गयाः बिहार के गया में पितृ पक्ष मेला में पिंडदान किया जाता है. 28 सितंबर से शुरू हो रहे इस मेले में यहां के व्यवसायी को आर्थिक मदद भी मिलती है. मेले में करोड़ों रुपए का कारोबार होता है. सिर्फ मानपुर पटवा टोली की बात करें तो इस क्षेत्र में करीब 4 से 5 करोड़ का गमछा सहित अन्य वस्त्र बनाए जाते हैं, जो पितृ पक्ष मेले में बेचे जाते हैं. पिंडदान करने वाले यहां के गमछा को प्रसाद के रूप में मानते हैं. यहीं नहीं यहां का गमछा ओड़िसा के जगन्नाथपुरी भी जाते हैं.
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गमछे और अन्य वस्त्रों का निर्माणः मानपुर पटवा टोली को आईआईटियन की नगरी कहा जाता है. इस नगरी में जब मशीनें चलती है तो फिर रूकने का नाम नहीं लेती. इस आईआईटियन की नगरी में वस्त्रों का बड़ा व्यापार है. हजारों पावरलूम-हैंडलूम यहां संचालित हैं. इसकी खट-खट की आवाज दिन-रात गूंज रही है. पितृ पक्ष मेले लिए दिन रात गमछे, अंटी चादर, बेडशीट आदि का निर्माण हो रहे हैं.
लाखों पिंडदानी पहुंचते हैं गयाः पितृपक्ष मेले को देखते हुए मानपुर के पटवा टोली में दिन -रात गमछे आदि वस्त्रों का निर्माण कार्य हो रहा है. गया जी में पितृपक्ष मेला अब शुरू होने में चंद दिनों का समय रह गया है. पितृपक्ष मेले में हर साल लाखों पिंडदानी पहुंचते हैं. पिंडदान के निमित्त वस्त्रों की पूर्ति का काम मानपुर के पटवा टोली से ही होता है.
पटवाटोली में गमछे की डिमांडः पितरों को निमित्त वस्त्र अर्पित करने से लेकर पुरोहित पंडा को दान करने का विधान है. इसके अलावा देश के कई धार्मिक स्थलों के लिए भी मानपुर के पटवा टोली में ही डिमांड के अनुसार कपड़ों का निर्माण होता है. इसी में एक गया जी का पितृपक्ष मेला भी शामिल है, जहां पिंडदान के कर्मकांड में निमित वस्त्र पटवाटोली के बने होते हैं.
"पितृपक्ष मेला में देश के अलावा विदेशों से भी तीर्थयात्री पहुंचते हैं. कर्मकांड में वस्त्र दान का विधान है. यहां उत्पादित गमछा को पिंडदानी प्रसाद मानते हैं. हम लोगों के द्वारा अभी से ही गमछे आदि बनाने का काम किए जा रहे हैं. पितृपक्ष के दौरान करोड़ों का कारोबार हो जाता है, जो व्यवसाय की मंदी को भी दूर कर देता है." -युवराज पटवा, पावरलूम चलाने वाला
4 से 5 करोड़ का कारोबारः यहां अंटी चादर भी बनाए जा रहे हैं. पितृपक्ष मेले में तकरीबन 10 लाख तीर्थयात्री गयाजी पहुंचते हैं. ऐसे में एक मुश्त एक पखवाड़े में पहुंचने वाले 10 लाख तीर्थ यात्रियों के लिए मानपुर के पटवाटोली में वस्त्र का निर्माण कार्य दिन-रात अभी चल रहा है. 4 से 5 करोड़ रुपए का कारोबार इस महीने में होता है. इसको लेकर बुनकर जुटे हैं.
"तीर्थयात्री पिंडदान के कर्मकांड में वस्त्र का उपयोग करते हैं. ऐसे में हमारे पटवा टोली में फिलहाल में हजारों पावरलूम में दिन रात गमछे, अंटी चादर आदि बनाए जा रहे हैं. पितृ पक्ष में इतना सेल होता है कि हम डिमांड पूरी नहीं कर पाते हैं. यहां से बने वस्त्र जगन्नाथ पुरी भी जाते हैं. 5 लाख से अधिक वस्त्र अतिरिक्त तौर पर बिक्री हो जातीहै. 4 करोड़ का कारोबार पितृपक्ष मेले में होता है." -प्रेम नारायण पटवा, अध्यक्ष, पटवा समाज.
बुनकरों के बच्चे हैं आईआईटियन: मानपुर पटवा टोली को आईआईटियन की नगरी भी कहा जाता है. यहां खासियत यह है कि यहां बुनकरों के दर्जनों बच्चे इंजीनियर हैं. पटवा टोली के बच्चों ने पावरलूम के खट-खट की आवाज के बीच यह सफलता पाई है. आज के समय में यहां के बच्चे भारत ही नहीं बल्कि 18 देश में अपना परचम लहरा रहे हैं. यहां उनके परिवार पुशतैनी कारोबार को भी संभाल रहे हैं.