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तिब्बती रोटी की गया में बढ़ी डिमांड, बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा समेत लजीज 'फालेप' के हैं मुरीद

तिब्बत से सात दशक पहले फालेप यानी तिब्बती रोटी बोधगया पहुंचा. पिछले 70 साल से बोधगया में इस तिब्बती रोटी का निर्माण हो रहा है. इनदिनों बोधगया में इसकी काफी मांग है. यह बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के भी डिश में शामिल है. अभी रोज 20 हजार फालेप की बिक्री हो रही है. पढ़ें पूरी खबर..

तिब्बती रोटी फालेप
तिब्बती रोटी फालेप
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 26, 2023, 8:55 PM IST

Updated : Dec 27, 2023, 8:42 AM IST

गया : बिहार के बोधगया में फालेप (खाने वाला ब्रेड, तिब्बती रोटी) की बिक्री इन दिनों काफी हो रही है. बोधगया में पर्यटन सीजन है और बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा बोधगया प्रवास पर हैं. ऐसे में देश और विदेशों से बौद्ध श्रद्धालुओं का आगमन लगातार जारी है. इसके बीच फालेप (स्थानीय भाषा में पाले) यानी तिब्बती रोटी की बिक्री रोजाना 20 हजार के आसपास हो रही है. फालेप बौद्ध श्रद्धालुओं की पहली च्वाइस है. बौद्ध श्रद्धालुओं की मानें, तो यह फालेप (पाले) बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा के भी डिश में शामिल है.

बोधगया में प्रतिदिन बिक रहा 20 हजार फालेप : बोधगया में इन दिनों 20 हजार से अधिक बिक रहे हैं. बोधगया के पच्छटी मोहल्ले में इसे बनाने वाले 500 परिवार हैं. तकरीबन 500 घरों में फालेप बनाए जा रहे हैं. 1000 लोगों को इससे रोजगार मिलता है. यह पर्यटन सीजन का सबसे बड़ा कारोबार बोधगया के स्थानीय लोगों के लिए होता है. फिलहाल में रोजाना यह 20 हजार बिक रहा है. यह देश हो या विदेशों बौद्ध धर्मावलंबी, यह उनकी पहली च्वाइस होती है.

फालेप खरीदते बौद्ध भिक्षुक
फालेप खरीदते बौद्ध भिक्षुक
बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के भी डिश में शामिल : इसे बोधगया के पचछट्टी में 500 परिवार बनाते हैं. इस परिवार के लोग इसे पाले कहते हैं. वहीं, फालेप को सामान्य तौर पर तिब्बती रोटी भी कहा जाता है. इन दिनों बौद्ध श्रद्धालुओं का आगमन देश और विदेशों से हो रहा है. तकरीबन 3 दर्जन देश से बौद्ध श्रद्धालु आ रहे हैं. इसके बीच बौद्ध श्रद्धालुओं की पहली च्वाइस के रूप में फालेप है. सबसे बड़ी बात यह है, कि बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के डिश में भी यह शामिल है. इस तरह की बात बौद्ध धर्मावलंबी भी बताते हैं. उनका कहना है, कि बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के डिश में फालेप जरूर शामिल होता है.

6- 7 दशक पहले भारत में बनना शुरू हुआ : आमतौर पर फालेप को तिब्बत रोटी कहते हैं. यह पहले सिर्फ तिब्बत में ही बनाया जाता था, लेकिन 6-7 दशक पहले यह भारत में भी बनाए जाने लगा. अभी बोधगया में अकेले फालेप बनाने वाले 500 से अधिक परिवार हैं. 500 से अधिक परिवार में 1000 लोग इस रोजगार से सीधे जुड़े होते हैं. ये रोज सुबह होते ही इन दिनों फालेप बना रहे हैं, क्योंकि इन दिनों बौद्ध श्रद्धालुओं से बुद्ध भूमि पटी है.

गया में फालेप बनाती महिला
गया में फालेप बनाती महिला

500 से अधिक परिवार फालेप बना रहे हैं : इस संबंध में फालेप बनाने वाले राजेश चौधरी बताते हैं, कि पच्छटी मोहल्ले में 500 से अधिक परिवार इसे बना रहे हैं. सुबह और शाम में फालेप बनाने का काम किया जाता है. वैसे कई ऐसी भी दुकान है, जहां दिन भर फालेप बनते रहते हैं, क्योंकि अभी पर्यटन सीजन है और बौद्ध धर्म गुरु बोधगया में प्रवास कर रहे हैं. ऐसे में बौद्ध श्रद्धालुओं का आगमन काफी संख्या में देश और विदेशों से हो रहा है. ऐसे में फालेप की मांग बनी हुई है.

