गया: जिले के मानपुर प्रखंड में लगने वाला भुसुंडा पशु मेला अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है. इस मेले की शुरुआत सोनपुर मेले की तर्ज पर की गई थी. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लगने वाला यह मेला एक जमाने काफी मशहूर हुआ करता था. इस साल मगध का यह पशु मेला चंद तंबुओं में सिमटा नजर आ रहा है.
सोनपुर मेले को देता था टक्कर
अरवल जिला से आए व्यापारी भूदेव यादव ने बताया कि यह मेला एक दशक पहले तक काफी भव्य हुआ करता था. मेले का फैलाव इतना ज्यादा होता था कि सभी लोग पूरा मेला घुम भी नहीं पाते थे. एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में लोग थक जाते थे. उन्होंने बताया कि यह मेला सोनपुर के पशु मेले को टक्कर देता था. यहां उत्तरप्रदेश और पंजाब के व्यापारी गाय, भैंस और बैल लेकर आते थे. इस बार तो पूरा मैदान खाली पड़ा है, मेले में बहुत कम व्यापारी पहुंचे हैं. हम चंद लोग मेले का प्रतिष्ठा बचा रहे हैं.
सरकार पर अनदेखी का आरोप
स्थानीय लोगों ने कहा कि एक समय में भुसुंडा मेला का उदघाटन करने बिहार सरकार के मंत्री और जिलाधिकारी आया करते थे. दिन-दिनभर घुड़दौड़ होता था. मनोरंजन के भी साधन हुआ करते थे. दूर-दूर से लोग यहां देखने आते थे लेकिन सरकार की अनदेखी और उपेक्षा की वजह से मेला अपनी पहचान खोता जा रहा है. मेला लगता था तो इलाके के लोगों के लिए खरीद-बिक्री में सुविधा होती थी. लोगों ने सरकार से मेले भी भव्यता लौटाने की मांग की.
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साल में दो बार लगता था मेला
नवादा जिला से भैंस खरीदने आए रामलखन प्रसाद यादव ने बताया यहां साल में दो बार मेला लगता था. एक बार सतुआनी के अवसर पर और दूसरी बार कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर. मेले में सभी नस्ल के पशु मिलते थे. उन्होंने कहा कि मैं भैंस खरीदने आया हूं. लेकिन पसंद नहीं आ रहा है.
'पर्यटन मंत्री को मेले में पहुंचना चाहिए था'
इस संबंध में सांसद विजय मांझी कहा की पहले कृषि कार्य पशुओं पर निर्भर हुआ करता था. अब इसकी जगह अत्याधुनिक मशीनों ने ले ली है. लोग ट्रैक्टर से खेती करने लगे है. अब कम लोग ही पशु रखते है. पहले लोगों को हाथी घोड़ा पालने का भी शौक होता था. सांसद ने कहा कि कोशिश करूंगा कि यह मेला फिर अपने पुराने रूप में लौटे. पर्यटन मंत्री को मेले में पहुंचना चाहिए था. उनसे भी बात की जाएगी.