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Mandala Farming in Gaya: मंडला आर्ट की तर्ज पर 20 सब्जियों और फलों की खेती, कम लागत में अधिक उत्पादन.. जानें खासियत

बिहार के गया में मंडला आर्ट की तर्ज पर खेती से भरपूर लाभ नजर आ रहा है. इस विधि से एक साथ उगाई जा रही 20 सब्जियां और फल से कई प्रकार के फायदे की उम्मीद है. इसके जरिए पर्यावरण से भी जुड़ने का सबसे अच्छा मौका मिलता है. पढ़ें पूरी खबर...

गया में मंडला खेती
गया में मंडला खेती
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Published : May 8, 2023, 1:12 PM IST

Updated : May 8, 2023, 1:22 PM IST

रेखा देवी की मंडला खेती

गया: बिहार के गया में मंडला आर्ट की तर्ज पर खेती (Mandala Art In Gaya For Cultivation) की शुरुआत हुई है. इस खेती को करने वाले अनिल कुमार और रेखा देवी सहोदय ट्रस्ट का संचालन से जुड़े हुए हैं. यह ट्रस्ट गरीब बच्चों के लिए शिक्षा पर काम करती है. वह बताते हैं कि बिहार में इक्के-दुक्के स्थानों पर मंडला खेती की जाती है और वहीं से सीखकर गया के कोहवरी में इसकी शुरुआत की गई है. मंडला खेती के तहत 20 सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं. यह खेती अलग-अलग आकार में होती है. इसका उद्देश्य कम मेहनत में ज्यादा उपज लेना और मिट्टी से कम छेड़छाड़ के साथ ही मिट्टी की क्षति का बचाव करना भी है.

ये भी पढे़ं- Gaya News: 'मेक इन गया' के 50 प्रोडक्ट Amazon पर उपलब्ध, टिकारी एग्रो को मिला बिहार का बेस्ट FPO का पुरस्कार

कई आकार में की जा रही खेती: गया के कोहवरी गांव में मंडला खेती कर रही रेखा देवी बताती हैं कि मंडला एक आर्ट होता है. यह गोलाकार समेत अलग-अलग शेप (आकार) में होता है. अलग-अलग आकार में इसके जरिए खेती की जाती है. बताती है कि इसका मकसद कम मेहनत में ज्यादा ऊपज लेना और अपनी मिट्टी से कम छेड़छाड़ करना है. इस तरह की खेती से मिट्टी की क्षति बचाया जा सकता है. अपने जीवन के लिए सब्जी और फल आवश्यकतानुसार उगा सकते हैं.

सात पद्धति से तैयार होती है: संचालिका रेखा देवी ने बताया कि वह सहोदय ट्रस्ट से जुड़ी हुई है. गरीब बच्चों के शिक्षा के लिए काम करती है. लेकिन हमारे यहां बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ खेती और पर्यावरण के संबंध में भी जानकारी दी जाती है. फिलहाल में जो मंडला खेती हो रही है. उसमें भी बच्चे सीखते हैं. बच्चों को भी मंडला खेती की जानकारी दी जा रही है.

मंडला खेती की विधि: वह बताती है कि सात पद्धति से मंडला खेती के तहत फसल तैयार होती है. सबसे पहले मिट्टी को कोड़कर उसमें लकड़ी डालते हैं. उसके बाद मिट्टी से ढक देते हैं. फिर खरपतवार डालकर मिट्टी डाली जाती है. उसके बाद कंपोस्ट जो कि जैविक गोबर आदि होते हैं. उसे भी डाला जाता है. इसके बाद फिर से मिट्टी डाल दी जाती है. उसके बाद बीज की रोपाई होती है. फिर खरपतवार घास पत्ते से ढक देते हैं. फिर पानी का छिड़काव के बाद नमी पाकर केंचुआ छिद्र करता है. जिससे हवा अप डाउन होता है. वह इन पौधों के लिए खाद बन जाता है. फिलहाल मंडला खेती के तहत भिंडी, बोरा, कद्दू, करैला, खीरा, तरबूज, 4 तरह की साग, कोहड़ा, मिर्ची समेत अन्य फल और सब्जी एक साथ उपजाए जा रहे हैं.

शुरुआत में मेहनत दूसरी बार से आराम: रेखा ने बताया कि "यदि मंडला खेती की विधि से पहली फसल तैयार होती है. तब फिर दूसरी फसल को बिना कोड़े हुए लगाएंगे. उसमें 7 पध्दति को नहीं अपनाना पड़ेगा. पुरानी फसल निकालने के बाद नई फसल के लिए बीज लगाना है. फिर खरपतवार से ढक देंगे और पानी का छिड़काव नमी के लिए करेंगे. इसके बाद इस तरह से कम मेहनत में सब्जी फल की फसल उपजाई जा सकेगी".

