दरभंगा: 2 अक्टूबर 1975 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने दरभंगा राज के 22 एकड़ के विशाल परिसर में फैले जिस राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान यानी दरभंगा आयुर्वेद कॉलेज का उद्घाटन किया था. वह आज बदहाल है. इस कॉलेज से जुड़े 10 एकड़ जगह में फैले आयुर्वेद अस्पताल की स्थिति भी अच्छी नहीं है. अब बिहार सरकार ने इसकी सुध ली है.
बिहार सरकार ने कॉलेज की ली सुध
कॉलेज में 17 साल से बंद पड़ी पढ़ाई दोबारा शुरू होने की उम्मीद जगी है. बिहार सरकार ने कॉलेज में शिक्षकों के नए पद सृजित किए हैं. साथ ही पुराने खाली पदों पर भी वैकेंसी निकाली गई है. इस कॉलेज के लिए पांच मंजिला नया भवन बनाने की भी योजना है. इस सूचना के बाद कॉलेज प्रशासन सक्रिय हो गया है. परिसर की साफ-सफाई की गई है और यहां जड़ी बूटियों के नए पौधे लगाए जा रहे हैं.
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आयुर्वेद कॉलेज का इतिहास
कॉलेज के प्राचार्य कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार दरभंगा आयुर्वेद कॉलेज में वर्ष 2004 तक 30 सीटों पर बीएएमएस पाठ्यक्रम में नामांकन होता था. यहां सीसीआइएम के मानक के अनुसार 14 विषयों में कुल 45 शिक्षकों की जरूरत है. लेकिन कॉलेज के लिए मानक से कम 34 पद ही स्वीकृत किए गए थे. इनमें से महज 8 शिक्षक फिलहाल कार्यरत हैं.
दरभंगा आयुर्वेद कॉलेज का जीर्णोद्धार
बिहार सरकार ने हाल ही में इस कॉलेज के लिए शिक्षकों के नए 14 पद स्वीकृत किए हैं. जिन पर बहाली का विज्ञापन भी निकाल दिया गया है. कॉलेज में गैर शैक्षणिक कर्मियों के कुल 83 पद स्वीकृत हैं. उनमें से महज 11 कर्मी ही कार्यरत हैं. कुल 72 पद खाली हैं. सरकार इन खाली पदों पर भी नियुक्ति की सूचना जारी करने जा रही है.
''अब बिहार सरकार ने नए सिरे से यहां शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मियों की बहाली की प्रक्रिया शुरू की है. कॉलेज का नया पांच मंजिला भवन बनाने की योजना है. अब इस कॉलेज में स्नातक स्तरीय बीएएमएस के अलावा आयुर्वेद का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू होने की उम्मीद भी जगी है. इसलिए कॉलेज परिसर की साफ-सफाई की गई है और जड़ी-बूटियों के नए पौधे भी लगाए जा रहे हैं''- डॉ. राजेश्वर दुबे, प्राचार्य, दरभंगा आयुर्वेद कॉलेज
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मानक पूरे नहीं करने पर खत्म हुई मान्यता
आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजेश्वर दुबे ने बताया कि 1975 में इस कॉलेज की स्थापना के बाद से स्नातक स्तर पर आयुर्वेद के पाठ्यक्रम में असीमित सीटों पर नामांकन होता था. बाद में जब पूरे देश में बीएएमएस नामक पाठ्यक्रम की शुरुआत हुई तो कॉलेज के संसाधन को देखते हुए यहां 40 सीटों पर नामांकन और 30 बेड के अस्पताल को मंजूरी मिली.
बाद में फिर सीटें घटाकर 30 कर दी गईं. वर्ष 2004 तक यहां 30 सीटों पर नामांकन होता रहा. बाद में मानक को पूरा नहीं कर पाने की वजह से इस कॉलेज की मान्यता खत्म कर दी गई और यहां नामांकन बंद हो गया.