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गया: खत्म हो रही है भुसुंडा मेला की पहचान, कभी सोनपुर मेला को भी देता था टक्कर

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Published : Nov 17, 2019, 9:17 AM IST

सांसद विजय मांझी ने कहा कि मैं कोशिश करूंगा कि यह मेला फिर अपने पुराने रूप में लौटे. पर्यटन मंत्री को मेले में पहुंचना चाहिए था.

गया

गया: जिले के मानपुर प्रखंड में लगने वाला भुसुंडा पशु मेला अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है. इस मेले की शुरुआत सोनपुर मेले की तर्ज पर की गई थी. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लगने वाला यह मेला एक जमाने काफी मशहूर हुआ करता था. इस साल मगध का यह पशु मेला चंद तंबुओं में सिमटा नजर आ रहा है.

सोनपुर मेले को देता था टक्कर
अरवल जिला से आए व्यापारी भूदेव यादव ने बताया कि यह मेला एक दशक पहले तक काफी भव्य हुआ करता था. मेले का फैलाव इतना ज्यादा होता था कि सभी लोग पूरा मेला घुम भी नहीं पाते थे. एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में लोग थक जाते थे. उन्होंने बताया कि यह मेला सोनपुर के पशु मेले को टक्कर देता था. यहां उत्तरप्रदेश और पंजाब के व्यापारी गाय, भैंस और बैल लेकर आते थे. इस बार तो पूरा मैदान खाली पड़ा है, मेले में बहुत कम व्यापारी पहुंचे हैं. हम चंद लोग मेले का प्रतिष्ठा बचा रहे हैं.

गया
मानपुर प्रखण्ड के भुसुंडा में लगता है पशु मेला

सरकार पर अनदेखी का आरोप
स्थानीय लोगों ने कहा कि एक समय में भुसुंडा मेला का उदघाटन करने बिहार सरकार के मंत्री और जिलाधिकारी आया करते थे. दिन-दिनभर घुड़दौड़ होता था. मनोरंजन के भी साधन हुआ करते थे. दूर-दूर से लोग यहां देखने आते थे लेकिन सरकार की अनदेखी और उपेक्षा की वजह से मेला अपनी पहचान खोता जा रहा है. मेला लगता था तो इलाके के लोगों के लिए खरीद-बिक्री में सुविधा होती थी. लोगों ने सरकार से मेले भी भव्यता लौटाने की मांग की.

गया
मेले में पशु खरीदने पहुंचे लोग

ये भी पढ़ेंः मिथिलांचल के 'मखाना' की है अलग पहचान, स्टार्ट अप के जरिए युवा दे रहे हैं 'नई जान'

साल में दो बार लगता था मेला
नवादा जिला से भैंस खरीदने आए रामलखन प्रसाद यादव ने बताया यहां साल में दो बार मेला लगता था. एक बार सतुआनी के अवसर पर और दूसरी बार कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर. मेले में सभी नस्ल के पशु मिलते थे. उन्होंने कहा कि मैं भैंस खरीदने आया हूं. लेकिन पसंद नहीं आ रहा है.

पेश है खास रिपोर्ट

'पर्यटन मंत्री को मेले में पहुंचना चाहिए था'
इस संबंध में सांसद विजय मांझी कहा की पहले कृषि कार्य पशुओं पर निर्भर हुआ करता था. अब इसकी जगह अत्याधुनिक मशीनों ने ले ली है. लोग ट्रैक्टर से खेती करने लगे है. अब कम लोग ही पशु रखते है. पहले लोगों को हाथी घोड़ा पालने का भी शौक होता था. सांसद ने कहा कि कोशिश करूंगा कि यह मेला फिर अपने पुराने रूप में लौटे. पर्यटन मंत्री को मेले में पहुंचना चाहिए था. उनसे भी बात की जाएगी.

गया: जिले के मानपुर प्रखंड में लगने वाला भुसुंडा पशु मेला अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है. इस मेले की शुरुआत सोनपुर मेले की तर्ज पर की गई थी. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लगने वाला यह मेला एक जमाने काफी मशहूर हुआ करता था. इस साल मगध का यह पशु मेला चंद तंबुओं में सिमटा नजर आ रहा है.

सोनपुर मेले को देता था टक्कर
अरवल जिला से आए व्यापारी भूदेव यादव ने बताया कि यह मेला एक दशक पहले तक काफी भव्य हुआ करता था. मेले का फैलाव इतना ज्यादा होता था कि सभी लोग पूरा मेला घुम भी नहीं पाते थे. एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में लोग थक जाते थे. उन्होंने बताया कि यह मेला सोनपुर के पशु मेले को टक्कर देता था. यहां उत्तरप्रदेश और पंजाब के व्यापारी गाय, भैंस और बैल लेकर आते थे. इस बार तो पूरा मैदान खाली पड़ा है, मेले में बहुत कम व्यापारी पहुंचे हैं. हम चंद लोग मेले का प्रतिष्ठा बचा रहे हैं.

