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भूतों का पहाड़: यहां पिंडदान करने से प्रेतयोनि के पितरों को मिलती है मुक्ति

प्रेतशिला के शिखर पर जाने के लिए खड़ी चढ़ाई और 676 सीढ़ी चढ़ना पड़ता है. यहां पिंडदान करने से प्रेतयोनि के पितरों को मुक्ति मिल जाती है. इसे भूतों का पहाड़ कहा जाता है.

भूतों का पहाड़
भूतों का पहाड़
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Published : Sep 4, 2020, 7:47 PM IST

गया: इन दिनों पितृपक्ष प्रतिपदा चल रहा है. पितृपक्ष के दूसरे दिन प्रेतशिला में लोग पिंडदान करते हैं. यहां पिंडदान करने से प्रेतयोनि के पितरों को मुक्ति मिल जाती है. प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. इस पहाड़ पर आज भी भूत और प्रेत का वास रहता है. प्रेतशिला पहाड़ पर जाने के लिए 676 सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है.

प्रेतशिला के शिखर पर जाने के लिए खड़ी चढ़ाई और 676 सीढ़ी चढ़ना पड़ता है. पिंडदानियों के लिए बड़ा कष्टदायक रहता है. यहां जाने के लिए भाड़े पर पालकी भी मिलता है. प्रेतशिला के आस पास के लोग हर रोज प्रेतशिला के शिखर तक पहुंचते हैं. स्थानीय 70 वर्षीय दो बुजुर्ग यहां हर रोज जाते हैं. उन्होंने कहा कि सीढ़ी चढ़ना कष्टदायक है. लेकिन जो सीढ़ी पर पांव रख दिया, वो चढ़ जाता है. यहां एक अलौकिक शक्ति है, जो लोगों को खिंचती है.

पेश है रिपोर्ट

भगवान ब्रह्मा ने रखी थी शर्त

प्रेतशिला को लेकर एक दंत कथा है कि ब्रह्मा जी सोने का पहाड़ ब्राह्मण को दान में दिया था, सोने का पहाड़ दान में देने के बाद ब्रह्मा जी ब्राह्मणों से शर्त रखा था, अगर आप लोग किसी से दान लेंगे, तो ये सोने का पर्वत ,पत्थरों का पर्वत हो जाएगा. राजा भोग ने झल से पंडा को दान दे दिया. इसके बाद ये पर्वत पत्थरों का पर्वत बन गया. ब्राह्मणों ने भगवान ब्रह्ना से गुहार लगाई. हम लोगों की जीविका कैसे चलेगी? ब्रह्मा जी ने कहा इस पहाड़ पर बैठकर मेरे पांव पर जो पिंडदान करेगा, उसके पीतर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलेगी. इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखा है. कहा जाता है कि तीनों स्वर्ण रेखा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान रहेंगे. इसके बाद से ही इस पर्वत को प्रेतशिला कहा गया है. ब्रहा जी के पदचिह्न पर पिंडदान होने लगा.

पिंडदान करते श्रद्धालु
पिंडदान करते श्रद्धालु

'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'
प्रेतशिला पर्वत पर एक धर्मशीला है, जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर कहते हैं 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'. कहा जाता है कि सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. साथ ही यहां भगवान विष्णु की प्रतिमा है. पिंडदानी अकाल मृत्यु वाले लोगों की तस्वीर भगवान विष्णु चरण में रखते है. उस मंदिर की पुजारी 6 माह तक उसे पूजा करके उस तस्वीर को गंगा में प्रवाहित कर देता है. पुजारी बताते है कि पहले लोग चांदी ,सोने में लाते थे, उसके बाद पत्थर पर अंकित तस्वीर लाते थे. अब कागज पर फोटो लाते हैं.

अकाल मृत्यु वाले लोगों की तस्वीर
अकाल मृत्यु वाले लोगों की तस्वीर

शाम 6 बजे के बाद कोई नहीं रुकता
वहीं, प्रेतशिला पर्वत चढ़ने के दौरान एक छोटा सा नागा बाबा का कुटिया है. उनका नाम नागा गिरी बाबा है. उन्होंने बताया कि इस पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा है. रात्रि में 12 बजे के बाद प्रेत के भगवान आते हैं. पूरे विश्व मे सबसे पवित्र जगह यही है, इसलिए प्रेत यहां वास करते हैं. मैं तो आंखों से नहीं देखा हूं. लेकिन उछलने-कूदने की आवाज, प्रेत बाबा के आने के वक्त घण्टा बजने का आवाज सुनाई पड़ती है. यहां कोई भी शाम 6 बजे के बाद नहीं रुकता है. पंडा भी 6 बजे के बाद अपने घर लौट जाते हैं.

