मोतिहारी: श्रीमद् भागवत गीता जयंती (Shrimad Bhagwat Geeta Jayanti) के अवसर पर शहर के महर्षि नगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय में समारोह का आयोजन किया गया.समारोह में विद्यालय के छात्रों ने सामूहिक गीता पाठ किया. जिसका उद्घाटन सोमनाथ संस्कृत यूनिवर्सिटी गुजरात के पूर्व डीन प्रोफेसर देवेन्द्र नाथ पाण्डेय,वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय समेत कई लोगों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. उन्होंन कहा कि यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली है. गीता में अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से धार्मिक सहिष्णुता की भावना प्रस्तुत की गयी है जो भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है.
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हिन्दू धर्मग्रंथों में गीता का सर्वप्रथम स्थान है: गीता जयंती समारोह को संबोधित करते हुए वेद विद्यालय के निदेशक व सोमनाथ संस्कृत यूनिवर्सिटी गुजरात के पूर्व डीन प्रोफेसर देवेन्द्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि गीता भारतीय संस्कृति की आधारशिला है. हिन्दू धर्मग्रंथों में गीता का सर्वप्रथम स्थान है. इसका प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष (अगहन) माह में शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को कुरुक्षेत्र में हुआ था. इस ग्रंथ में अठारह अध्यायों एवं सात सौ श्लोकों में संचित ज्ञान,मनुष्य मात्र के लिए बहुमूल्य है. इसके रचयिता वेदव्यास हैं.
अहंकार के रहते हुए ज्ञान का उदय नहीं होता: कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी शिव प्रसाद साहू ने कहा कि गीता के अनुसार हमें साधारण जीवन के व्यवहार से घृणा नहीं करनी चाहिए. अपितु स्वार्थमय इच्छाओं एवं अहंकार को नष्ट करना चाहिए. अहंकार के रहते हुए ज्ञान का उदय नहीं होता. गुरु की कृपा नहीं होती और ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती. वहीं वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने गीता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्कृष्ट भावना का परिचायक होने के कारण गीता के उपदेशों को सभी ने स्वीकार किया है. अतः यह किसी सम्प्रदाय विशेष का ग्रंथ नहीं है.
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"गीता में सम्पूर्ण वेदों का सार निहित है. इसकी महत्ता को शब्दों में वर्णन करना असंभव है. यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली है. गीता में अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से धार्मिक सहिष्णुता की भावना प्रस्तुत की गयी है जो भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है."- देवेन्द्र नाथ पाण्डेय, पूर्व डीन, सोमनाथ संस्कृत यूनिवर्सिटी गुजरात