गया: मोक्षधाम के रूप में प्रख्यात गया शहर में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष महासंगम-2019 चल रहा है. इस मेले में देश-विदेश से लाखों की संख्या में तीर्थयात्री गयाजी पहुंच रहे हैं. तीर्थयात्री गया में अपने पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान कर्मकांड कर रहे हैं. इन तीर्थयात्रियों को सेवा देने के लिए शिविर के माध्यम से कई सामाजिक संस्थाएं कार्य कर रही है.
शहर के रामसागर रोड स्थित सूर्य मंदिर के पास वर्णवाल महिला सेवा समिति की तरफ से शिविर लगाया गया. शिविर के माध्यम से तीर्थ यात्रियों को चाय, बिस्कुट, पानी और खीर खिलाई जा रही है.
महिलाओं ने की तीर्थयात्रियों की सेवा
वर्णवाल महिला सेवा समिति की जिलाध्यक्ष सुषमा बरनवाल ने कहा कि तीर्थयात्रियों को सेवा देने के लिए सिर्फ पुरुष ही आगे नहीं है, बल्कि समाज की महिलाएं भी आगे आ रही है. वर्णवाल महिला समिति की ओर से शिविर के माध्यम से मेला में आए तीर्थयात्रियों को पानी और खीर भी प्रसाद के रूप में वितरित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि गया शहर में तीर्थयात्री अपने पितरों को मोक्ष की कामना को लेकर आते हैं. ऐसे में हमारा कर्तव्य बनता है कि तीर्थयात्रियों को कोई परेशानी ना हो. तीर्थयात्री गया शहर से संतुष्ट होकर जाए और एक अच्छा संदेश अपने साथ ले जाएं. इसी उद्देश्य से हम तीर्थयात्रियों की सेवा के लिए लगातार लगे हुए हैं.
तीर्थ यात्रियों के लिए लगाया गया शिविर
बरनवाल महिला सेवा समिति की सचिव भारती प्रियदर्शनी ने कहा कि गया शहर मोक्षधाम के लिए प्रसिध्द है. तीर्थयात्रियों को कोई परेशानी ना हो इसके लिए महिलाएं भी सामाजिक कार्यों में भाग ले रही है. उन्होंने कहा कि हमारी संस्था की तरफ से कई जनहित में कार्य किए जा रहे हैं. वहीं होशंगाबाद जिला से आये तीर्थयात्री कृष्ण कुमार दुबे ने कहा कि पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी तीर्थ यात्रियों को सेवा कर रही है. यह एक अच्छी पहल है.
पितृपक्ष का महत्व
14 सितंबर से आश्विन कृष्ण पक्ष का आरंभ हो चुका है जो 28 सितंबर 2019 तक चलेगा. शास्त्रों में बताया गया है कि इस पक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाना चाहिए. आश्विन कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक को पितृपक्ष कहा जाता है. लोक मान्यता के अनुसार और पुराणों में भी बताया गया है कि पितृ पक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता है. वह पिंडदान, अन्न और जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं. इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय कर पाते हैं. इन्हीं अन्न जल की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों का रक्षा कर पाते हैं.