गया: बिहार के गया जिले के नक्सल प्रभावित बाराचट्टी प्रखंड के धनगाई गांव की पहचान 'असली खोवा' के कारोबार (Gaya Dhangai village is known for Khowa ) से भी जुड़ी हुई है. पिछले 100 सालों से अधिक समय से यहां का बनने वाला खोवा की खपत बिहार ही नहीं, बल्कि झारखंड में भी होती है. होली जैसे त्योहारों में 'असली खोवे' के लिए बिहार के कई जिलों से आर्डर मिलने शुरू हो जाते हैं. इसके लिए कई जगहों पर खोवे का कलेक्शन सेंटर भी खोले गए हैं. होली जैसे पर्व में यहां खोवे के माध्यम से लाखों का कारोबार होता है. होली में खोए का मलपूआ तकरीबन घर-घर में बनता है. खोवा यदि धनगाई का हो, तो मलपुआ भी कमाल का बनता है.
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गया के धनगाईं की पहचान असली खोवा : गया के धनगाई गांव में करीब 100 घरों के लोग खोवा के कारोबार से जुड़े हुए हैं. ऐसा शायद कोई गांव हो, जहां इतनी संख्या में लोग कारोबार के तौर पर खोवा बनाते हैं. इस इलाके में पशुपालकों की तादाद काफी है. नतीजतन दूध भी काफी होते हैं. ऐसे में खोए बनाने का कारोबार काफी फल-फूल रहा है. इस गांव में प्रतिदिन कई क्विंटल खोवा बनाए जाते हैं.
अचानक क्विंटल में जरूरत पड़े तो यहां मिलने की गारंटी : क्विंटल में खोए की जरूरत पड़ जाए तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि धनगाई में हर समय खोवा उपलब्ध रहता है. क्विंटल में भी हमेशा उपलब्ध होता है. धनगाई का खोवा पड़ोसी राज्य झारखंड के कई जिलों को काफी भाता है. यही वजह है, कि झारखंड के कई जिलों से ऑर्डर यहां आते हैं. होली में तो एडवांस बुकिंग कर दी जाती है.
खोवा से बनती है कई तरह की मिठाईयां : खोवा से होली की पसंदीदा मलपूआ बनती है. वहीं, इससे विभिन्न प्रकार की मिठाईयां भी बनाई जाती है. इसमें काला जामुन, पेड़ा, बर्फी आदि हैं. यहां के लोग बताते हैं कि धनगाई का खोवा का कारोबार 100 सालों से भी पुराना कारोबार है. यहां की तकरीबन हर दुकानों में खोवा आसानी से सुलभ है. दुकान चाहे किराने की हो या हलवाई की, खोवा कभी भी मिल जाता है.
ऐसे पहचानें खोया असली है या मिलावटी : खोवा के कारोबारी धनगाई के अंकित गुप्ता बताते हैं, कि असली खोवा पहचानने का आसान तरीका है. तोड़कर, खाकर, हाथ में रखकर असली और नकली खोवे का फर्क आसानी से जाना जा सकता है. वहीं एक और कारोबारी सरजू प्रसाद बताते हैं कि असली खोवा हाथों में चिपकता नहीं है. तोड़ने पर भी नहीं सटता है.
''खाने में जीभ में चिपकता नहीं है. जबकि इसके ठीक विपरीत यदि खोवा नकली हो तो हाथ में चिपकता है. खाने पर मुंह में भी चिपचिपाहट रहता है. तोड़ने पर हाथ में भी सट जाता है. इस तरह असली खोवा और नकली खोए का फर्क आसान तरीके से समझ सकते हैं.'' - अंकित गुप्ता, खोवा कारोबारी
100 सालों से पुराना है यह कारोबार : अंकित गुप्ता बताते हैं कि धनगाई में पूरी तरह से असली खोवा मिलता है. यह यहां के लिए 100 सालों से पुराना कारोबार है. धनगाई गांव की पहचान खोवे के कारोबार से भी जुड़ी है. फिलहाल में 100 से अधिक घरों के लोग रोजाना खोवा बनाते हैं. होली में खोवा की डिमांड काफी होती है.
"बिहार में गया से में कुछ जिलों के अलावे यहां से सटे झारखंड के कई जिलों से आर्डर आने शुरू हो गए हैं. रोजाना कई क्विंटल खोवा तैयार किया जा रहा है. होली में लाखों का कारोबार खोवे का होता है. खोवा को हम लोग मोआ भी कहते हैं. धनगाई का खोवा काफी प्रसिद्ध है.'' - अंकित गुप्ता, खोवा कारोबारी