गया: वर्तमान में अगर किसी की जानकारी प्राप्त करनी हो तो तकनीक का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन आपको अपने 300 साल पहले से लेकर अब तक के पूर्वजों के बारे में जानकारी चाहिए तो तकनीक भी बेबस नजर आएगी. अगर आपको अपने पूर्वजों के बारे में सटीक जानकारी चाहिए तो गया (Gaya) चले आइए. यहां पंडा पोथी (Panda Pothi) में आपके पूर्वजों के नाम और हस्ताक्षर दर्ज है. बस आपको सही पंडा के यहां पहुंचना है और चंद मिनट में आपके पूर्वजों का नाम और हस्ताक्षर आपके सामने होगा.
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पितृपक्ष के दौरान अगर आप अपने पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गया पहुंचे हों, लेकिन अपने पुरखों की सही जानकारी नहीं है, तब भी यहां के पंडे आपके पूर्वजों का नाम खोज देंगे, बशर्ते आपके पूर्वजों में से कोई भी कभी मोक्षधाम 'गया' आए हों और पिंडदान किया हो.
दरअसल, गया जी में भगवान विष्णु का चरण चिन्ह है. यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. गया जी में आदिकाल से सनातन धर्मावलंबी या उसमें विश्वास रखने वाले लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान करने आते हैं. यहां पिंडदान करने के पहले गया जी के पंडा से अनुमति लेना होती है, उनकी अनुमति के बाद आप विभिन्न पिंडवेदी पर पिंडदान कर सकते हैं. गया जी वापस जाते वक्त पंडा जी सुफल देते है, उसके बाद ही आपका पिंडदान सफल माना जाता है.
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पंडा जी सुफल देकर दक्षिणा लेते हैं और पिंडदानी को कहते हैं कि आज से आपका गयाजी का तीर्थपुरोहित मैं हो गया हूं. आपके आने वाली सभी पीढ़ियां गया जी जब भी आएंगे तो मेरे पास आएंगे. इस दौरान गयापाल पंडा अपने बही खाता में उनका नाम, पता और हस्ताक्षर अंकित करते हैं. उस बही खाते को पंडा बहुत संभालकर रखते हैं. आने वाली पीढ़ी को दिखाने के लिए कि आपका गयाजी का तीर्थपुरोहित मैं हूं.
विष्णुपद प्रबन्धकारणी समिति के कार्यकारी अध्यक्ष शंभूलाल बिठल बताते हैं कि हम लोगों का बही-खाता जिसे लोग 'पंडा पोथी' कहते हैं, वो मूल पूंजी है. मेरे पूर्वजों के द्वारा बनाया गया यजमान आज 100 साल बाद भी सिर्फ इसी पंडा पोथी की वजह से मेरे यहां आ रहे हैं. जिसे मेरे पूर्वजों ने तीर्थपुरोहित माना मैं उसी से पिंडदान करवाऊंगा. इस आस्था का एक बड़ा केंद्र पंडा पोथी है. राजा, रियासत के लोग गयाजी में पिंडदान करने आते थे तो उस वक्त ताम्रपत्र देते थे, जिसमें उनके राज पाठ का विवरण और उनके राज पाठ की मुहर रहती थी. हमारे पूर्वज उसी को संजोकर रखते थे. आज भी 200 साल पहले का ताम्रपत्र सुरक्षित रखा हुआ है.
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उन्होंने बताया कि गया में गुरु नानक जी पिंडदान करने आये थे, यहां दाढ़ी वाला पंडा जी उनके पास उनकी पहचान सुरक्षित है. मैं मूलतः गुजरात राज्य का पंडा हूं. मेरे यहां गावाकर रियासत के राजा का नाम और हस्ताक्षर सुरक्षित है. उनके वंशज के लोग गयाजी जब पिंडदान करने आये तो उन्होंने खुद से उनके द्वारा लिखी हुई लेख को देखा. जब गया जी में साल 2015 में वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिंडदान करने आये थे, उन्होंने पंडा पोथी में नाम, पता और हस्ताक्षर दर्ज किया था. हालांकि, उन्होंने अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी नहीं ली, अगर वो लेना चाहते तो उन्हें बताया जाता कि उनके पूर्वज गयाजी कब पिंडदान करने आये थे.
गयाजी में कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में पिंडदान एक बार ही करने आता है. जो तीर्थयात्री गयाजी आते हैं, बस वो अपने पंडा जी का नाम या पहचान याद रखें. जैसे मेरे पूर्वजों का नाम कुछ और था लेकिन वो गुजरात में प्रसिद्ध हाथी वाला पंडा से प्रसिद्ध थे. गुजरात पूर्वज अपने आने वाली पीढ़ी को बताकर रखते हैं कि गया जी में अपने तीर्थपुरोहित हाथी वाला पंडा है. इस पहचान को जिंदा रखने के लिए हम लोग भी समय दर समय अपने यजमान के यहां जाते हैं.
