गया: 7 नवंबर 1907 को उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में जन्मे प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन की आज पुण्यतिथि है. 18 जनवरी 2003 को मुंबई में उन्होंने आखिरी सांस ली थी. उनकी पुण्यतिथि के मौके पर साहित्य जगत से जुड़े लोग उनको याद कर रहे है. ऐसे में हम आपको हरिवंश राय बच्चन का बिहार से कनेक्शन बताने जा रहे हैं.
हरिवंश राय बच्चन का बिहार कनेक्शन: दरअसल प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन का बिहार से खास कनेक्शन रहा है. यह जुड़ाव एक दो सालों तक नहीं बल्कि तकरीबन 45 सालों तक बना रहा. इसके पीछे का कारण गया शहर के निवासी राम निरंजन परिमलेंदु थे. हरिवंश और परिमलेंदु के बीच का संबंध इतना गहरा था कि दोनों एक दूसरे का हर कदम पर आत्मबल बढ़ाते थे.
'आप आत्मकथा लिखिए': 'क्या भूलूं क्या याद करूं' आत्मकथा को लिखने की प्रेरणा गया के साहित्यकार राम निरंजन परिमलेंदु ने ही हरिवंश राय बच्चन दी थी. राम निरंजन परिमलेंदु ने ही हरिवंश राय बच्चन को कहा था, आप आत्मकथा लिखिए. उनकी प्रेरणा के बाद हरिवंश राय बच्चन ने आत्मकथा लिखने की शुरुआत की थी.
एक दूसरे के थे पूरक: हरिवंश राय बच्चन और राम निरंजन परिमलेंदु एक- दूसरे के पूरक थे. यह हरिवंश राय बच्चन के बिहार के गया से बड़े कनेक्शन के जुड़ाव से ही सामने आ जाता है. हरिवंश राय बच्चन गया शहर के रहने वाले राम निरंजन परिमलेंदु के काफी करीब थे.
'बच्चन पत्रों के दर्पण में': आस-पास के बुजुर्ग लोगों ने बताया कि दोनों के बीच तकरीबन चार दशक तक संबंध रहा. चार दशक से अधिक समय तक दोनों के बीच पत्राचार चलता रहा. यही वजह थी, कि राम निरंजन परिमलेंदु ने हरिवंश राय बच्चन के सभी पत्राचार को समाहित कर एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम 'बच्चन पत्रों के दर्पण में' था.
"राम निरंजन परिमलेंदु हरिवंश राय बच्चन से कई बार मिले. इलाहाबाद, पटना और दिल्ली में उनका हरिवंश राय बच्चन से मिलना हुआ. 'बच्चन पत्रों के दर्पण में' का प्रकाशन हुआ था, जो काफी प्रसिद्ध पुस्तक थी."- मनोज कुमार पाठक, राम निरंजन परिमलेंदु के करीबी
परिमलेंदु को कंठस्थ थे हरिवंश की कई कविताएं: 'बच्चन पत्र पत्रों के दर्पण में' पुस्तक में हरिवंश राय बच्चन के 200 से अधिक पत्र संकलित हैं. हरिवंश राय बच्चन और राम निरंजन परिमलेंनदु कितने करीब थे, इसका पता कई तथ्यों से चलता है. परिमलेंदु को हरिवंश राय बच्चन की कई कविता संग्रह कंठस्थ थे. हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला उन्हें कंठस्थ थी.
बीमार पिता को फल खिलाने के नाम पर भेजे थे 200 रु: स्थानीय लोग बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन और राम निरंजन परिमलेंदु लंबे समय तक एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बने रहे. साहित्य ने दोनों को एक- दूसरे के करीब चार दशकों से अधिक समय तक रखा. यही वजह थी, कि एक बार जब परिमलेंदु जी के पिता जगन्नाथ प्रसाद 1966 में बीमार पड़े तो हरिवंश राय बच्चन ने मनी ऑर्डर से 200 रुपए भेजे थे.
परिमलेंदु ने लौटा दिए थे पैसे: मनीऑर्डर भेजने के साथ ही एक नोट भी हरिवंश ने भेजा जिसमें लिखा था कि पिताजी के लिए फल खाने के लिए यह राशि आप स्वीकार करें. लेकिन जब तक राशि आई तब तक परिमलेंदु के पिता का देहांत हो चुका था. इसके बाद परिमलेंदु ने राशि हरिवंश को वापस लौटा दी और पत्र में कहा कि इसे वापस स्वीकार करें.
2020 में परिमलेंदु का निधन: राम निरंजन परिमलेंदु हरिवंश राय बच्चन को प्रख्यात कवि के साथ-साथ बड़े इंसान मानते थे. हरिवंश राय बच्चन के अंतिम समय तक दोनों के बीच पत्राचार और मिलने-जुलने का सिलसिला चलता रहा. आज हमारे बीच राम निरंजन परिमलेंदु नहीं हैं. 2020 में उनका निधन हो गया. गांधी संग्रहालय में हरिवंश राय बच्चन के 213 संकलित पत्र सुरक्षित रखे गए हैं.
दक्षिण दरवाजा में स्थित घर पर अब सन्नाटा: कभी हरिवंश राय बच्चन के हृदय में रहने वाले करीबियों में से रहे राम निरंजन परिमलेंदु भी अब नहीं है. गया शहर के दक्षिण दरवाजा मोहल्ले में उनका मकान वीरान पड़ा है. आज भी प्रोफेसर डॉक्टर राम निरंजन परिमलेंदु लिखा हुआ बोर्ड उनके घर के बाहर शान से टंगा हुआ है. मोहल्ले के लोग बताते हैं, कि उनकी एक पुत्री ही है, जो कभी कभार इस घर में आती है.
"राम निरंजन परिमलेंदु हिंदी के जाने माने प्रख्यात प्रोफेसर थे. उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थी. उन्हें सीएम ने भी सम्मानित किया था. उनका हरिवंश राय बच्चन के साथ काफी घनिष्ठ संबंध रहा है."- संदीप मिश्रा, राम निरंजन परिमलेंदु के पड़ोसी
पढ़ें- हरिवंश राय बच्चन, जिन्होंने हाला प्याला और मधुशाला को किया मशहूर