गया: इन दिनों पितृपक्ष प्रतिपदा चल रहा है. पितृपक्ष के दूसरे दिन प्रेतशिला में लोग पिंडदान करते हैं. यहां पिंडदान करने से प्रेतयोनि के पितरों को मुक्ति मिल जाती है. प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. इस पहाड़ पर आज भी भूत और प्रेत का वास रहता है. प्रेतशिला पहाड़ पर जाने के लिए 676 सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है.

प्रेतशिला के शिखर पर जाने के लिए खड़ी चढ़ाई और 676 सीढ़ी चढ़ना पड़ता है. पिंडदानियों के लिए बड़ा कष्टदायक रहता है. यहां जाने के लिए भाड़े पर पालकी भी मिलता है. प्रेतशिला के आस पास के लोग हर रोज प्रेतशिला के शिखर तक पहुंचते हैं. स्थानीय 70 वर्षीय दो बुजुर्ग यहां हर रोज जाते हैं. उन्होंने कहा कि सीढ़ी चढ़ना कष्टदायक है. लेकिन जो सीढ़ी पर पांव रख दिया, वो चढ़ जाता है. यहां एक अलौकिक शक्ति है, जो लोगों को खिंचती है.

पेश है रिपोर्ट

भगवान ब्रह्मा ने रखी थी शर्त

प्रेतशिला को लेकर एक दंत कथा है कि ब्रह्मा जी सोने का पहाड़ ब्राह्मण को दान में दिया था, सोने का पहाड़ दान में देने के बाद ब्रह्मा जी ब्राह्मणों से शर्त रखा था, अगर आप लोग किसी से दान लेंगे, तो ये सोने का पर्वत ,पत्थरों का पर्वत हो जाएगा. राजा भोग ने झल से पंडा को दान दे दिया. इसके बाद ये पर्वत पत्थरों का पर्वत बन गया. ब्राह्मणों ने भगवान ब्रह्ना से गुहार लगाई. हम लोगों की जीविका कैसे चलेगी? ब्रह्मा जी ने कहा इस पहाड़ पर बैठकर मेरे पांव पर जो पिंडदान करेगा, उसके पीतर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलेगी. इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखा है. कहा जाता है कि तीनों स्वर्ण रेखा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान रहेंगे. इसके बाद से ही इस पर्वत को प्रेतशिला कहा गया है. ब्रहा जी के पदचिह्न पर पिंडदान होने लगा.

पिंडदान करते श्रद्धालु
पिंडदान करते श्रद्धालु

'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'
प्रेतशिला पर्वत पर एक धर्मशीला है, जिस पर पिंडदानी ब्रह्ना जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर कहते हैं 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'. कहा जाता है कि सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. साथ ही यहां भगवान विष्णु की प्रतिमा है. पिंडदानी अकाल मृत्यु वाले लोगों की तस्वीर भगवान विष्णु चरण में रखते है. उस मंदिर की पुजारी 6 माह तक उसे पूजा करके उस तस्वीर को गंगा में प्रवाहित कर देता है. पुजारी बताते है कि पहले लोग चांदी ,सोने में लाते थे, उसके बाद पत्थर पर अंकित तस्वीर लाते थे. अब कागज पर फोटो लाते हैं.

अकाल मृत्यु वाले लोगों की तस्वीर
अकाल मृत्यु वाले लोगों की तस्वीर

शाम 6 बजे के बाद कोई नहीं रुकता
वहीं, प्रेतशिला पर्वत चढ़ने के दौरान एक छोटा सा नागा बाबा का कुटिया है. उनका नाम नागा गिरी बाबा है. उन्होंने बताया कि इस पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा है. रात्रि में 12 बजे के बाद प्रेत के भगवान आते हैं. पूरे विश्व मे सबसे पवित्र जगह यही है, इसलिए प्रेत यहां वास करते हैं. मैं तो आंखों से नहीं देखा हूं. लेकिन उछलने-कूदने की आवाज, प्रेत बाबा के आने के वक्त घण्टा बजने का आवाज सुनाई पड़ती है. यहां कोई भी शाम 6 बजे के बाद नहीं रुकता है. पंडा भी 6 बजे के बाद अपने घर लौट जाते हैं.

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