ETV Bharat / state

इलेक्ट्रिक चाक से दिये बनाकर गया के कुम्हार बदल रहे अपनी किस्मत

नौरंगा गांव में रहने वाले 100 कुम्हार परिवारों में मात्र 10 से 12 कुम्हार ही इलेक्ट्रिक चाक से दिये बना रहे हैं, जबकि ज्यादातर गरीब कारीगर परंपरागत चाक पर ही निर्भर हैं. ऐसा में ये सरकार से सब्सिडी पर इलेक्ट्रिक चाक की मांग कर रहे हैं.

इलेक्ट्रॉनिक चाक
author img

By

Published : Oct 17, 2019, 7:18 AM IST

Updated : Oct 17, 2019, 10:40 AM IST

गयाः दीपावली की तैयारी आम तौर पर दशहरा के बाद ही होती है, लेकिन प्रजापति समाज के लोग इसकी तैयारी चार महीने पहले से ही करने लगते हैं. जिले के कुम्हार दिन-रात एक करके दीप बनाने में जुटे हैं. दीपावली में दिये की ज्यादा मांग को देखकर मानपुर प्रखंड के नौरंगा गांव के कुछ कारीगर इलेक्ट्रिक चाक से दिये बना रहे हैं.

gaya
इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाता कुम्हार

इलेक्ट्रिक चाक से दिये बना रहे कुम्हार
गया के नौरंगा गांव में तकरीबन 100 परिवार प्रजापति समाज के हैं. लगभग सभी घरों में मिट्टी के बर्तन और सामान बनाने का काम किया जाता है. ज्यादातर घरों में अब भी परंपरागत चाक के सहारे ही दिये बनाए जाते हैं. जबकि कुछ कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप और खिलौना बनाते हैं. ये लोग पिछले दो दशक से इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीपावली के दिये बनाते हैं.

gaya
दीपावली के लिए बना दीया

2001 में मिली थी इलेक्ट्रिक चाक की जानकारी
कारीगर शिवदयाल प्रजापति ने बताया कि यहां सिर्फ 10 से 12 लोग ही इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाते हैं. 2001 में एक एनजीओ ने हमलोगों को इलेक्ट्रॉनिक चाक के बारे में बताया था. फिल हमलोग कलकत्ता गए, फिर वहीं से इलेक्ट्रॉनिक चाक खरीदकर लाए और काम शुरू किया. इसका उपयोग करने के लिए बहुत कम जगह चाहिए, कम समय में परंपरागत चाक से ज्यादा दिये इससे बनते हैं और बहुत आराम भी है.

gaya
परंपरागत चाक से दीया बनाता कुम्हार

पहले से बेहतर है परिवार की स्थिति
इस इलेक्ट्रॉनिक चाक में एक मशीन लगी हुई है, जिसमें स्पीड कम और ज्यादा करने की व्यवस्था है. बिजली की भी ज्यादा खपत नहीं होती. हालांकि इस चाक से बड़े बर्तन नहीं बन पाते हैं. लेकिन सभी साइज के दिये, खिलौने, प्याली और ग्लास बन जाते हैं. इन कुम्हारों का कहना है कि इस इलेक्ट्रॉनिक चाक की वजह से गरीबी दूर हो गई है. पहले से बेहतर स्थिति से जीवन यापन हो रहा है.

gaya
मिट्टी का दीया

प्रजापति समाज की सरकार से मांग
वहीं, रंजीत प्रजापति ने बताया कि मेरे घर में परंपरागत चाक से दीप बनाया जाता है. इसमें मेहनत बहुत लगती है, उसके अनुसार बहुत मुनाफा नहीं मिलता है. परंपरागत चाक एक घण्टे में 150 दिये बनाता है. वहीं इलेक्ट्रॉनिक चाक 250 दिये बनाता है. नौरंगा गांव के कारीगरों की सरकार से मांग है कि उन्हें सब्सिडी के तहत इलेक्ट्रॉनिक चाक दिए जाएं.

gaya
नौरंगा गांव

आज भी बनते हैं परंपरागत चाक से दिये
बता दें कि इस आधुनिक युग में भी बिहार में बहुत कम जगहों पर इलेक्ट्रॉनिक चाक से मिट्टी के बर्तन या दिये बनाए जाते हैं. जबकि पड़ोसी राज्य यूपी में अधिकांश कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक का उपयोग करते हैं. वहां की सरकार सब्सिडी पर प्रजापति समाज के कारीगरों को इलेक्ट्रॉनिक चाक देती है. बिहार में इस ओर सरकार की कोई पहल और योजना नहीं है.

