गयाः जिले में एक साल पहले गीले कचरे से खाद बनाने के लिए शहर के दो स्थानों पर जैविक खाद निर्माण केंद्र बनाया गया था. एक साल बीत जाने के बाद भी इन दोनों केंद्रों से एक बोरा खाद भी बाजार तक नहीं पहुंचा, लेकिन केंद्र के पास कचरे का अंबार जरूर लग गया.
नैली पंचायत के केंद्र से नहीं बना खाद
नगर निगम ने शहर के कचरे के निष्पादन के लिए डीआरडीए परिसर और नैली पंचायत में दो जैविक खाद निर्माण केंद्र बनाया था. डीआरडीए परिसर वाले केंद्र पर तो गीले कचरा से खाद बना, लेकिन नैली पंचायत स्थित दूसरा निर्माण केंद्र खुद कचरे के ढेर में तब्दील हो गया. लाखों रुपये की लागत से बना ये दोनों केंद्र एक साल बीत जाने पर भी जनता के लिए काम नहीं आ सका.
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कृषि विभाग ने जांच के लिए भेजा पटना
इन दोनों केंद्रों से एक बोरा भी जैविक खाद बनकर बाजार में नहीं जा सका है. ईटीवी भारत ने जब इस संबंध में उपनगर आयुक्त से बात की तो उन्होंने कहा कि डीआरडीए परिसर में गीले कचरे से खाद बन रहा है, उतना गिला कचरा नहीं आता है कि दूसरे निर्माण केंद्र पर भेजा जाए. डीआरडीए परिसर के जैविक खाद निर्माण केंद्र से बना खाद जांच के लिए कृषि विभाग को दिया गया है, कृषि विभाग ने उसे पटना भेजा है.
'शहर से नहीं आ पाता ज्यादा कचरा'
उपनगर आयुक्त ने कहा कि जांच होकर आने के बाद आदेश मिलने पर पैकेजिंग होगी. हम लोगों ने हॉल मार्क, लोगो सब तैयार करके रखा है. उम्मीद है एक माह में सहमति मिल जाएगी. उसके बाद कचरा से बना जैविक खाद मार्केट में बिकने लगेगा. उप नगर आयुक्त ने ये भी बताया कि शहर और डोर टू डोर कचरा उठाव से उतना कचरा नहीं आता है, जिससे उतना खाद बनाया जा सके.
ट्रेनिंग के लिए केरल से बुलाया गया था ट्रेनर
दरअसल कचरा से खाद बनाने के लिए गया नगर निगम के कर्मी को ट्रेनिंग देने के लिए केरल से ट्रेनर आये थे. कर्मियों ने कचरा से खाद बनाना तो सीख लिया. लेकिन सवाल ये है एक साल में जहां तीन बार कम से कम खाद बनना चाहिए था, वहां एक साल बीत जाने पर भी बना खाद कृषि विभाग के जांच घर में है.