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Gaya News: तथागत की भूमि पर कृषक के रूप में दिखे बौद्ध भिक्षु, लीज पर खेत लेकर कर रहे विदेशी धान की खेती

बुद्ध की भूमि बोधगया में इन दिनों एक पर सुखद दृश्य देखने को मिल रहा है. जहां बौद्ध भिक्षु लीज पर खेत लेकर विदेशी धान स्टिकी राइस की खेती कर रहे हैं. तथागत की इस भूमि पर बौद्ध भिक्षु कृषक के रूप में भी दिख रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर..

तथागत की भूमि पर कृषक के रूप में दिखे बौद्ध भिक्षु
तथागत की भूमि पर कृषक के रूप में दिखे बौद्ध भिक्षु
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Published : Aug 10, 2023, 6:01 AM IST

बोधगया में विदेशी धान स्टिकी राइस की खेती कर रहे बौद्ध भिक्षु

गयाः बिहार के बोधगया में देश- विदेश से बौद्ध धर्म के लोग भगवान बुद्ध के दर्शन करने को तो आते ही हैं, लेकिन हालिया दिनों में यहां एक और सुखद नजारा देखने को मिल रहा है. दरअसल बौद्ध भिक्षु बोधगया में लीज पर खेत लेकर विदेशी धान यानि कि स्टिकी राइस की खेती कर रहे हैं. इसके लिए खेतों में धान की रोपनी उनके द्वारा की जा रही है.

ये भी पढ़ेः Gaya News: बिहार से हिमाचल पैदल पहुंचा बौद्ध भिक्षु, 8 महीने में पूरी की 2100 KM की यात्रा

स्टिकी राइस की खेती कर रहे बौद्ध भिक्षु: विदेशी पर्यटकों या बौद्ध भिक्षुओं के संबंध में यही माना जाता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्थली बोधगया में भगवान बुद्ध के दर्शन करने को ही आते हैं. लेकिन अब यह सामने आ रहा है, कि बौद्ध भिक्षु या पर्यटक भगवान बुद्ध की शरण में आने के साथ-साथ और भी कई ऐसे काम करते हैं, जो की प्रेरणा के स्त्रोत बन जाते हैं. इन्हीं कामों में उनके द्वारा बोधगया में खेत लीज पर लेकर स्टिकी राइस की खेती करना है. इसके लिए वे खुद ही रोपनी भी कर रहे हैं.

बोधगया के लोगों को सिखा रहे खेती के गुरः गौरतलब है कि मगध विश्वविद्यालय में 200 से ज्यादा विदेशी बौद्ध छात्र विभिन्न विषयों का अध्ययन करते हैं. ये छात्र यहां के बौद्ध मंदिरों में भी रहते हैं और बौद्ध भिक्षु के रूप में भी. अब कुछ बौद्ध मंदिरों में रहने वाले विदेशी बौद्ध भिक्षु अध्ययन के साथ-साथ अपने हिसाब से खेती के गुर बोधगया के लोगों को भी बता रहे हैं. साथ ही लीज पर खेत लेकर खेती भी कर रहे हैं.

पहले थाईलैंड से मंगवाते थे स्टिकी राइस: दरअसल बोधगया में सालों भर थाईलैंड, कंबोडिया समेत विभिन्न देशों से बौद्ध भिक्षुओं और पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है. ऐसे मैं स्टिकी राइस, जो उनके चवाइस का होता है, वह यहां नहीं मिलता है. इसी को लेकर बौद्ध भिक्षुओं ने बोधगया में में स्टिकी राइस की खेती शुरू कर दी है. क्योंकि पहले इन्हें थाईलैंड से स्टिकी राइस मंगवाना पड़ता था.

खेती करते बौद्ध भिक्षु
खेती करते बौद्ध भिक्षु

रोपनी में लगे बौद्ध छात्र-छात्राएं: जानकारी के अनुसार थाईलैंड से बोधगया आने वाला स्टिकी राइस यहां आकर काफी महंगे दामों में बिकता है. ऐसे में बौद्ध भिक्षुओं ने निर्णय लिया और आसपास के बोधगया वाले क्षेत्रों में कुछ जमीन लीज पर ली और अब उसमें स्टिकी राइस की खेती कर रहे हैं. बौद्धों भिक्षुओं को स्टिकी राइस की खेती करते देखा जा सकता है. इसमें कई बौद्ध छात्र-छात्राएं रोपनी में लगे हुए हैं, जो कि स्टिकी राइस यानि विदेशी फसल की है.

थाईलैंड और कंबोडिया के भिक्षुओं ने की शुरूआत: बताया जाता है कि बोधगया स्थित वट लाओस बौद्ध मंदिर में रहने वाले थाईलैंड और कंबोडिया के बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा पहली बार स्टिकी राइस की खेती की जा रही है. वहीं, इस संबंध में वट लाओस मंदिर के केयर टेकर संजय कुमार बताते हैं कि विदेशी बौद्ध भिक्षु करीब 20 कट्ठे से अधिक जमीन में धान की रोपनी कर रहे हैं. इसमें थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया के बौद्ध भिक्षु शामिल हैं और स्टिकी राइस की खेती की जा रही है.

