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दरभंगाः अब संस्कृत विवि परिसर में गूंजेंगी वेदों की ऋचाएं, पढ़ें ये रिपोर्ट - Pro. Sarva Narayan Jha

विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि परिसर में मजार गेट से लेकर बाघ मोड़ तक की सड़क के दोनों किनारों पर छोटे स्पीकर लगाए जाएंगे. सुबह-शाम इन स्पीकर्स से मधुर ध्वनि में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ऋचाएं सुनाई पड़ेंगी.

दरभंगा
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Published : Jan 30, 2020, 11:39 PM IST

दरभंगाः अब कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि परिसर में वेदों की ऋचाओं और उपनिषदों के श्लोक से लोगों का स्वागत होगा. विवि के विशाल कैंपस की सड़क के दोनों किनारे केबल बिछाए जाएंगे और जगह-जगह छोटे-छोटे स्पीकर लगेंगे. परिसर से गुजरने वाले लोगों को स्पीकर से चारों वेदों की ध्वनि सुनाई पड़ेगी. इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और प्राचीन परंपरा को बचाने की कोशिश में विवि एक और कदम बढ़ाने जा रहा है.

दरभंगा
दरभंगा में संस्कृत विवि का परिसर

जल्द शुरू होगा काम
विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि परिसर में मजार गेट से लेकर बाघ मोड़ तक की सड़क के दोनों किनारों पर छोटे स्पीकर लगाए जाएंगे. इनका नियंत्रण एक जगह से होगा. सुबह-शाम इन स्पीकर्स से मधुर ध्वनि में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ऋचाएं सुनाई पड़ेंगी. उन्होंने बताया कि इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया हो गई है. बिहार राज्य आधारभूत संरचना विकास निगम को यह काम करना है. जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.

पेश है रिपोर्ट

1961 में हुई थी संस्कृत विवि की स्थापना
बता दें कि 26 जनवरी 1961 को संस्कृत विवि की स्थापना दरभंगा राज के आखिरी महाराजा सर कामेश्वर सिंह ने अपने महल लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस को दान में देकर की थी. यह अविभाजित बिहार का प्राच्य विद्याओं में उच्च शिक्षा का एकमात्र केंद्र रहा है. विवि स्थापना से अब तक प्राचीन भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करता रहा है. हाल ही में विवि ने पूरे बिहार में प्राचीन शास्त्रार्थ की परंपरा को जीवित किया है. इसके अलावा देश भर के लोगों को निशुल्क संस्कृत की शिक्षा देने की योजना पर भी काम कर रहा है.

दरभंगाः अब कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि परिसर में वेदों की ऋचाओं और उपनिषदों के श्लोक से लोगों का स्वागत होगा. विवि के विशाल कैंपस की सड़क के दोनों किनारे केबल बिछाए जाएंगे और जगह-जगह छोटे-छोटे स्पीकर लगेंगे. परिसर से गुजरने वाले लोगों को स्पीकर से चारों वेदों की ध्वनि सुनाई पड़ेगी. इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और प्राचीन परंपरा को बचाने की कोशिश में विवि एक और कदम बढ़ाने जा रहा है.

दरभंगा
दरभंगा में संस्कृत विवि का परिसर

जल्द शुरू होगा काम
विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि परिसर में मजार गेट से लेकर बाघ मोड़ तक की सड़क के दोनों किनारों पर छोटे स्पीकर लगाए जाएंगे. इनका नियंत्रण एक जगह से होगा. सुबह-शाम इन स्पीकर्स से मधुर ध्वनि में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ऋचाएं सुनाई पड़ेंगी. उन्होंने बताया कि इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया हो गई है. बिहार राज्य आधारभूत संरचना विकास निगम को यह काम करना है. जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.

पेश है रिपोर्ट

1961 में हुई थी संस्कृत विवि की स्थापना
बता दें कि 26 जनवरी 1961 को संस्कृत विवि की स्थापना दरभंगा राज के आखिरी महाराजा सर कामेश्वर सिंह ने अपने महल लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस को दान में देकर की थी. यह अविभाजित बिहार का प्राच्य विद्याओं में उच्च शिक्षा का एकमात्र केंद्र रहा है. विवि स्थापना से अब तक प्राचीन भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करता रहा है. हाल ही में विवि ने पूरे बिहार में प्राचीन शास्त्रार्थ की परंपरा को जीवित किया है. इसके अलावा देश भर के लोगों को निशुल्क संस्कृत की शिक्षा देने की योजना पर भी काम कर रहा है.

Intro:दरभंगा। अब कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि परिसर में वेदों की ऋचाओं और उपनिषदों के श्लोक से आपका स्वागत होगा। विवि के विशाल कैंपस की सड़क के दोनों किनारे केबल बिछाए जाएंगे और जगह-जगह छोटे-छोटे स्पीकर लगेंगे। परिसर से गुजरने वाले लोगों को इनमें से चारों वेदों की ध्वनि सुनाई पड़ेगी। इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और प्राचीन परंपरा को बचाने की कोशिश में विवि एक और कदम बढ़ाने जा रहा है।


Body:विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि परिसर में मज़ार गेट से लेकर बाघ मोड़ तक की सड़क के दोनों किनारों पर छोटे स्पीकर लगाए जाएंगे। इनका नियंत्रण एक जगह से होगा। सुबह-शाम इन स्पीकर्स से मधुर ध्वनि में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ऋचाएं सुनाई पड़ेंगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया हो गई है। बिहार राज्य आधारभूत संरचना विकास निगम को यह काम करना है। जल्द ही काम शुरू होगा।


Conclusion:बता दें कि 26 जनवरी 1961 को संस्कृत विवि की स्थापना दरभंगा राज के आखिरी महाराजा सर कामेश्वर सिंह ने अपने महल लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस को दान में देकर उसमें की थी। यह संयुक्त बिहार (आज के झारखंड समेत) का प्राच्य विद्याओं में उच्च शिक्षा का एकमात्र केंद्र रहा है। स्थापना से अब तक विवि प्राचीन भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करता रहा है। हाल ही में विवि ने बिहार भर में प्राचीन शास्त्रार्थ की परंपरा को जीवित किया है। इसके अलावा देश भर के लोगों को निशुल्क संस्कृत की शिक्षा देने की योजना पर भी काम कर रहा है।

बाइट 1- प्रो. सर्व नारायण झा, कुलपति, केएसडीएसयू.

विजय कुमार श्रीवास्तव
ई टीवी भारत
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