तक के सिक्कों का संग्रह: शिल्पी महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि उनके पास वर्ष 1835 से लेकर 2022 तक के सभी वर्षों के सिक्कों का संग्रह है. भारत में इतने वर्षों में जितने भी सिक्के निकले हैं, उन्होंने उसे लैमिनेट एल्बम में संजोकर रखा है. ये वही यादगार सिक्के हैं जो कि सरकार के नारों या योजनाओं के साथ छपते हैं. उनके पास 3 से 4 हजार वर्ष पुराने सिक्के भी मिल जाएंगे. चंद्रगुप्त मौर्य के काल के आगे और पीछे के समय चक्र के भी सिक्के मिल जाएंगे. ब्रिटिशकाल, मुगलकाल, भारतीय राजवाड़ा के पुराने सिक्के को भी उन्होंने संजोया है. शिल्पी महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि पौराणिक सिक्के तांबा या चांदी के हैं. ब्रिटिशकाल के विलियम 4 विक्टोरिया एडवर्ड सेवन आदि के समय के धरोहरों को भी उन्होंने संजोकर रखा है.

'सिक्कों को सहेजने में भिखारी बने मददगार': महेंद्र प्रसाद का सिक्कों का संग्रह मिनी म्यूजियम की तरह प्रतीत होता है. बेहतर तरीके से इन्होंने इसे संजोकर रखा है कि देखने वाला भी दंग रह जाता है. लैमिनेट एल्बम में सारे सिक्के को सुरक्षित रखा है. यह बताते हैं कि हमारे पास विदेशी कॉइन है जिसमें अमेरिकी सिक्के, कंबोडिया के सिक्के, थाईलैंड के सिक्के, श्रीलंका, भूटान, नेपाल समेत कई देशों के सिक्के संग्रह किए हैं. विदेशी कॉइन को जमा करने के पीछे की रोचक प्रसंग को बताते हुए महेंद्र कहते हैं कि गया तीर्थ स्थली है. यहां विदेशों से आने वाले पर्यटक श्रद्धालु भिखारियों को भीख में क्वाइन देते हैं. उन भिखारियों से इन सिक्कों के बदले में उन्हें इसकी थोड़ी ज्यादा कीमत देते हैं.

सिक्कों पर लिटरेचर: शिल्पी महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि उनका यह शौक ईश्वर की देन है. मकसद सिक्कों को पाना और संग्रह करना है. इस धरोहर को समझने और जानने के लिए महेंद्र ने कॉइंस के लिए लिटरेचर बनाया है ताकि बच्चे आराम से सब कुछ समझ सकें. महेंद्र प्रसाद के इस कलेक्शन को देखकर कोई भी इतिहास के संबंध में कई जानकारियां एकत्रित कर सकता है.

सिक्कों का संग्रह करने के पीछे की कहानी: सिक्कों के शौकीन महेंद्र प्रसाद (Mahendra Prasad of Gaya fond of coins) ने नोटों का भी संग्रह रखा है. भारत में छपने वाले सारे नोटों का उनके पास संग्रह है. महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि गया का पहला म्यूजियम जो केदारनाथ मार्केट में था वहां उन्होंने बचपन में पहला क्वाइन दिया था. कुछ दिनों तक उनके सिक्कों को बजाप्ता उनके नाम के साथ रखा गया लेकिन थोड़े समय के बाद वो गायब हो गए. उस वक्त महेंद्र महज 8 वर्ष के थे. तभी से उनको सिक्कों को एकत्रित करने का जुनून सवार हो गया जो आज भी जारी है.

पढ़ें- शिवलिंग का रखवाला नाग! रहस्यों से भरा है सिवान का ये गांव, यहां जिसने भी मंदिर बनवाया उसकी हो गई मौत

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गया: बचपन में सिक्कों के संग्रह करने का जुनून चढ़ा तो 78 वर्ष की उम्र तक गया के महेंद्र प्रसाद (Mahendra Prasad of gaya) ने घर में ही मिनी म्यूजियम बना दिया है. इनके पास पुराने भारतीय और अन्य देशों के सिक्के हैं. महेंद्र (Mahendra Prasad Rare coin collector of bihar) के म्यूजियम में आपको 4 हजार वर्ष तक के पुराने सिक्के मिल जाएंगे.

