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वैलेन्टाइन डे स्पेशल: 'प्रेम पथ' को अमर करने के लिए माउंटेन मैन ने चीर डाला था 'पहाड़ का सीना' - दशरथ मांझी के बेटे भगीरथ मांझी

प्यार तो सब करते हैं लेकिन कोई-कोई ही ऐसा होता है जिनका प्यार इतिहास बन जाता है. ऐसा ही प्यार था एक मजदूर का अपनी पत्नी के लिए. जिसने एक छेनी-हथौड़े की मदद से पहाड़ को काटकर उसके बीच रास्ता बना दिया. इस मजदूर की प्यारी सनक ने लोगों के राह को आसान बना दिया.

मांझी का प्रेम पथ
मांझी का प्रेम पथ
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Published : Feb 14, 2021, 7:03 AM IST

Updated : Feb 14, 2021, 2:08 PM IST

गया: वैलेंटाइन के दिन गया के गेहलौर घाटी पर खास तरह की रौनक होती है. लोग माउंटेन मैन दशरथ मांझी के प्रेम पथ को देखने गेहलौर घाटी पहुंचते हैं. ये वही घाटी है, जो 'दशरथ और फगुनिया' के प्यार की गवाही देती है.

दशरथ मांझी द्वारा
दशरथ मांझी द्वारा

दशरथ मांझी का जीवन दुख भरा रहा है, उनका प्रेम ऐसा था जिसमें रोमांस नहीं था, लेकिन प्यार की पराकाष्ठा थी. वो शाहजहां जैसे दमकता ताजमहल नहीं बना सकते थे. मजदूर थे. अपने मेहनतकश हाथों से पहाड़ का सीना भी चीर सकते थे. सो उन्होंने एक दिन वही करना शुरू किया.

पेश है रिपोर्ट

संसाधन के अभाव में बिगड़ी थी तबीयत
ईटीवी भारत ने इस बारे में उनके बेटे भगीरथ मांझी से बात की. भगीरथ मांझी ने ईटीवी भारत से उस वक्त की दर्दभरी कहानी बयां की. दशरथ मांझी अपनी पत्नी फाल्गुनी के साथ गेहलौर में रहते थे. उन दोनों की जिंदगी की गाड़ी गरीबी में भी काफी अच्छे से चल रही थी. दशरथ खेतों में काम करते, मजदूरी करते और फाल्गुनी उनके लिए खाना लेकर रोज जाती थीं. एक दिन पहाड़ चढ़ते वक्त फाल्गुनी देवी खाना लेकर गिर गईं. उनके सिर पर काफी चोट आई. संसाधन के अभाव में फाल्गुनी देवी की तबीयत बिगड़ती चली गई. इलाज नहीं मिलपाने से वो चल बसीं. अपनी पत्नी को आंखों के सामने मरता देख दशरथ ने ठान लिया कि वो मगरूर पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता निकालेंगे.

इसी पहाड़ को दशरथ मांझी ने काटा था
इसी पहाड़ को दशरथ मांझी ने काटा था

'एक दिन मेरी मां पहाड़ पर गिर गईं. सिर पर रखा घड़ा फूट गया. खाना बिखर गया. जब पिता जंगल से लौटे तो उनकी ये दशा देखकर काफी विचलित हुए. इलाज नहीं मिल पाने की वजह से मेरी मां चल बसीं. पिता ने उसी वक्त ठान लिया कि वो एक दिन गेहलौर पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता निकालकर दम लेंगे' -भगीरथ मांझी, दशरथ मांझी के बेटे

दशरथ मांझी
दशरथ मांझी

ये भी पढ़ें- आ गया प्रेमियों का दिन 'वैलेंटाइन डे', सरप्राइज प्लान करने में जुटे युवा

लोग समझते थे पागल
दशरथ मांझी को पहाड़ काटता देखकर लोग उन्हें पागल समझते थे. लोगों को लगता था कि अकेला मांझी क्या कर सकता है. लोग उनका उपहास उड़ाते लेकिन जब पहाड़ पर रास्ते की लकीर बना दी तो लोगों को भी एहसास हो गया. लोग समझ गए और मांझी की मदद के लिए हाथ बढ़ाने लगे. छेनी और हथौड़े से लगातार 22 साल पहाड़ को काटते रहे. उस पहाड़ के बीच से 360 फीट लंबा 25 फीट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता निकाल दिया.