"फिलहाल 20 हजार फालेप पच्छटी मोहल्ले में 500 घरों से बनाए जा रहे हैं. इसके ऑर्डर रोजाना पहले ही आ जाते हैं. बिना आर्डर के ऐसे भी बनाकर इसकी बिक्री खूब होती है."- राजेश चौधरी, फालेप बनाने वाले

गया में फालेप बनाती महिला
गया में फालेप बनाती महिला

ऐसे बनतात है फालेप : इस संबंध में बोधगया के पच्छटी की बबीता देवी कहती है कि फालेप बौद्ध धर्म के लोगों की पहली पसंद है. इसका स्वाद भी काफी अच्छा और लजीज है. पहले यह सिर्फ तिब्बत में बनता था अब बोधगया में बड़े पैमाने पर पच्छटी मोहल्ले में बनता है. इसे गूंथना और 12 घंटे के समय के लिए छोड देने की गैपिंग इसके स्वाद को बढ़ाती है. रात में मैदा को गर्म पानी से गूंंथते हैं. मैदा गूंंथने के बाद ठीक से साफ सफाई तरीके से प्लास्टिक वाले बाल्टी में रखकर उसे ढक देते हैं.

"सुबह में मैदा और सोडा मिक्स करते हैं. इसके बाद तावा पर डालकर फालेप यानी कि पहले या तिब्बती रोटी कह सकते हैं, वह बनाते हैं. इसे ज्यादातर बौद्ध धर्म के लोग चाय के साथ खाते हैं. वहीं इसे सब्जी के साथ भी लिया जा सकता है. यह किसी भी तरीके से खाया जाए, इसका स्वाद काफी लजीज होता है. बड़े से चूल्हे में बड़ा तावा में इसे बनते पच्छटी के पूरे मोहल्ले में देखा जा सकता है."- बबीता देवी, फालेप बनाने वाली

गया में फालेप बनाती महिला
गया में फालेप की बढ़ी डिमांड

कीमत है सिर्फ 10 रुपये :आज के महंगाई के दौर में भी इसकी कीमत सिर्फ 10 रूपए ही है. यह 10 रूपए का ब्रेड विदेशियों की पहली पसंद है. देश के अनेक राज्यों से आने वाले बौद्ध धर्म के लोगों की कहे, या विदेश से आने वाले बौद्ध धर्मावलंबी की, सभी की पहली च्वाइस यह फालेप यानी कि तिब्बती रोटी होती है. 10 रूपए की यह ब्रेड खाने की खातिर बौद्ध श्रद्धालु पच्छट्टी मोहल्ले में पहुंचते हैं और फुटपाथ जैसी दुकानों में बैठकर चाव से खाते हैं. इस तरह बेहतरीन होटल को छोड़कर विदेशी बौद्ध श्रद्धालु फालेप खाने के लिए करकट -झोपड़ी वाले फुटपाथ दुकानों में जाते हैं और इसका चाव से सेवन करते हैं.

हम लोग फालेप खाते हैं :वहीं, लद्दाख की बौद्ध श्रद्धालु महिला बताती है कि हम लोग फालेप ही ज्यादा खाते हैं. फालेप काफी स्वादिष्ट होता है. इसे हम लोग नाश्ते या भोजन के तौर पर लेते हैं. इसका स्वाद हमें काफी पसंद है. वही बौद्ध श्रद्धालु बताते हैं कि फालेप हम लोगों को पसंद है ही, यह बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा के भी डिश में शामिल है.

लजीज फालेप
लजीज फालेप
ठंड के दिनों में 2 से 3 महीने का होता है सीजन : ठंड के महीने में फालेप का कारोबार दो से तीन महीने का सीजन के रूप में सामने आता है. यह समय पच्छटी मोहल्ले में खुशियां लेकर आता है, क्योंकि स्थानीय लोगों को इससे बङा रोजगार मिल जाता है. 2 से 3 महीने लोगों को बेकार नहीं रहने पड़ते. जो जितनी मेहनत करता है, उतनी कमाई होती है. स्थानीय लोग बताते हैं कि जैसे ही पर्यटन सीजन खत्म होता है, तो हमारे समक्ष बेरोजगारी की समस्या होती है. इसके बाद फालेप बनाने वाले हम कुशल कारीगर कोई मजदूरी करते हैं तो कोई राज मिस्त्री का काम करता है. महिलाएं भी बेकार हो घर में ही रहती हैं.