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सिक्कों का अनूठा कलेक्शन: गया के नई सड़क के रहने वाले महेंद्र प्रसाद शिल्पकार हैं. शिल्प कला में सरकार द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. इनकी पहचान शिल्पी महेंद्र प्रसाद के रूप में है. 8 वर्ष से सिक्कों का संग्रह करने की इन्हें जो धुन लगी, वह 78 साल की उम्र में भी तनिक भी कम नहीं हुई है. इस धुन को ईश्वर की देन बताते हैं और इसे समाज और देश के लिए संजोकर रखने की बात कहते हैं. महेंद्र आने वाली पीढ़ी को पुराने समय के सिक्कों के माध्यम से इतिहास से जुड़ी अहम जानकारियां देते हैं.

1831 से लेकर 2022 तक के सिक्कों का संग्रह: शिल्पी महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि उनके पास वर्ष 1835 से लेकर 2022 तक के सभी वर्षों के सिक्कों का संग्रह है. भारत में इतने वर्षों में जितने भी सिक्के निकले हैं, उन्होंने उसे लैमिनेट एल्बम में संजोकर रखा है. ये वही यादगार सिक्के हैं जो कि सरकार के नारों या योजनाओं के साथ छपते हैं. उनके पास 3 से 4 हजार वर्ष पुराने सिक्के भी मिल जाएंगे. चंद्रगुप्त मौर्य के काल के आगे और पीछे के समय चक्र के भी सिक्के मिल जाएंगे. ब्रिटिशकाल, मुगलकाल, भारतीय राजवाड़ा के पुराने सिक्के को भी उन्होंने संजोया है. शिल्पी महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि पौराणिक सिक्के तांबा या चांदी के हैं. ब्रिटिशकाल के विलियम 4 विक्टोरिया एडवर्ड सेवन आदि के समय के धरोहरों को भी उन्होंने संजोकर रखा है.

'सिक्कों को सहेजने में भिखारी बने मददगार': महेंद्र प्रसाद का सिक्कों का संग्रह मिनी म्यूजियम की तरह प्रतीत होता है. बेहतर तरीके से इन्होंने इसे संजोकर रखा है कि देखने वाला भी दंग रह जाता है. लैमिनेट एल्बम में सारे सिक्के को सुरक्षित रखा है. यह बताते हैं कि हमारे पास विदेशी कॉइन है जिसमें अमेरिकी सिक्के, कंबोडिया के सिक्के, थाईलैंड के सिक्के, श्रीलंका, भूटान, नेपाल समेत कई देशों के सिक्के संग्रह किए हैं. विदेशी कॉइन को जमा करने के पीछे की रोचक प्रसंग को बताते हुए महेंद्र कहते हैं कि गया तीर्थ स्थली है. यहां विदेशों से आने वाले पर्यटक श्रद्धालु भिखारियों को भीख में क्वाइन देते हैं. उन भिखारियों से इन सिक्कों के बदले में उन्हें इसकी थोड़ी ज्यादा कीमत देते हैं.

सिक्कों पर लिटरेचर: शिल्पी महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि उनका यह शौक ईश्वर की देन है. मकसद सिक्कों को पाना और संग्रह करना है. इस धरोहर को समझने और जानने के लिए महेंद्र ने कॉइंस के लिए लिटरेचर बनाया है ताकि बच्चे आराम से सब कुछ समझ सकें. महेंद्र प्रसाद के इस कलेक्शन को देखकर कोई भी इतिहास के संबंध में कई जानकारियां एकत्रित कर सकता है.

सिक्कों का संग्रह करने के पीछे की कहानी: सिक्कों के शौकीन महेंद्र प्रसाद (Mahendra Prasad of Gaya fond of coins) ने नोटों का भी संग्रह रखा है. भारत में छपने वाले सारे नोटों का उनके पास संग्रह है. महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि गया का पहला म्यूजियम जो केदारनाथ मार्केट में था वहां उन्होंने बचपन में पहला क्वाइन दिया था. कुछ दिनों तक उनके सिक्कों को बजाप्ता उनके नाम के साथ रखा गया लेकिन थोड़े समय के बाद वो गायब हो गए. उस वक्त महेंद्र महज 8 वर्ष के थे. तभी से उनको सिक्कों को एकत्रित करने का जुनून सवार हो गया जो आज भी जारी है.

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