गया
मानपुर प्रखण्ड के भुसुंडा में लगता है पशु मेला

सरकार पर अनदेखी का आरोप
स्थानीय लोगों ने कहा कि एक समय में भुसुंडा मेला का उदघाटन करने बिहार सरकार के मंत्री और जिलाधिकारी आया करते थे. दिन-दिनभर घुड़दौड़ होता था. मनोरंजन के भी साधन हुआ करते थे. दूर-दूर से लोग यहां देखने आते थे लेकिन सरकार की अनदेखी और उपेक्षा की वजह से मेला अपनी पहचान खोता जा रहा है. मेला लगता था तो इलाके के लोगों के लिए खरीद-बिक्री में सुविधा होती थी. लोगों ने सरकार से मेले भी भव्यता लौटाने की मांग की.

गया
मेले में पशु खरीदने पहुंचे लोग

ये भी पढ़ेंः मिथिलांचल के 'मखाना' की है अलग पहचान, स्टार्ट अप के जरिए युवा दे रहे हैं 'नई जान'

साल में दो बार लगता था मेला
नवादा जिला से भैंस खरीदने आए रामलखन प्रसाद यादव ने बताया यहां साल में दो बार मेला लगता था. एक बार सतुआनी के अवसर पर और दूसरी बार कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर. मेले में सभी नस्ल के पशु मिलते थे. उन्होंने कहा कि मैं भैंस खरीदने आया हूं. लेकिन पसंद नहीं आ रहा है.

पेश है खास रिपोर्ट

'पर्यटन मंत्री को मेले में पहुंचना चाहिए था'
इस संबंध में सांसद विजय मांझी कहा की पहले कृषि कार्य पशुओं पर निर्भर हुआ करता था. अब इसकी जगह अत्याधुनिक मशीनों ने ले ली है. लोग ट्रैक्टर से खेती करने लगे है. अब कम लोग ही पशु रखते है. पहले लोगों को हाथी घोड़ा पालने का भी शौक होता था. सांसद ने कहा कि कोशिश करूंगा कि यह मेला फिर अपने पुराने रूप में लौटे. पर्यटन मंत्री को मेले में पहुंचना चाहिए था. उनसे भी बात की जाएगी.

Intro:एशिया का पशु मेला सोनपुर मेला कहा जाता है ठीक सोनपुर मेला के तर्ज पर मगध क्षेत्र के लिए गया के मानपुर प्रखण्ड में भुसुंडा मेला लगता था, मगध का सोनपुर मेला सरकार के उपेक्षा और आधुनिकता के दौर आने से विलुप्त होने के कगार पर है, चार व्यापारी के मेला अस्तित्व बचाने के लिए आये हैं।


Body:जब आधुनिकता के दौर आम जन जीवन पर प्रभाव नही डाला था, तब सोनपुर मेला के तर्ज पर बिहार के प्रमुख जिला में पशु मेला लगता था। मगध क्षेत्र के पांच जिलों के लिए भी गया के मानपुर में भुसुंडा मेला लगता आ रहा है। सोनपुर मेला के समय मेला लगाने का मुख्य वजह था छोटे व्यापारी वहां जा नही पाते थे नजदीक में मेला लगने से बड़े व्यापारी आ जाते थे और छोटे व्यापारी भी आ जाते थे। लेकिन इधर के कुछ वर्षों में गया के भुसुंडा मेला अस्तित्व खतरे में है।

अरवल जिला से आये व्यपारी भूदेव यादव ने बताया ये मेला एक दशक पूर्व भव्य लगता था, आप इस छोर से उस छोर नही जा सकते हैं। ये मेला सोनपुर मेला को टक्कर देता था। इस मेला में उत्तरप्रदेश और पंजाब से गाय, भैस और बैल लेकर आते थे। अब तो सब खत्म हो गया। पूरा मैदान खाली पड़ा है, हम चार लोग मेला का प्रतिष्ठा बचा रहे हैं।

स्थानीय ने बताया एक समय मे भुसुंडा मेला का उदघाटन करने बिहार सरकार के मंत्री और जिलाधिकारी आते थे अब देखिए कोई नही जानता है यहां मेला भी लगता है मेला लगने का जो परंपरा है सब खत्म हो गया है। सरकार से मांग करते हैं मेला को पुनः से उसी भव्यता में वापस ला दे, सरकार के उपेक्षा से ये मेला खत्म होने के कगार पर है।

नवादा जिला से भैस खरीदने आये रामलखन प्रसाद यादव ने बताया यहां एक समय मे विशाल मेला लगता था। साल में दो बार एक बार सतुआनी को दूसरा बार कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता था। हमलोग एक से एक नस्ल का पशु लेकर जाते अब कुछ नही है। भैस देखने आए थे कम भैस कुछ पसंद नही आया।

इस संबंध में सांसद विजय मांझी से बात किया गया तो उन्होंने कहा ये जानवरों का मेला है पहले कृषि में लोग जानवर का उपयोग करते थे अब अत्याधुनिक तकनीक से खेती कर रहे हैं। पशुपालक पहले आवगमन के लिए घोड़ा रखते थे अब वो भी नही रखते हैं। हम चाहते हैं लोग एक एक जानवर रखे , मेला में पर्यटन मंत्री को आना चाहिए, मेला पुराने अस्तित्व में आये इसके लिए मंत्री जी से बात करूंगा।


Conclusion:सरकार भुसुंडा मैदान में स्टेडियम प्रस्तावित किया है आज तक ना तो स्टेडियम के लिए एक ईंट लगा , मेला क्षेत्र में गन्दगी अंबार लगा हुआ है लोग जमीन को अतिक्रमण कर रहे हैं।
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