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14 साल की उम्र में विष्णु देव ने अंग्रेजों के खिलाफ बोल दिया हल्ला, फूंक दी थीं कई पुलिस चौकियां - gaya news

14 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई के लिए अपना घर छोड़ अंग्रेजों से लोहा लेने वाले गया के विष्ण देव नारायण सिंह स्वतंत्रता संग्राम की पूरी कहानी बताते हैं. वे कहते हैं कि हमने सम्मानित होने के लिए नहीं बल्कि देश की आवाम को सम्मानित महसूस कराने के लिए लड़ाई लड़ी.

ईटीवी भारत
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Published : Aug 15, 2020, 6:05 PM IST

गया: देशभर में आज स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है. ऐसे में उन किरदारों के बारे में भी जानना बेहद जरूरी हो जाता है, जिन्होंने आजादी के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिन्हें हम स्वतंत्रता सेनानी कहते हैं. मोक्ष और ज्ञान की धरती से ऐसे ही एक योद्धा ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था और वे आजादी की पूरी कहानी अपने लफ्जों में बताते हैं.

सरकारी दस्तावेजों में लगभग 150 स्वतंत्रता सेनानियों का नाम अंकित है, उन्हीं में गया जिले के स्वतंत्रता सेनानी विष्णु देव नारायण सिंह हैं, जो अभी स्वस्थ हैं. उन्होंने महज 14 वर्ष की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूदकर फिरंगियों के दो थानों को आग के हवाले कर दिया था. इसके बाद उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने जेल की काल कोठरी में डाल दिया.

सुनें स्वतंत्रता संग्राम की पूरी कहानी, विष्णु देव नारायण की जुबानी

आजादी के लिए छोड़ दिया घर
गया जिले के टिकारी प्रखंड के चितखोर गांव के एक जमींदार के घर साल 1925 के जनवरी माह में जन्मे विष्णु देव नारायण सिंह महज के जहन में आजादी की ऐसी अलख जागी कि उन्होंने 14 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया. घर छोड़ते ही उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश झंडा जला डाला. विष्णु देव नारायण यहीं नहीं रुकने वाले थे. उन्होंने इसके बाद टिकारी थाना और 13 दिन बाद बिहारशरीफ थाने को जलाकर राख कर दिया.

राष्ट्रपति से मिला सम्मान
राष्ट्रपति से मिला सम्मान

दी गई जेल यातना
अंग्रेजों को खुली चुनौती दे चुके विष्णु देव नारायण सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और तीन साल तक अलग-अलग जेलों में रखकर यातनाएं दी. ईटीवी भारत पर आजादी की वीरगाथा बताते हुए विष्ण देव नारायण कहते हैं कि उन्हें फुलवारी शरीफ कैंप जेल में जंजीरों से बांधकर रखा गया और खूब यातनाएं दी. अंग्रेज एक जेल में स्थायी रूप से कभी नहीं रखते थे.

'जरूरी नहीं मैं सम्मानित हूं, मेरे देश की आवाम सम्मानित रहे'
'जरूरी नहीं मैं सम्मानित हूं, मेरे देश की आवाम सम्मानित रहे'

आजादी की लड़ाई में शामिल होने से लेकर देश के वर्तमान हालातों के बारे में स्वतंत्रता सेनानी विष्णुदेव नारायण सिंह बेबाकी से अपनी बात रखते हुए आगे बताते हैं कि मैं जेल में तीन वर्ष तक रहा था. इस दरम्यान अंग्रेजी हुकूमत ने बहुत जुल्म किया. जेल के अंदर कैदी से तेल का कोल्हू चढ़वाया जाता था. हमलोग ने विरोध किया, तो दोनो हाथ की अंगुली को तोड़ दी गईं. खाने के लिए हमेशा रूखा सूखा मिलता था.

