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टिकारी राज की रंगपंचमी की परंपरा हुई विलुप्त, कभी रानी ने की थी शुरुआत - holi of the tikari royal family is becoming extinct in gaya

टिकारी राज से ही झुमटा का प्रचलन शुरू हुआ था. टिकारी क्षेत्र के वृद्धजनों के अनुसार टिकारी राज में होली के दूसरे दिन क्षेत्र में झुमटा का प्रचलन शुरू हुआ था. जो धीरे धीरे क्षेत्र के आसपास में भी प्रचलित हुआ. युवाओं की टोली झुंड बनाकर सड़कों पर निकलती थी और पानी की बौछार कर समाजिक समरसता का संदेश देती थी.

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Published : Mar 8, 2020, 4:50 PM IST

Updated : Mar 8, 2020, 8:12 PM IST

गयाः होली की परंपरा हजारों साल से चली आ रही है. देश में होली का त्योहार कई जगहों पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. गया के टिकारी किला में भी होली मनाने का अलग परंपरा थी. ये परंपरा टिकारी किला के रानी ने शुरू की थी जो अब बिल्कुल विलुप्त हो गई है.

होली मनाने की अलग परंपरा
मगध क्षेत्र के प्रसिद्ध रियासत टिकारी राज घराने की होली आज भी क्षेत्र के बुजुर्ग याद कर प्रफुल्लित हो जाते हैं. एक जमाने में पांच दिनों तक चलने वाली रंगपंचमी यानी होली पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है. टिकारी राज में होली बहेलिया, बिगहा और रानीगंज के लोगों की ओर से अलग ही तरह से खेली जाती थी. लोग राज महल में राज परिवार के साथ होली खेलकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते थे. रंगभरी एकादशी के दिन से टिकारी राज के लोगों की होली शुरू होती थी और पूर्णिमा तक चलती थी.

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टिकारी महल बना खंडहर
टिकारी राज घराने की होलीपंडित तारानाथ मिश्रा ने बताया कि रानीगंज के ब्राह्मण परिवार और टिकारी बाजार के वैश्य परिवार अलग-अलग मंडली बनाकर एक निश्चित समय में राजमहल के पास पहुंचते थे. साथ ही अलग-अलग निर्धारित स्थानों पर मंडली जमा कर होली का गायन करते थे. उन्होंने बताया कि राजमहल की कुल देवी मंदिर के समक्ष बने प्रसिद्ध संगी दालान में बहेलिया बिगहा और रानीगंज के लोगों का जमावड़ा होता था. जिसमें राज परिवार से जुड़े राजशाही लोग शिरकत करते थे और रंग-गुलाल लगाकर होली का गायन करते थे. साथ ही पांच दिनों तक होली मनाते थे.
देखें पूरी रिपोर्ट

टिकारी राज में झुमटा का प्रचलन
तारानाथ मिश्रा ने बताया कि रंगपंचमी परंपरा से एक कथा और जुड़ी है कि राजा हरिहर प्रसाद के काल में लोग अलग ही चाव से होली का गायन करते थे. जो क्षेत्र में चर्चा का विषय होता था. चूंकि राजा हरिहर प्रसाद तत्कालीन महारानी के पति थे और उनका क्षेत्र के लोगों से दामाद का रिश्ता था. इस कारण तत्कालीन महारानी होली का गायन कर रहे मंडली से राजा हरिहर प्रसाद के बारे में अठखेली करने को कहती थी और लोग अठखेली करते थे. जो पांच दिनों का हास्य व्यंग चलता था.

गयाः होली की परंपरा हजारों साल से चली आ रही है. देश में होली का त्योहार कई जगहों पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. गया के टिकारी किला में भी होली मनाने का अलग परंपरा थी. ये परंपरा टिकारी किला के रानी ने शुरू की थी जो अब बिल्कुल विलुप्त हो गई है.

होली मनाने की अलग परंपरा
मगध क्षेत्र के प्रसिद्ध रियासत टिकारी राज घराने की होली आज भी क्षेत्र के बुजुर्ग याद कर प्रफुल्लित हो जाते हैं. एक जमाने में पांच दिनों तक चलने वाली रंगपंचमी यानी होली पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है. टिकारी राज में होली बहेलिया, बिगहा और रानीगंज के लोगों की ओर से अलग ही तरह से खेली जाती थी. लोग राज महल में राज परिवार के साथ होली खेलकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते थे. रंगभरी एकादशी के दिन से टिकारी राज के लोगों की होली शुरू होती थी और पूर्णिमा तक चलती थी.

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टिकारी महल बना खंडहर
टिकारी राज घराने की होलीपंडित तारानाथ मिश्रा ने बताया कि रानीगंज के ब्राह्मण परिवार और टिकारी बाजार के वैश्य परिवार अलग-अलग मंडली बनाकर एक निश्चित समय में राजमहल के पास पहुंचते थे. साथ ही अलग-अलग निर्धारित स्थानों पर मंडली जमा कर होली का गायन करते थे. उन्होंने बताया कि राजमहल की कुल देवी मंदिर के समक्ष बने प्रसिद्ध संगी दालान में बहेलिया बिगहा और रानीगंज के लोगों का जमावड़ा होता था. जिसमें राज परिवार से जुड़े राजशाही लोग शिरकत करते थे और रंग-गुलाल लगाकर होली का गायन करते थे. साथ ही पांच दिनों तक होली मनाते थे.
देखें पूरी रिपोर्ट

टिकारी राज में झुमटा का प्रचलन
तारानाथ मिश्रा ने बताया कि रंगपंचमी परंपरा से एक कथा और जुड़ी है कि राजा हरिहर प्रसाद के काल में लोग अलग ही चाव से होली का गायन करते थे. जो क्षेत्र में चर्चा का विषय होता था. चूंकि राजा हरिहर प्रसाद तत्कालीन महारानी के पति थे और उनका क्षेत्र के लोगों से दामाद का रिश्ता था. इस कारण तत्कालीन महारानी होली का गायन कर रहे मंडली से राजा हरिहर प्रसाद के बारे में अठखेली करने को कहती थी और लोग अठखेली करते थे. जो पांच दिनों का हास्य व्यंग चलता था.

Last Updated : Mar 8, 2020, 8:12 PM IST
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