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7वें दिन गया जी में विष्णुपद की 16 वेदियों पर चल रहा है पिंडदान, संत-सन्यासी कर सकते ये कर्मकांड - vishnu pad vedi

गया जी में सन्यासी और महात्मा आकर पिंडदान नहीं करते क्योंकि उन्हें पिंडदान का अधिकार नहीं है. विष्णुपद पर दंड का दर्शन करने मात्र से ही सन्यासी के पितरों की मुक्ति हो जाती है.

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Published : Sep 19, 2019, 7:04 AM IST

गया: मोक्ष की नगरी गया जी में सातवें दिन विष्णुपद मंदिर स्थित 16 वेदियों पर पिंडदान का महत्व वर्णित है. पितृपक्ष के छठवें दिन से आठवें दिन तक यहां लगातार पिंडदान होता है. इन 16 वेदियों की खास बात ये है कि अलग-अलग देवताओं की हैं, जो स्तंभ रुप में हैं.

वहीं, विष्णुपद मंदिर के पास ही अवस्थित गहर्पत्यागिन पद, आह्वगनी पद, स्मयागिन पद, आवसध्यागिन्द और इन्द्रपद इन पांचों पदों पर पिंडदान करने का महत्व है.

सुबह से चल रहा है श्राद्धकर्म
सुबह से चल रहा है श्राद्धकर्म

सन्यासी और महात्मा नहीं कर सकते पिंडदान...
गया जी में सन्यासी और महात्मा आकर पिंडदान नहीं करते क्योंकि उन्हें पिंडदान का अधिकार नहीं है. विष्णुपद पर दंड का दर्शन करने मात्र से ही सन्यासी के पितरों की मुक्ति हो जाती है. मुंडपृष्टा तीर्थ से ढाई-ढाई कोस चारों तरफ पांच कोस गया क्षेत्र है. एक कोस में गया सिर है इसके बीच में तत्रैलोक्य सभी तीर्थ हैं, जो गया क्षेत्र में श्राद्ध करता है उनके पितरों से ऋण मुक्त हो जाता है.

देखें खास रिपोर्ट- चल रहा है पिंडदान

पग-पग पर मिलता है अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल

  • गया जी पर श्राद्ध करने से सौ कुलों का उद्धार हो जाता है. घर से चलने मात्र से ही पग-पग पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.
  • गया में पिंडदान चरु से, पायस से, सत्तू से, आटा से, चावल से, फल से, मूल से,कल्क से, मधृत पायस से, केवल दही, घी से या मधु से इन में किसी से पिंडदान करने से पितरों को अक्षय लोग मिलता है क्योंकि पितरों को हविष्यन्न और मुनि अन्न ही तृप्ति कारक होता हैं.
  • पिंड का प्रमाण (आकार) मुट्ठी बराबर अथवा गीले आमला के बराबर होना चाहिए. तु गया जी र शमीपत्र प्रमाण पिंड से ही पितरों की तृप्ति हो जाती है.
    पिंडदान करते पिंडदानी
    पिंडदान करते पिंडदानी

विष्णुपद परिसर स्थित 16 वेदियों पर क्रमशः तीनों दिनों तक पिंडदान होता है. ये तीन दिन में दूसरा दिन है. ज पांच पिंडवेदी पर पिंडदान चल रहा है. इन 16 वेदियों पर सभी दिवसीय यानी एक दिवसीय, तीन दिवसीय और 17 दिवसीय वाले पिंडदान करते हैं. आज भी पांचों पिंडवेदी के स्तंभ पर पिंड साटने और दूध अर्पित करने का परंपरा हैं.

गया: मोक्ष की नगरी गया जी में सातवें दिन विष्णुपद मंदिर स्थित 16 वेदियों पर पिंडदान का महत्व वर्णित है. पितृपक्ष के छठवें दिन से आठवें दिन तक यहां लगातार पिंडदान होता है. इन 16 वेदियों की खास बात ये है कि अलग-अलग देवताओं की हैं, जो स्तंभ रुप में हैं.

वहीं, विष्णुपद मंदिर के पास ही अवस्थित गहर्पत्यागिन पद, आह्वगनी पद, स्मयागिन पद, आवसध्यागिन्द और इन्द्रपद इन पांचों पदों पर पिंडदान करने का महत्व है.