लोकमान्य तिलक से मिली प्रेरणा
विष्णुदेव बताते हैं, 'स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में लोकमान्य तिलक से प्रेरणा लेकर आया था. उसके बाद गांधी जी से प्रभावित हुआ था. पहली बार गांधी जी से जहानाबाद में मुलाकात हुई. जेल में रहने के दौरान हजारीबाग जेल से कपड़े के माध्यम से जयप्रकाश नारायण को भगाया था. जेल में जगजीवन राम से मुलाकात भी हुई थी.

'गांधी जी की पहल पर छोड़े गए'
अपनी यादें ताजा करते हुए विष्णुदेव कहते हैं, 'जेल यातनाओं के बाद भी हमारी देशभक्ति कम नहीं हो रही थी. गांधी जी की पहल पर मुझे जेल से छोड़ा गया. उसके बाद भी हम आजादी के लिए अपने कदम बढ़ाते गये. अंत में हमारी जीत हुई और देश आजाद हो गया.'

'सम्मान नहीं, देश को खुशहाल देखना चाहता हूं'
विष्णुदेव नारायण सिंह कहते है कि मुझे कई बार राष्ट्रपति ने सम्मानित किया है लेकिन मैं सम्मानित नहीं होना चाहता हूं. मैं सम्मानित होकर क्या मिलेगा. मेरा देश सम्मानित हो, मेरा देश खुशहाल हो. यही चाहता हूं. हम लोग आजादी की लड़ाई खुद सम्मानित होने के लिए नहीं लड़े. देश का हर अवाम सम्मानित महसूस करे इसलिए लड़े.

  • स्वंतत्रता सेनानी विष्णुदेव नारायण सिंह ऑल इंडिया फ्रीडम फाइटर के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह बिहार प्रदेश के अध्यक्ष है.
  • विष्णुदेव नारायण सिंह 97 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवार की समस्याओं पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करवाते हैं.
  • वर्तमान देश के हालातों पर उन्होंने दुख जाहिर किया है.
  • कोरोना काल में सरकार के कामों से संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं.
  • वहीं उन्होंने कश्मीर को 370 मुक्त करने पर खुशी जाहिर की है.
  • वो कहते हैं कि हमारी स्वतंत्रता की लड़ाई पर धारा 370 धब्बा थी.

'मुझे लगता था कि कमी रह गई, जो कश्मीर को आजाद नहीं करवा पाए. वर्तमान सरकार ने कश्मीर को आजाद करवाया, उन्हें साधुवाद.'- विष्णुदेव नारायण सिंह, फ्रीडम फाइटर

गया: देशभर में आज स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है. ऐसे में उन किरदारों के बारे में भी जानना बेहद जरूरी हो जाता है, जिन्होंने आजादी के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिन्हें हम स्वतंत्रता सेनानी कहते हैं. मोक्ष और ज्ञान की धरती से ऐसे ही एक योद्धा ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था और वे आजादी की पूरी कहानी अपने लफ्जों में बताते हैं.

सरकारी दस्तावेजों में लगभग 150 स्वतंत्रता सेनानियों का नाम अंकित है, उन्हीं में गया जिले के स्वतंत्रता सेनानी विष्णु देव नारायण सिंह हैं, जो अभी स्वस्थ हैं. उन्होंने महज 14 वर्ष की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूदकर फिरंगियों के दो थानों को आग के हवाले कर दिया था. इसके बाद उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने जेल की काल कोठरी में डाल दिया.

सुनें स्वतंत्रता संग्राम की पूरी कहानी, विष्णु देव नारायण की जुबानी

आजादी के लिए छोड़ दिया घर
गया जिले के टिकारी प्रखंड के चितखोर गांव के एक जमींदार के घर साल 1925 के जनवरी माह में जन्मे विष्णु देव नारायण सिंह महज के जहन में आजादी की ऐसी अलख जागी कि उन्होंने 14 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया. घर छोड़ते ही उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश झंडा जला डाला. विष्णु देव नारायण यहीं नहीं रुकने वाले थे. उन्होंने इसके बाद टिकारी थाना और 13 दिन बाद बिहारशरीफ थाने को जलाकर राख कर दिया.