"20 कट्ठे से अधिक जमीन में स्टिकी राइस की रोपनी की जा रही है. थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया के बौद्ध भिक्षु ये खेती कर रहे हैं, बाहर से आने वाला स्टिकी राइस यहां आकर काफी मंहगा बिकता है, इसलिए इन लोगों ने इसकी खेती यहीं पर करनी की सोची"- संजय कुमार, केयर टेकर, वट लाओस मंदिर

बोधगया में विदेशी धान स्टिकी राइस की खेती कर रहे बौद्ध भिक्षु

गयाः बिहार के बोधगया में देश- विदेश से बौद्ध धर्म के लोग भगवान बुद्ध के दर्शन करने को तो आते ही हैं, लेकिन हालिया दिनों में यहां एक और सुखद नजारा देखने को मिल रहा है. दरअसल बौद्ध भिक्षु बोधगया में लीज पर खेत लेकर विदेशी धान यानि कि स्टिकी राइस की खेती कर रहे हैं. इसके लिए खेतों में धान की रोपनी उनके द्वारा की जा रही है.

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स्टिकी राइस की खेती कर रहे बौद्ध भिक्षु: विदेशी पर्यटकों या बौद्ध भिक्षुओं के संबंध में यही माना जाता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्थली बोधगया में भगवान बुद्ध के दर्शन करने को ही आते हैं. लेकिन अब यह सामने आ रहा है, कि बौद्ध भिक्षु या पर्यटक भगवान बुद्ध की शरण में आने के साथ-साथ और भी कई ऐसे काम करते हैं, जो की प्रेरणा के स्त्रोत बन जाते हैं. इन्हीं कामों में उनके द्वारा बोधगया में खेत लीज पर लेकर स्टिकी राइस की खेती करना है. इसके लिए वे खुद ही रोपनी भी कर रहे हैं.

बोधगया के लोगों को सिखा रहे खेती के गुरः गौरतलब है कि मगध विश्वविद्यालय में 200 से ज्यादा विदेशी बौद्ध छात्र विभिन्न विषयों का अध्ययन करते हैं. ये छात्र यहां के बौद्ध मंदिरों में भी रहते हैं और बौद्ध भिक्षु के रूप में भी. अब कुछ बौद्ध मंदिरों में रहने वाले विदेशी बौद्ध भिक्षु अध्ययन के साथ-साथ अपने हिसाब से खेती के गुर बोधगया के लोगों को भी बता रहे हैं. साथ ही लीज पर खेत लेकर खेती भी कर रहे हैं.

पहले थाईलैंड से मंगवाते थे स्टिकी राइस: दरअसल बोधगया में सालों भर थाईलैंड, कंबोडिया समेत विभिन्न देशों से बौद्ध भिक्षुओं और पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है. ऐसे मैं स्टिकी राइस, जो उनके चवाइस का होता है, वह यहां नहीं मिलता है. इसी को लेकर बौद्ध भिक्षुओं ने बोधगया में में स्टिकी राइस की खेती शुरू कर दी है. क्योंकि पहले इन्हें थाईलैंड से स्टिकी राइस मंगवाना पड़ता था.

खेती करते बौद्ध भिक्षु
खेती करते बौद्ध भिक्षु

रोपनी में लगे बौद्ध छात्र-छात्राएं: जानकारी के अनुसार थाईलैंड से बोधगया आने वाला स्टिकी राइस यहां आकर काफी महंगे दामों में बिकता है. ऐसे में बौद्ध भिक्षुओं ने निर्णय लिया और आसपास के बोधगया वाले क्षेत्रों में कुछ जमीन लीज पर ली और अब उसमें स्टिकी राइस की खेती कर रहे हैं. बौद्धों भिक्षुओं को स्टिकी राइस की खेती करते देखा जा सकता है. इसमें कई बौद्ध छात्र-छात्राएं रोपनी में लगे हुए हैं, जो कि स्टिकी राइस यानि विदेशी फसल की है.

थाईलैंड और कंबोडिया के भिक्षुओं ने की शुरूआत: बताया जाता है कि बोधगया स्थित वट लाओस बौद्ध मंदिर में रहने वाले थाईलैंड और कंबोडिया के बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा पहली बार स्टिकी राइस की खेती की जा रही है. वहीं, इस संबंध में वट लाओस मंदिर के केयर टेकर संजय कुमार बताते हैं कि विदेशी बौद्ध भिक्षु करीब 20 कट्ठे से अधिक जमीन में धान की रोपनी कर रहे हैं. इसमें थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया के बौद्ध भिक्षु शामिल हैं और स्टिकी राइस की खेती की जा रही है.

"20 कट्ठे से अधिक जमीन में स्टिकी राइस की रोपनी की जा रही है. थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया के बौद्ध भिक्षु ये खेती कर रहे हैं, बाहर से आने वाला स्टिकी राइस यहां आकर काफी मंहगा बिकता है, इसलिए इन लोगों ने इसकी खेती यहीं पर करनी की सोची"- संजय कुमार, केयर टेकर, वट लाओस मंदिर

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