सुबह से चल रहा है श्राद्धकर्म
सुबह से चल रहा है श्राद्धकर्म

सन्यासी और महात्मा नहीं कर सकते पिंडदान...
गया जी में सन्यासी और महात्मा आकर पिंडदान नहीं करते क्योंकि उन्हें पिंडदान का अधिकार नहीं है. विष्णुपद पर दंड का दर्शन करने मात्र से ही सन्यासी के पितरों की मुक्ति हो जाती है. मुंडपृष्टा तीर्थ से ढाई-ढाई कोस चारों तरफ पांच कोस गया क्षेत्र है. एक कोस में गया सिर है इसके बीच में तत्रैलोक्य सभी तीर्थ हैं, जो गया क्षेत्र में श्राद्ध करता है उनके पितरों से ऋण मुक्त हो जाता है.

देखें खास रिपोर्ट- चल रहा है पिंडदान

पग-पग पर मिलता है अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल

  • गया जी पर श्राद्ध करने से सौ कुलों का उद्धार हो जाता है. घर से चलने मात्र से ही पग-पग पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.
  • गया में पिंडदान चरु से, पायस से, सत्तू से, आटा से, चावल से, फल से, मूल से,कल्क से, मधृत पायस से, केवल दही, घी से या मधु से इन में किसी से पिंडदान करने से पितरों को अक्षय लोग मिलता है क्योंकि पितरों को हविष्यन्न और मुनि अन्न ही तृप्ति कारक होता हैं.
  • पिंड का प्रमाण (आकार) मुट्ठी बराबर अथवा गीले आमला के बराबर होना चाहिए. तु गया जी र शमीपत्र प्रमाण पिंड से ही पितरों की तृप्ति हो जाती है.
    पिंडदान करते पिंडदानी
    पिंडदान करते पिंडदानी

विष्णुपद परिसर स्थित 16 वेदियों पर क्रमशः तीनों दिनों तक पिंडदान होता है. ये तीन दिन में दूसरा दिन है. ज पांच पिंडवेदी पर पिंडदान चल रहा है. इन 16 वेदियों पर सभी दिवसीय यानी एक दिवसीय, तीन दिवसीय और 17 दिवसीय वाले पिंडदान करते हैं. आज भी पांचों पिंडवेदी के स्तंभ पर पिंड साटने और दूध अर्पित करने का परंपरा हैं.

Intro:गया जी मे पिंडदान का सातवें दिन विष्णुपद मंदिर स्थित 16 बेदी नामक तीर्थ में अवस्थित गहर्पत्यागिन पद, आह्वगनी पद, स्मयागिन पद, आवसध्यागिन्द और इन्द्रपद इन पांचों पदों पर पिंडदान करने का महत्व है।


Body:गयाजी में सन्यासी महात्मा गया में आकर पिंडदान नही करते क्योंकि उन्हें पिंडदान का अधिकार नहीं है, विष्णुपद पर दण्ड का प्रदर्शन करने मात्र से ही सन्यासी के पितरों की मुक्ति हो जाती है। मुंडपृष्टा तीर्थ से ढाई ढाई कोस चारों तरफ पांच कोस गया क्षेत्र है, एवं एक कोस में गया सिर है इसके बीच में तत्रैलोक्य सभी तीर्थ है जो गया क्षेत्र में श्राद्ध करता है वह पितरों से ऋण मुक्त हो जाता है।

गया सिर पर श्राद्ध करने से सौ कुलो का उद्धार हो जाता है घर चलने मात्र से ही पग पग पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। गया में पिंडदान चरु से, पायस से, सत्तू से,आटा से ,चावल से, फल से, मूल से,कल्क से, मधृत पायस से, केवल दही से,घी से या मधु से इन में किसी से पिंडदान करने से पितरों को अक्षय लोग मिलता है क्योंकि पितरों को हविष्यन्न और मुनि अन्न ही तृप्ति कारक होता हैं। वही उनको इष्ट हैं। पिंड का प्रमाण (आकार) मुट्ठी बराबर अथवा गिले आमला के बराबर होना चाहिए। किंतु गया सिर पर शमीपत्र प्रमाण पिंड से ही पितरों की तृप्ति हो जाता है।

विष्णुपद परिसर स्थित 16 वेदियों पर क्रमशः तीनो दिनों तक पिंडदान होता है। आज ये तीन दिन में दूसरा दिन है। आज पांच पिंडवेदी पर पिंडदान होगा। इन 16 वेदियों पर सभी दिवसीय यानी एक दिवसीय, तीन दिवसीय और 17 दिवसीय वाले पिंडदान करते हैं। आज भी पांचों पिंडवेदी के स्तंभ पर पिंड साटने और दूध अर्पित करने का परंपरा हैं।



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