दशरथ मांझी
दशरथ मांझी की मूर्ति

2007 में दुनिया को कह दिया अलविदा
गौरतलब है कि दशरथ मांझी की सच्ची प्रेम कहानी पर 2015 में फिल्म डायरेक्टर केतन मेहता ने मांझी द माउंटेन मैन के नाम से फिल्म बनाई थी. दशरथ मांझी ने 22 साल के अथक परिश्रम से गेहलौर घाटी श्रृंखला के पहाड़ को 360 फुट लंबा 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता बना दिया. वहीं दशरथ मांझी के इस काम को देख बॉलीवुड डायरेक्टर केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में दशरथ मांझी ने दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनकी मेहनत, त्याग और प्यार की पराकाष्ठा गेहलौर घाटी की गवाही देती है. इस घाटी को लोग अब प्रेम पथ के नाम से भी जानते हैं.

गया: वैलेंटाइन के दिन गया के गेहलौर घाटी पर खास तरह की रौनक होती है. लोग माउंटेन मैन दशरथ मांझी के प्रेम पथ को देखने गेहलौर घाटी पहुंचते हैं. ये वही घाटी है, जो 'दशरथ और फगुनिया' के प्यार की गवाही देती है.

दशरथ मांझी द्वारा
दशरथ मांझी द्वारा

दशरथ मांझी का जीवन दुख भरा रहा है, उनका प्रेम ऐसा था जिसमें रोमांस नहीं था, लेकिन प्यार की पराकाष्ठा थी. वो शाहजहां जैसे दमकता ताजमहल नहीं बना सकते थे. मजदूर थे. अपने मेहनतकश हाथों से पहाड़ का सीना भी चीर सकते थे. सो उन्होंने एक दिन वही करना शुरू किया.

पेश है रिपोर्ट

संसाधन के अभाव में बिगड़ी थी तबीयत
ईटीवी भारत ने इस बारे में उनके बेटे भगीरथ मांझी से बात की. भगीरथ मांझी ने ईटीवी भारत से उस वक्त की दर्दभरी कहानी बयां की. दशरथ मांझी अपनी पत्नी फाल्गुनी के साथ गेहलौर में रहते थे. उन दोनों की जिंदगी की गाड़ी गरीबी में भी काफी अच्छे से चल रही थी. दशरथ खेतों में काम करते, मजदूरी करते और फाल्गुनी उनके लिए खाना लेकर रोज जाती थीं. एक दिन पहाड़ चढ़ते वक्त फाल्गुनी देवी खाना लेकर गिर गईं. उनके सिर पर काफी चोट आई. संसाधन के अभाव में फाल्गुनी देवी की तबीयत बिगड़ती चली गई. इलाज नहीं मिलपाने से वो चल बसीं. अपनी पत्नी को आंखों के सामने मरता देख दशरथ ने ठान लिया कि वो मगरूर पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता निकालेंगे.

इसी पहाड़ को दशरथ मांझी ने काटा था
इसी पहाड़ को दशरथ मांझी ने काटा था

'एक दिन मेरी मां पहाड़ पर गिर गईं. सिर पर रखा घड़ा फूट गया. खाना बिखर गया. जब पिता जंगल से लौटे तो उनकी ये दशा देखकर काफी विचलित हुए. इलाज नहीं मिल पाने की वजह से मेरी मां चल बसीं. पिता ने उसी वक्त ठान लिया कि वो एक दिन गेहलौर पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता निकालकर दम लेंगे' -भगीरथ मांझी, दशरथ मांझी के बेटे

दशरथ मांझी
दशरथ मांझी

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लोग समझते थे पागल
दशरथ मांझी को पहाड़ काटता देखकर लोग उन्हें पागल समझते थे. लोगों को लगता था कि अकेला मांझी क्या कर सकता है. लोग उनका उपहास उड़ाते लेकिन जब पहाड़ पर रास्ते की लकीर बना दी तो लोगों को भी एहसास हो गया. लोग समझ गए और मांझी की मदद के लिए हाथ बढ़ाने लगे. छेनी और हथौड़े से लगातार 22 साल पहाड़ को काटते रहे. उस पहाड़ के बीच से 360 फीट लंबा 25 फीट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता निकाल दिया.

दशरथ मांझी
दशरथ मांझी की मूर्ति

2007 में दुनिया को कह दिया अलविदा
गौरतलब है कि दशरथ मांझी की सच्ची प्रेम कहानी पर 2015 में फिल्म डायरेक्टर केतन मेहता ने मांझी द माउंटेन मैन के नाम से फिल्म बनाई थी. दशरथ मांझी ने 22 साल के अथक परिश्रम से गेहलौर घाटी श्रृंखला के पहाड़ को 360 फुट लंबा 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता बना दिया. वहीं दशरथ मांझी के इस काम को देख बॉलीवुड डायरेक्टर केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में दशरथ मांझी ने दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनकी मेहनत, त्याग और प्यार की पराकाष्ठा गेहलौर घाटी की गवाही देती है. इस घाटी को लोग अब प्रेम पथ के नाम से भी जानते हैं.

Last Updated : Feb 14, 2021, 2:08 PM IST
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