स्पेशल रिपोर्ट

गयाः दीपावली की तैयारी आम तौर पर दशहरा के बाद ही होती है, लेकिन प्रजापति समाज के लोग इसकी तैयारी चार महीने पहले से ही करने लगते हैं. जिले के कुम्हार दिन-रात एक करके दीप बनाने में जुटे हैं. दीपावली में दिये की ज्यादा मांग को देखकर मानपुर प्रखंड के नौरंगा गांव के कुछ कारीगर इलेक्ट्रिक चाक से दिये बना रहे हैं.

gaya
इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाता कुम्हार

इलेक्ट्रिक चाक से दिये बना रहे कुम्हार
गया के नौरंगा गांव में तकरीबन 100 परिवार प्रजापति समाज के हैं. लगभग सभी घरों में मिट्टी के बर्तन और सामान बनाने का काम किया जाता है. ज्यादातर घरों में अब भी परंपरागत चाक के सहारे ही दिये बनाए जाते हैं. जबकि कुछ कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप और खिलौना बनाते हैं. ये लोग पिछले दो दशक से इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीपावली के दिये बनाते हैं.

gaya
दीपावली के लिए बना दीया

2001 में मिली थी इलेक्ट्रिक चाक की जानकारी
कारीगर शिवदयाल प्रजापति ने बताया कि यहां सिर्फ 10 से 12 लोग ही इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाते हैं. 2001 में एक एनजीओ ने हमलोगों को इलेक्ट्रॉनिक चाक के बारे में बताया था. फिल हमलोग कलकत्ता गए, फिर वहीं से इलेक्ट्रॉनिक चाक खरीदकर लाए और काम शुरू किया. इसका उपयोग करने के लिए बहुत कम जगह चाहिए, कम समय में परंपरागत चाक से ज्यादा दिये इससे बनते हैं और बहुत आराम भी है.

gaya
परंपरागत चाक से दीया बनाता कुम्हार

पहले से बेहतर है परिवार की स्थिति
इस इलेक्ट्रॉनिक चाक में एक मशीन लगी हुई है, जिसमें स्पीड कम और ज्यादा करने की व्यवस्था है. बिजली की भी ज्यादा खपत नहीं होती. हालांकि इस चाक से बड़े बर्तन नहीं बन पाते हैं. लेकिन सभी साइज के दिये, खिलौने, प्याली और ग्लास बन जाते हैं. इन कुम्हारों का कहना है कि इस इलेक्ट्रॉनिक चाक की वजह से गरीबी दूर हो गई है. पहले से बेहतर स्थिति से जीवन यापन हो रहा है.

gaya
मिट्टी का दीया

प्रजापति समाज की सरकार से मांग
वहीं, रंजीत प्रजापति ने बताया कि मेरे घर में परंपरागत चाक से दीप बनाया जाता है. इसमें मेहनत बहुत लगती है, उसके अनुसार बहुत मुनाफा नहीं मिलता है. परंपरागत चाक एक घण्टे में 150 दिये बनाता है. वहीं इलेक्ट्रॉनिक चाक 250 दिये बनाता है. नौरंगा गांव के कारीगरों की सरकार से मांग है कि उन्हें सब्सिडी के तहत इलेक्ट्रॉनिक चाक दिए जाएं.

gaya
नौरंगा गांव

आज भी बनते हैं परंपरागत चाक से दिये
बता दें कि इस आधुनिक युग में भी बिहार में बहुत कम जगहों पर इलेक्ट्रॉनिक चाक से मिट्टी के बर्तन या दिये बनाए जाते हैं. जबकि पड़ोसी राज्य यूपी में अधिकांश कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक का उपयोग करते हैं. वहां की सरकार सब्सिडी पर प्रजापति समाज के कारीगरों को इलेक्ट्रॉनिक चाक देती है. बिहार में इस ओर सरकार की कोई पहल और योजना नहीं है.