कम मेहनत में लाभ ज्यादा लाभ: वह बताती है कि किसान भी इस तरह की विधि को अपनाकर कम मेहनत और ज्यादा फसल एक साथ मंडला खेती के तहत उपजा सकते हैं. इस तरह मिट्टी से भी छेड़छाड़ कम होगी. जिससे मिट्टी को क्षति कम पहुंचेगी और यह पर्यावरण के लिए काफी बेहतर होगा.

रेखा देवी की मंडला खेती

गया: बिहार के गया में मंडला आर्ट की तर्ज पर खेती (Mandala Art In Gaya For Cultivation) की शुरुआत हुई है. इस खेती को करने वाले अनिल कुमार और रेखा देवी सहोदय ट्रस्ट का संचालन से जुड़े हुए हैं. यह ट्रस्ट गरीब बच्चों के लिए शिक्षा पर काम करती है. वह बताते हैं कि बिहार में इक्के-दुक्के स्थानों पर मंडला खेती की जाती है और वहीं से सीखकर गया के कोहवरी में इसकी शुरुआत की गई है. मंडला खेती के तहत 20 सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं. यह खेती अलग-अलग आकार में होती है. इसका उद्देश्य कम मेहनत में ज्यादा उपज लेना और मिट्टी से कम छेड़छाड़ के साथ ही मिट्टी की क्षति का बचाव करना भी है.

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कई आकार में की जा रही खेती: गया के कोहवरी गांव में मंडला खेती कर रही रेखा देवी बताती हैं कि मंडला एक आर्ट होता है. यह गोलाकार समेत अलग-अलग शेप (आकार) में होता है. अलग-अलग आकार में इसके जरिए खेती की जाती है. बताती है कि इसका मकसद कम मेहनत में ज्यादा ऊपज लेना और अपनी मिट्टी से कम छेड़छाड़ करना है. इस तरह की खेती से मिट्टी की क्षति बचाया जा सकता है. अपने जीवन के लिए सब्जी और फल आवश्यकतानुसार उगा सकते हैं.

सात पद्धति से तैयार होती है: संचालिका रेखा देवी ने बताया कि वह सहोदय ट्रस्ट से जुड़ी हुई है. गरीब बच्चों के शिक्षा के लिए काम करती है. लेकिन हमारे यहां बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ खेती और पर्यावरण के संबंध में भी जानकारी दी जाती है. फिलहाल में जो मंडला खेती हो रही है. उसमें भी बच्चे सीखते हैं. बच्चों को भी मंडला खेती की जानकारी दी जा रही है.

मंडला खेती की विधि: वह बताती है कि सात पद्धति से मंडला खेती के तहत फसल तैयार होती है. सबसे पहले मिट्टी को कोड़कर उसमें लकड़ी डालते हैं. उसके बाद मिट्टी से ढक देते हैं. फिर खरपतवार डालकर मिट्टी डाली जाती है. उसके बाद कंपोस्ट जो कि जैविक गोबर आदि होते हैं. उसे भी डाला जाता है. इसके बाद फिर से मिट्टी डाल दी जाती है. उसके बाद बीज की रोपाई होती है. फिर खरपतवार घास पत्ते से ढक देते हैं. फिर पानी का छिड़काव के बाद नमी पाकर केंचुआ छिद्र करता है. जिससे हवा अप डाउन होता है. वह इन पौधों के लिए खाद बन जाता है. फिलहाल मंडला खेती के तहत भिंडी, बोरा, कद्दू, करैला, खीरा, तरबूज, 4 तरह की साग, कोहड़ा, मिर्ची समेत अन्य फल और सब्जी एक साथ उपजाए जा रहे हैं.

शुरुआत में मेहनत दूसरी बार से आराम: रेखा ने बताया कि "यदि मंडला खेती की विधि से पहली फसल तैयार होती है. तब फिर दूसरी फसल को बिना कोड़े हुए लगाएंगे. उसमें 7 पध्दति को नहीं अपनाना पड़ेगा. पुरानी फसल निकालने के बाद नई फसल के लिए बीज लगाना है. फिर खरपतवार से ढक देंगे और पानी का छिड़काव नमी के लिए करेंगे. इसके बाद इस तरह से कम मेहनत में सब्जी फल की फसल उपजाई जा सकेगी".

कम मेहनत में लाभ ज्यादा लाभ: वह बताती है कि किसान भी इस तरह की विधि को अपनाकर कम मेहनत और ज्यादा फसल एक साथ मंडला खेती के तहत उपजा सकते हैं. इस तरह मिट्टी से भी छेड़छाड़ कम होगी. जिससे मिट्टी को क्षति कम पहुंचेगी और यह पर्यावरण के लिए काफी बेहतर होगा.

Last Updated : May 8, 2023, 1:22 PM IST
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