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बौद्ध भिक्षुओं के बीच किया गया कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन।

महाबोधि मंदिर प्रांगण में बौद्ध भिक्षुओं के सबसे कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन हुआ. इस दौरान तकरीबन 100 बौद्ध भिक्षुओं को गेरुआ रंग वस्त्र दान में दिया गया.

चीवरदान की परंपरा
चीवरदान की परंपरा
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Published : Dec 2, 2020, 7:53 PM IST

गया : अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर प्रांगण में बौद्ध भिक्षुओं का सबसे कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन हुआ. कोरोना के चलते सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए तकरीबन 100 बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवरदान किया गया. चीवरदान का मतलब गेरूआ रंग वस्त्र का दान होता है.

इस कार्यक्रम में शाम को विश्व शांति के लिए बौद्ध भिक्षुओं ने बौद्ध कालीन परंपरा के अनुसार विशेष पूजा और प्रार्थना की. इस संदर्भ में विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर के मुख्य पुजारी भंते चालिंदा ने बताया कि हमलोग प्रत्येक वर्ष कठिन चीवरदान समारोह मनाते हैं. इस बार कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए मात्र 100 बौद्ध भिक्षुओं को कठिन चीवरदान दिया गया है.

चीवरदान की परंपरा
पुजारी ने बताया कि चीवरदान देने की परंपरा भगवान बुद्ध के समय से चली आ रही है. 3 महीने के वर्षावास के बाद बौद्ध भिक्षुओं को चीवर देने की परंपरा है. बरसात के मौसम में बौद्ध भिक्षु एक जगह पर रहकर मेडिटेशन करते हैं. इसके बाद उन्हें चीवर दिया जाता है, जिसे पहनकर बौद्ध भिक्षु पूजा-पाठ करते हैं. कोरोना महामारी को खत्म करने एवं विश्व शांति को लेकर चीवरदान समारोह का आयोजन किया गया है.

गया : अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर प्रांगण में बौद्ध भिक्षुओं का सबसे कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन हुआ. कोरोना के चलते सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए तकरीबन 100 बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवरदान किया गया. चीवरदान का मतलब गेरूआ रंग वस्त्र का दान होता है.

इस कार्यक्रम में शाम को विश्व शांति के लिए बौद्ध भिक्षुओं ने बौद्ध कालीन परंपरा के अनुसार विशेष पूजा और प्रार्थना की. इस संदर्भ में विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर के मुख्य पुजारी भंते चालिंदा ने बताया कि हमलोग प्रत्येक वर्ष कठिन चीवरदान समारोह मनाते हैं. इस बार कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए मात्र 100 बौद्ध भिक्षुओं को कठिन चीवरदान दिया गया है.

चीवरदान की परंपरा
पुजारी ने बताया कि चीवरदान देने की परंपरा भगवान बुद्ध के समय से चली आ रही है. 3 महीने के वर्षावास के बाद बौद्ध भिक्षुओं को चीवर देने की परंपरा है. बरसात के मौसम में बौद्ध भिक्षु एक जगह पर रहकर मेडिटेशन करते हैं. इसके बाद उन्हें चीवर दिया जाता है, जिसे पहनकर बौद्ध भिक्षु पूजा-पाठ करते हैं. कोरोना महामारी को खत्म करने एवं विश्व शांति को लेकर चीवरदान समारोह का आयोजन किया गया है.

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