राष्ट्रपति से मिला सम्मान
राष्ट्रपति से मिला सम्मान

दी गई जेल यातना
अंग्रेजों को खुली चुनौती दे चुके विष्णु देव नारायण सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और तीन साल तक अलग-अलग जेलों में रखकर यातनाएं दी. ईटीवी भारत पर आजादी की वीरगाथा बताते हुए विष्ण देव नारायण कहते हैं कि उन्हें फुलवारी शरीफ कैंप जेल में जंजीरों से बांधकर रखा गया और खूब यातनाएं दी. अंग्रेज एक जेल में स्थायी रूप से कभी नहीं रखते थे.

'जरूरी नहीं मैं सम्मानित हूं, मेरे देश की आवाम सम्मानित रहे'
'जरूरी नहीं मैं सम्मानित हूं, मेरे देश की आवाम सम्मानित रहे'

आजादी की लड़ाई में शामिल होने से लेकर देश के वर्तमान हालातों के बारे में स्वतंत्रता सेनानी विष्णुदेव नारायण सिंह बेबाकी से अपनी बात रखते हुए आगे बताते हैं कि मैं जेल में तीन वर्ष तक रहा था. इस दरम्यान अंग्रेजी हुकूमत ने बहुत जुल्म किया. जेल के अंदर कैदी से तेल का कोल्हू चढ़वाया जाता था. हमलोग ने विरोध किया, तो दोनो हाथ की अंगुली को तोड़ दी गईं. खाने के लिए हमेशा रूखा सूखा मिलता था.

लोकमान्य तिलक से मिली प्रेरणा
विष्णुदेव बताते हैं, 'स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में लोकमान्य तिलक से प्रेरणा लेकर आया था. उसके बाद गांधी जी से प्रभावित हुआ था. पहली बार गांधी जी से जहानाबाद में मुलाकात हुई. जेल में रहने के दौरान हजारीबाग जेल से कपड़े के माध्यम से जयप्रकाश नारायण को भगाया था. जेल में जगजीवन राम से मुलाकात भी हुई थी.

'गांधी जी की पहल पर छोड़े गए'
अपनी यादें ताजा करते हुए विष्णुदेव कहते हैं, 'जेल यातनाओं के बाद भी हमारी देशभक्ति कम नहीं हो रही थी. गांधी जी की पहल पर मुझे जेल से छोड़ा गया. उसके बाद भी हम आजादी के लिए अपने कदम बढ़ाते गये. अंत में हमारी जीत हुई और देश आजाद हो गया.'

'सम्मान नहीं, देश को खुशहाल देखना चाहता हूं'
विष्णुदेव नारायण सिंह कहते है कि मुझे कई बार राष्ट्रपति ने सम्मानित किया है लेकिन मैं सम्मानित नहीं होना चाहता हूं. मैं सम्मानित होकर क्या मिलेगा. मेरा देश सम्मानित हो, मेरा देश खुशहाल हो. यही चाहता हूं. हम लोग आजादी की लड़ाई खुद सम्मानित होने के लिए नहीं लड़े. देश का हर अवाम सम्मानित महसूस करे इसलिए लड़े.

  • स्वंतत्रता सेनानी विष्णुदेव नारायण सिंह ऑल इंडिया फ्रीडम फाइटर के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह बिहार प्रदेश के अध्यक्ष है.
  • विष्णुदेव नारायण सिंह 97 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवार की समस्याओं पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करवाते हैं.
  • वर्तमान देश के हालातों पर उन्होंने दुख जाहिर किया है.
  • कोरोना काल में सरकार के कामों से संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं.
  • वहीं उन्होंने कश्मीर को 370 मुक्त करने पर खुशी जाहिर की है.
  • वो कहते हैं कि हमारी स्वतंत्रता की लड़ाई पर धारा 370 धब्बा थी.

'मुझे लगता था कि कमी रह गई, जो कश्मीर को आजाद नहीं करवा पाए. वर्तमान सरकार ने कश्मीर को आजाद करवाया, उन्हें साधुवाद.'- विष्णुदेव नारायण सिंह, फ्रीडम फाइटर

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