प्रवचन के दौरान होती है ज्यादा मांग : फिलहाल विदेशियों की पहली पसंद फालेप है. फिलहाल में 20 हजार रोज बिक्री हो रही है. बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के प्रवचन के दौरान बढ़ेगी मांग, 50 हजार से भी ज्यादा बिकेगी. बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का 29, 30 और 31 दिसंबर को प्रवचन का कार्यक्रम है. बताया जाता है, कि प्रवचन के प्रतिदिन 50 हजार से भी अधिक रोजाना फालेप बनेंगे.
ये भी पढ़ें : बोधगया में अंतर्राष्ट्रीय संघ फोरम का 3 दिवसीय सम्मेलन शुरू, 35 देशों के 2500 बौद्ध विद्वानों का जुटान

गया : बिहार के बोधगया में फालेप (खाने वाला ब्रेड, तिब्बती रोटी) की बिक्री इन दिनों काफी हो रही है. बोधगया में पर्यटन सीजन है और बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा बोधगया प्रवास पर हैं. ऐसे में देश और विदेशों से बौद्ध श्रद्धालुओं का आगमन लगातार जारी है. इसके बीच फालेप (स्थानीय भाषा में पाले) यानी तिब्बती रोटी की बिक्री रोजाना 20 हजार के आसपास हो रही है. फालेप बौद्ध श्रद्धालुओं की पहली च्वाइस है. बौद्ध श्रद्धालुओं की मानें, तो यह फालेप (पाले) बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा के भी डिश में शामिल है.

बोधगया में प्रतिदिन बिक रहा 20 हजार फालेप : बोधगया में इन दिनों 20 हजार से अधिक बिक रहे हैं. बोधगया के पच्छटी मोहल्ले में इसे बनाने वाले 500 परिवार हैं. तकरीबन 500 घरों में फालेप बनाए जा रहे हैं. 1000 लोगों को इससे रोजगार मिलता है. यह पर्यटन सीजन का सबसे बड़ा कारोबार बोधगया के स्थानीय लोगों के लिए होता है. फिलहाल में रोजाना यह 20 हजार बिक रहा है. यह देश हो या विदेशों बौद्ध धर्मावलंबी, यह उनकी पहली च्वाइस होती है.

फालेप खरीदते बौद्ध भिक्षुक
फालेप खरीदते बौद्ध भिक्षुक
बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के भी डिश में शामिल : इसे बोधगया के पचछट्टी में 500 परिवार बनाते हैं. इस परिवार के लोग इसे पाले कहते हैं. वहीं, फालेप को सामान्य तौर पर तिब्बती रोटी भी कहा जाता है. इन दिनों बौद्ध श्रद्धालुओं का आगमन देश और विदेशों से हो रहा है. तकरीबन 3 दर्जन देश से बौद्ध श्रद्धालु आ रहे हैं. इसके बीच बौद्ध श्रद्धालुओं की पहली च्वाइस के रूप में फालेप है. सबसे बड़ी बात यह है, कि बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के डिश में भी यह शामिल है. इस तरह की बात बौद्ध धर्मावलंबी भी बताते हैं. उनका कहना है, कि बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के डिश में फालेप जरूर शामिल होता है.

6- 7 दशक पहले भारत में बनना शुरू हुआ : आमतौर पर फालेप को तिब्बत रोटी कहते हैं. यह पहले सिर्फ तिब्बत में ही बनाया जाता था, लेकिन 6-7 दशक पहले यह भारत में भी बनाए जाने लगा. अभी बोधगया में अकेले फालेप बनाने वाले 500 से अधिक परिवार हैं. 500 से अधिक परिवार में 1000 लोग इस रोजगार से सीधे जुड़े होते हैं. ये रोज सुबह होते ही इन दिनों फालेप बना रहे हैं, क्योंकि इन दिनों बौद्ध श्रद्धालुओं से बुद्ध भूमि पटी है.

गया में फालेप बनाती महिला
गया में फालेप बनाती महिला

500 से अधिक परिवार फालेप बना रहे हैं : इस संबंध में फालेप बनाने वाले राजेश चौधरी बताते हैं, कि पच्छटी मोहल्ले में 500 से अधिक परिवार इसे बना रहे हैं. सुबह और शाम में फालेप बनाने का काम किया जाता है. वैसे कई ऐसी भी दुकान है, जहां दिन भर फालेप बनते रहते हैं, क्योंकि अभी पर्यटन सीजन है और बौद्ध धर्म गुरु बोधगया में प्रवास कर रहे हैं. ऐसे में बौद्ध श्रद्धालुओं का आगमन काफी संख्या में देश और विदेशों से हो रहा है. ऐसे में फालेप की मांग बनी हुई है.

