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बोधगया में दिखती है तिब्बत की झलक, सम्मान के लिए भेंट करते हैं खादा - खादा का इस्तेमाल तिब्बती लोग प्रार्थना के दौरान करते हैं

तिब्बती मूल की पूजा में भगवान बुद्ध को भेंट करने और किसी अन्य को सम्मान देने या स्वागत करने के लिए भी खादा दिया जाता है. ये एक तरीके का शॉल होता है, जिसमें तिबब्ती कला की झलक दिखती है.

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Published : Jan 7, 2020, 1:19 PM IST

गया: भारत विविधता का देश है. यहां हर धर्म, हर क्षेत्र की अपनी अनूठी परंपरा है. जिस तरह भारत में किसी को सम्मान देने के लिए उसे अंगवस्त्र भेंट किया जाता है, उसी तरह पड़ोसी देश तिब्बत में खादा देने का रिवाज है. यह परंपरा वहां की पहचान है.

तिब्बत की खादा प्रदान करने की परंपरा कई भारत से काफी मिलती जुलती है. इन दिनों तिब्बत के धर्मगुरु दलाईलामा बोधगया के प्रवास पर है. दलाईलामा का बोधगया आगमन के साथ ही तिब्बत मूल के हजारों लोग बोधगया पहुंचते हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

खादा भेंट करने का है रिवाज
तिब्बती मूल की पूजा में भगवान बुद्ध को भेंट करने और किसी अन्य को सम्मान देने या स्वागत करने के लिए भी खादा दिया जाता है. ये एक तरीके का शॉल होता है, जिसमें तिबब्ती कला की झलक दिखती है. ये रेशम का बना होता है.

प्रार्थना में होता है प्रयोग
बता दें कि खादा का इस्तेमाल तिब्बती लोग प्रार्थना के दौरान करते हैं. ये रेशम से बना बहुत बारीक कपड़ा होता हैं. जिसके छोर ढीले होते हैं. यूं तो खादा कई रंगों का होता हैं. लेकिन, प्रचलन में ज्यादा सफेद और पीला रंग इस्तेमाल होता है.

gaya
बोधगया में बसते हैं हजारों बौद्ध भिक्षु

ये भी पढ़ें: 'डर गई है BJP, नहीं तो अन्य राज्यों से पहले असम जाते गृह मंत्री अमित शाह'

बौद्ध भंते ने बताई खादा की महत्ता
खादा परंपरा के बारे में बोधगया के बौद्ध भंते बताते हैं कि तिब्बती समुदाय के बीच खादा का इस्तेमाल स्वागत के लिए होता है. जैसे भारत में मेहमान को फूल माला पहनाकर स्वागत करते हैं, उसी तरह वो लोग खादा ओढ़ाकर स्वागत करते हैं. इसके पीछे तथ्य ये है कि आशीर्वाद या सम्मान में जो खादा दिया जाता है वह सालों-साल चलता है. लोग इस खादा को संजोकर रखते हैं.

गया: भारत विविधता का देश है. यहां हर धर्म, हर क्षेत्र की अपनी अनूठी परंपरा है. जिस तरह भारत में किसी को सम्मान देने के लिए उसे अंगवस्त्र भेंट किया जाता है, उसी तरह पड़ोसी देश तिब्बत में खादा देने का रिवाज है. यह परंपरा वहां की पहचान है.

तिब्बत की खादा प्रदान करने की परंपरा कई भारत से काफी मिलती जुलती है. इन दिनों तिब्बत के धर्मगुरु दलाईलामा बोधगया के प्रवास पर है. दलाईलामा का बोधगया आगमन के साथ ही तिब्बत मूल के हजारों लोग बोधगया पहुंचते हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

खादा भेंट करने का है रिवाज
तिब्बती मूल की पूजा में भगवान बुद्ध को भेंट करने और किसी अन्य को सम्मान देने या स्वागत करने के लिए भी खादा दिया जाता है. ये एक तरीके का शॉल होता है, जिसमें तिबब्ती कला की झलक दिखती है. ये रेशम का बना होता है.

प्रार्थना में होता है प्रयोग
बता दें कि खादा का इस्तेमाल तिब्बती लोग प्रार्थना के दौरान करते हैं. ये रेशम से बना बहुत बारीक कपड़ा होता हैं. जिसके छोर ढीले होते हैं. यूं तो खादा कई रंगों का होता हैं. लेकिन, प्रचलन में ज्यादा सफेद और पीला रंग इस्तेमाल होता है.

gaya
बोधगया में बसते हैं हजारों बौद्ध भिक्षु

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बौद्ध भंते ने बताई खादा की महत्ता
खादा परंपरा के बारे में बोधगया के बौद्ध भंते बताते हैं कि तिब्बती समुदाय के बीच खादा का इस्तेमाल स्वागत के लिए होता है. जैसे भारत में मेहमान को फूल माला पहनाकर स्वागत करते हैं, उसी तरह वो लोग खादा ओढ़ाकर स्वागत करते हैं. इसके पीछे तथ्य ये है कि आशीर्वाद या सम्मान में जो खादा दिया जाता है वह सालों-साल चलता है. लोग इस खादा को संजोकर रखते हैं.

Intro:भारत देश मे जिस तरह किसी को सम्मान देना या स्वागत करने के लिए अंगवस्त्र भेंट करते हैं उसी तरह तिब्बत में भी खादा प्रदान किया जाता है। तिब्बत का धर्मिक परंपरा खादा में भारतीय संस्कृति झलकता हैं।


Body:आपको बता दे इन दिनों में तिब्बत के धर्मगुरु दलाईलामा बोधगया के प्रवास पर है दलाईलामा का बोधगया के आगमन के साथ तिब्बत मूल के हजारो लोग बोधगया पहुँचते हैं। तिब्बती मूल में पूजा में भगवान बुद्ध को भेंट करने के लिए और किसी का स्वागत करने के लिए भी खादा देते हैं। कपड़ो का बना ये खादा मे भारतीय संस्कृति की झलक दिखती हैं।

vo:1 आपको जेहन में आ रहा होगा आखिर खादा है क्या , खादा तिब्बती लोग का बौद्ध प्रार्थना के लिए उपयोग होने वाला रेशम से बना बहुत महीन कपड़ा होता हैं। जिसके छोर ढीले होते हैं। खादा कई रंगों का होता हैं लेकिन प्रचलन में ज्यादा सफेद और पिला रंग चलता है।

vo:2 खादा परंपरा के बारे बोधगया के बौद्ध भंते ने बताते हैं तिब्बती समुदाय के बीच स्वागत करने का एक तरीका है खादा। जैसे भारत मे मेहमान को फूल माला पहनाकर स्वागत करते हैं उसी तरह वो लोग खादा ओढ़ाकर स्वागत करते हैं। इसके पीछे तथ्य है ये आशीर्वाद या सम्मान में जो खादा दिया जाता है वो सालो साल चलता हैं। लोग इस खाद को संजोकर रखते हैं।

बाईट- प्रियो पाल भंते , बौद्ध भंते


Conclusion:तिब्बती परंपरा खादा इन दिनों बोधगया के बाजारों में खूब देखने को मिल रहा है। बोधगया में होनेवाले सरकारी और सामाजिक कार्यक्रमों में स्वागत करने के लिए लोग खादा प्रयोग करने लगे। तिब्बती बॉड परंपरा में भारतीय संस्कृति झलकने साथ अब भारतीय इसका उपयोग भी करने लगे हैं।
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