स्पेशल रिपोर्ट
Intro:दीपावली पर्व की तैयारी हम और आप दशहरा पर्व के बाद करते है लेकिन प्रजापति समाज पिछले चार माह पहले से करने लगता है। गया के प्रजापति समाज दीपावली को लेकर दिन रात एक करके बना दीप बना रहे हैं। दीपावली में दीप के अधिक मांग को लेकर गया के मानपुर प्रखंड के नौरंगा गांव के कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बना रहे हैं।


Body:दीपावली पर्व में इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स जितना भी लगा ले लेकिन परंपरागत तरीके से उस दिन दीप का महत्व होता है। शहर से गांव - कस्बे तक हर कोई दीप में तेल या घी डालकर रुई के बती के सहारे दीप जलाकर अपना घर को जगमग करते हैं। दीपावली को लेकर दीप का मांग बढ़ जाता है। कारीगर चार माह पूर्व से दीप बनाने लगता है करगिरो ने दीप के बढ़ते मांग को लेकर इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाने लगे इसे कम समय मे ज्यादा दीप बनता हैं।

गया के नोरंगा गांव में करीब 100 परिवार प्रजापति समाज से है लगभग सभी घरों में मिट्टी का बर्तन और सामान बनाने का काम किया जाता है। अधिकांश घरों में अब भी परंपरागत चाक के सहारे ही दीप बनाया जाता है वही एक दर्जन कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप , खिलौना बनाते हैं। इन कारीगरों ने पिछले दो दशक से इलेक्ट्रॉनिक चाक से दिपावली के दीप बनाते हैं।

कारीगर शिवदयाल प्रजापति ने बताया यहां 10 से 12 लोग इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाते हैं। 2001 में एक एनजीओ ने आकर हमलोग को इलेक्ट्रॉनिक चाक के बारे में बताया। कम समय और कम लागत में ज्यादा फायदा होगा। हमलोग कलकत्ता गए वहां जाकर देखे और जाने, फिर वही से खरीदकर लाकर काम शुरू किए। इसके उपयोग करने के लिए बहुत कम जगह चाहिए, कम समय मे परंपरागत चाक से ज्यादा दीप बनाकर देता है और बहुत आराम भी हो गया है। इस इलेक्ट्रॉनिक चाक में एक मशीन लगा हुआ उसमे स्पीड कम और ज्यादा करनेवाला हैं। इलेक्ट्रॉनिक चाक चलाने में ज्यादा बिजली का खपत नही होता है। हालांकि इस चाक से बड़े बतर्न नही बन पाते हैं लेकिन सभी साइज का दिया, खिलौना, प्याली और ग्लास बन जाता है। दीपावली के लिए कई महीने पहले से दीप बनाना शुरू कर देते हैं इस वक़्त दीप का मांग बढ़ जाता है। इस इलेक्ट्रॉनिक चाक के वजह से गरीबी दूर हो गयी हैं पहले की स्थिति से बहुत बेहतर से जीवनयापन हो रहा है।

रंजीत प्रजापति ने बताया मेरे घर मे परंपरागत चाक से दीप बनाया जाता है। इसमें मेहनत बहुत लगता हैं उसके अनुसार मुनाफा नही मिलता है। परंपरागत चाक एक घण्टा में 150 से दिया बनाता है वही इलेक्ट्रॉनिक चाक 250 से बनाता है। हमलोग सरकार से मांग करते हैं सरकार हमे भी सब्सिडी के तहत इलेक्ट्रॉनिक चाक दे।

दीपावली में दीप के बढ़ते मांग को लेकर कुम्हार जाती जुड़े कारीगर कई महीनों से दीप तो बनाते हैं। लेकिन उनकर साथ भी समस्या , नौरंगा गांव के कारीगरों का सरकार से मांग हैं हमलोग सरकारी डर पर मिट्टी दिया जाए। हर कारीगर औसतन दीपावली के दीप और खिलौना बनाने को लेकर 5 से 10 ट्रैक्टर मिट्टी का खर्च होता हैं।


Conclusion:बिहार में इस आधुनिक युग मे बहुत कम जगहों पर इलेक्ट्रॉनिक चाक से मिट्टी के बर्तन बनाया जाता है। जबकि पड़ोस के राज्य में यूपी में अधिकांश कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक का उपयोग करता है। वहा के सरकार सब्सिडी से प्रजापति समाज के कारिगरों को इलेक्ट्रॉनिक चाक देता है। बिहार में इस ओर सरकार का कोई पहल और योजना नही है जो इलेक्ट्रॉनिक चाक का प्रयोग कर रहे है वो सभी किसी संस्था कर सहयोग से शुरू किया या तो किसी का देखकर का शुरू किया।
Last Updated : Oct 17, 2019, 10:40 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.