दरभंगा: कहते हैं कामयाबी किसी उम्र की मोहताज नहीं होती है. कुछ ऐसी ही कहानी है जिले के रिटायर्ड संस्कृत शिक्षक रामजी ठाकुर की है. जिस उम्र में लोग अपनी जिन्दगी के आखिरी दिन गिनते हैं. उस उम्र में रामजी ठाकुर ने अपने जिले का नाम रोशन कर दिखाया. 85 वर्षीय रामजी ठाकुर को साहित्य में अहम योगदान के लिए राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा. उनकी इस उपलब्धि से पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ रही है.
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दरअसल, जिले के मनीगाछी प्रखंड के धर्मपुर के रहने वाले डॉ. रामजी ठाकुर साहित्य लेखन के शौकीन हैं. वे संस्कृत भाषा में किताबें लिखा करते हैं. उनकी इस लेखनी ने लोगों को खूब लुभाया है. जिसका फल अब उन्हें मिलने जा रहा है. डॉ. ठाकुर को इस लेखनी के कारण कई सम्मान से नवाजा जा चुका है. साल 2012 में उनकी रचना 'लघुपद्य प्रबंध त्रयी' को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है. बता दें कि डॉ. ठाकुर संस्कृत भाषा में अब तक 19 किताब लिख चुके हैं.
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'स्वभाव में हैं लेखन'
कई पुरस्कार से नवाजे जाने के बाद भी डॉ. ठाकुर का जवाब निराला है. वो कहते हैं कि मैं किसी पुरस्कार के लिए किताबें नहीं लिखता, लेखन मेरे स्वभाव में है. उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा आज के युग में विलुप्त होती जा रही है. इसको जिंदा रखना जरूरी है. साथ ही यह भी बताया कि संस्कृत के उत्थान के लिए संस्कृत के ग्रंथों को मैथिली भाषा में अनुवाद किया जाना चाहिए.
संस्कृत को जिंदा रखना मकसद
डॉ. रामजी ठाकुर बताते हैं कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे शहरों में संस्कृत को काफी बढ़ावा दिया जाता है. इसीलिए बिहार में भी संस्कृत को जिंदा रखने के लिए पहल करनी जरुरी है.
गांव में खुशी की लहर
डॉ. रामजी ठाकुर को राष्ट्रपति अवार्ड दिए जाने की घोषणा के बाद गांव में जश्न मनाया जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें बेहद खुशी है कि डॉ. साहब को इस सम्मान से नवाजा जा रहा है. डॉ. ठाकुर को सम्मान मिलना इस गांव के लिए गौरव की बात है. राष्ट्रपति अवार्ड मिलने के बाद गांव में उनका जोरदार स्वागत किया जाएगा. साथ ही यहां एक कार्यक्रम आयोजन कर उन्हें सम्मानित करने की भी योजना है.