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''अगर आपके पूर्वजों ने आपको पंडाजी का नाम नहीं बताया है और पंडाजी ने भी आपके जीवन में कभी आपसे संपर्क नहीं किया है तो आप गयाजी पहुंचें. आपसे पंडा के प्रतिनिधि पिंडदान के लिए संपर्क करेंगे. आप उन्हें जैसे ही बताएंगे कि मैं गुजरात का रहने वाला हूं, वो आपको कह देंगे कि हाथी वाला पंडाजी के पास चले जाइये. मेरे पास आएंगे तो मैं उनसे उनका नाम, उपनाम और जिले की जानकारी लूंगा और अपने बही खाते में गुजरात के संबंधित जिले से आने वाले लोगों में उनके पूर्वजों का नाम, पता और हस्ताक्षर खोजकर दिखा दूंगा. पूर्वजों की जानकारी निकालने में मुश्किल से 5 मिनट का समय लगता है.''- शंभूलाल बिठल, कार्यकारी अध्यक्ष, विष्णुपद प्रबन्धकारणी समिति
गया के पंडों के पास पोथियों की त्रिस्तरीय व्यवस्था है. पहली पोथी इंडेक्स की होती है, जिसमें संबंधित जिले के बाद अक्षरमाला के क्रम में उस गांव का नाम होता है. इसमें करीब 300 सालों से उस गांव से आए लोगों के बारे में पूरा पता, व्यवसाय और पिंडदान के लिए गया आने की तिथि दर्ज की जाती है. इसके अलावा दूसरी पोथी 'हस्ताक्षर बही’ है, जिसमें गया आए लोगों की जानकारी के साथ आने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर भी दर्ज होते हैं. इसमें नाम के अलावा नंबर और पृष्ठ की संख्या दर्ज रहती है.
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तीसरी पोथी में पूर्व से लेकर वर्तमान कार्यस्थल तक की जानकारी होती है. इस पोथी में किसी गांव के रहने वाले लोग अब कहां निवास कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं, इसकी जानकारी भी दर्ज रहती है. जब एक तीर्थयात्री अपने पूर्वजों का नाम और हस्ताक्षर देख लेता है, तो उसे भी संतुष्टि हो जाती है कि मेरे तीर्थपुरोहित हाथीवाला पंडा हैं. गया में पिंडदान करने वाले लोग अपने पूर्वजों का नाम और पता जब बही खाते में देख लेते हैं, तो काफी भावुक हो जाते हैं. तीर्थयात्री गयाजी में पिंडदान और कर्मकांड कर लेता है, उसके बाद नए बही खाते में पूर्वजों के नाम के साथ उनका वर्तमान पता, नाम और हस्ताक्षर लेते हैं.
आज से 300 साल पहले विभिन्न भाषाओं में बही खाते में नाम, पता और हस्ताक्षर दर्ज किया जाता था. पिंडदान करने वाले व्यक्ति का नाम, उनके पिता का नाम और दादा का नाम दर्ज किया जाता था और उनके साथ आने वाले लोगों का भी नाम दर्ज किया जाता था. उस वक्त केतली और महाजनी भाषा में बही खाता में नाम, पता और हस्ताक्षर दर्ज किया जाता था. अब इन भाषाओं को पढ़ने वाले हम लोग के पीढ़ी के लोग बच गए हैं.
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उन्होंने बताया कि नई पीढ़ी इस पंडा पोथी में दर्ज पूर्वजों का नाम कंप्यूटर पर दर्ज करने को कहते हैं, लेकिन पूर्वजों के द्वारा बनाई गई परंपरा को हम लोग आगे लेकर चल रहे हैं. नई पीढ़ी पंडा समुदाय के लिए हम लोग पूर्व की भाषाओं में लिखे लेख हिंदी में नए खाते में भी दर्ज कर रहे हैं, ताकि यह परंपरा हजारों सालों तक जीवित रहे और तीर्थयात्री भी इसका लाभ ले सकें.
बता दें कि गया जी के पंडा इस 'पंडा पोथी' को सुरक्षित रखने के लिए इसे लाल कपड़े में बांधकर रखते हैं और बरसात से पहले सभी बही खातों को धूप में रखा जाता है, ताकि नमी के कारण बही खाता खराब ना हो और इसके साथ ही बहीखाता को सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग भी किया जाता है. गया जी में आपको भी अपने पूर्वजों के नाम की जानकारी लेना हो और हस्ताक्षर को देखना हो, तो उन्हें बस अपना नाम, उपनाम और पूर्वजों के जिले का नाम या पता बताना होगा.