"फिलहाल 20 हजार फालेप पच्छटी मोहल्ले में 500 घरों से बनाए जा रहे हैं. इसके ऑर्डर रोजाना पहले ही आ जाते हैं. बिना आर्डर के ऐसे भी बनाकर इसकी बिक्री खूब होती है."- राजेश चौधरी, फालेप बनाने वाले

गया में फालेप बनाती महिला
गया में फालेप बनाती महिला

ऐसे बनतात है फालेप : इस संबंध में बोधगया के पच्छटी की बबीता देवी कहती है कि फालेप बौद्ध धर्म के लोगों की पहली पसंद है. इसका स्वाद भी काफी अच्छा और लजीज है. पहले यह सिर्फ तिब्बत में बनता था अब बोधगया में बड़े पैमाने पर पच्छटी मोहल्ले में बनता है. इसे गूंथना और 12 घंटे के समय के लिए छोड देने की गैपिंग इसके स्वाद को बढ़ाती है. रात में मैदा को गर्म पानी से गूंंथते हैं. मैदा गूंंथने के बाद ठीक से साफ सफाई तरीके से प्लास्टिक वाले बाल्टी में रखकर उसे ढक देते हैं.

"सुबह में मैदा और सोडा मिक्स करते हैं. इसके बाद तावा पर डालकर फालेप यानी कि पहले या तिब्बती रोटी कह सकते हैं, वह बनाते हैं. इसे ज्यादातर बौद्ध धर्म के लोग चाय के साथ खाते हैं. वहीं इसे सब्जी के साथ भी लिया जा सकता है. यह किसी भी तरीके से खाया जाए, इसका स्वाद काफी लजीज होता है. बड़े से चूल्हे में बड़ा तावा में इसे बनते पच्छटी के पूरे मोहल्ले में देखा जा सकता है."- बबीता देवी, फालेप बनाने वाली

गया में फालेप बनाती महिला
गया में फालेप की बढ़ी डिमांड

कीमत है सिर्फ 10 रुपये :आज के महंगाई के दौर में भी इसकी कीमत सिर्फ 10 रूपए ही है. यह 10 रूपए का ब्रेड विदेशियों की पहली पसंद है. देश के अनेक राज्यों से आने वाले बौद्ध धर्म के लोगों की कहे, या विदेश से आने वाले बौद्ध धर्मावलंबी की, सभी की पहली च्वाइस यह फालेप यानी कि तिब्बती रोटी होती है. 10 रूपए की यह ब्रेड खाने की खातिर बौद्ध श्रद्धालु पच्छट्टी मोहल्ले में पहुंचते हैं और फुटपाथ जैसी दुकानों में बैठकर चाव से खाते हैं. इस तरह बेहतरीन होटल को छोड़कर विदेशी बौद्ध श्रद्धालु फालेप खाने के लिए करकट -झोपड़ी वाले फुटपाथ दुकानों में जाते हैं और इसका चाव से सेवन करते हैं.

हम लोग फालेप खाते हैं :वहीं, लद्दाख की बौद्ध श्रद्धालु महिला बताती है कि हम लोग फालेप ही ज्यादा खाते हैं. फालेप काफी स्वादिष्ट होता है. इसे हम लोग नाश्ते या भोजन के तौर पर लेते हैं. इसका स्वाद हमें काफी पसंद है. वही बौद्ध श्रद्धालु बताते हैं कि फालेप हम लोगों को पसंद है ही, यह बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा के भी डिश में शामिल है.

लजीज फालेप
लजीज फालेप
ठंड के दिनों में 2 से 3 महीने का होता है सीजन : ठंड के महीने में फालेप का कारोबार दो से तीन महीने का सीजन के रूप में सामने आता है. यह समय पच्छटी मोहल्ले में खुशियां लेकर आता है, क्योंकि स्थानीय लोगों को इससे बङा रोजगार मिल जाता है. 2 से 3 महीने लोगों को बेकार नहीं रहने पड़ते. जो जितनी मेहनत करता है, उतनी कमाई होती है. स्थानीय लोग बताते हैं कि जैसे ही पर्यटन सीजन खत्म होता है, तो हमारे समक्ष बेरोजगारी की समस्या होती है. इसके बाद फालेप बनाने वाले हम कुशल कारीगर कोई मजदूरी करते हैं तो कोई राज मिस्त्री का काम करता है. महिलाएं भी बेकार हो घर में ही रहती हैं.

प्रवचन के दौरान होती है ज्यादा मांग : फिलहाल विदेशियों की पहली पसंद फालेप है. फिलहाल में 20 हजार रोज बिक्री हो रही है. बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के प्रवचन के दौरान बढ़ेगी मांग, 50 हजार से भी ज्यादा बिकेगी. बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का 29, 30 और 31 दिसंबर को प्रवचन का कार्यक्रम है. बताया जाता है, कि प्रवचन के प्रतिदिन 50 हजार से भी अधिक रोजाना फालेप बनेंगे.
ये भी पढ़ें : बोधगया में अंतर्राष्ट्रीय संघ फोरम का 3 दिवसीय सम्मेलन शुरू, 35 देशों के 2500 बौद्ध विद्वानों का जुटान

Last Updated : Dec 27, 2023, 8:42 AM IST
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