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बाजार में उतरी रसभरी लीची, मार्केट में इस वजह से कम हुई डिमांड

लीची खरीदार सुनील कुमार कहते हैं कि अभी जो बाजार में लीची आई है वो खट्टे के साथ-साथ महंगी भी है. जिसका मुख्य कारण है वर्षा का समय पर ना होना.

लीची का गुच्छा
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Published : May 25, 2019, 8:54 AM IST

Updated : May 25, 2019, 9:39 AM IST

दरभंगाः शहर के बाजार में मुजफ्फरपुर की रसभरी लीची आ गई है. शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर टोकरी भर-भरकर बगीचे से पहुंच रही है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि लीची का रंग ना तो लाल है और ना ही इसका स्वाद मीठा है.

लीची की गुणवत्ता में कमी
लीची का रंग हल्का लाल और हरा होने के कारण इसकी डिमांड कम है. अभी इसकी बिक्री 100 रुपये सैकड़ा से लेकर 130 रुपये सैकड़ा तक हो रही है. लेकिन लीची की गुणवत्ता में कमी और महंगे दाम होने के कारण खरीदार भाव पूछ कर रह जाते हैं. समस्तीपुर, पूसा, कल्याणपुर और मुजफ्फरपुर आदि क्षेत्रों से आने वाली लीची शहर के लहेरियासराय, टावर चौक, बेता चौक, बस अड्डा, दरभंगा टावर, रेलवे स्टेशन सहित कई इलाकों के बाजार में सज चुकी है.

लीची बेचते हुए विक्रेता और बात करते ग्राहक

खट्टी और महंगी है लीची
वहीं, लीची खरीदार सुनील कुमार कहते हैं कि अभी जो बाजार में लीची आई है वो खट्टी साथ-साथ महंगी भी है. जिसका मुख्य कारण है वर्षा का समय पर ना होना. साथ ही उन्होंने कहा कि पूरवा हवा के कारण कीड़ा लगने के डर से कच्ची लीची तोड़कर बिक्री की जा रही है. वहीं, विक्रेता का कहना है कि लीची तो कम से कम दो-तीन बार प्राकृतिक पानी मिलने पर इसका रंग लाल और मीठा होता है. इस वर्ष पानी नहीं होने से यह लाल नहीं हो सका है. इसके कारण आकार भी छोटा है.

लीची में नहीं है स्वाद
वहीं, उन्होंने कहा कि आकार बड़ा और लाल होने पर इसकी मांग बढ़ेगी. अभी फिलहाल हम लोग एक सौ से 130 रुपया प्रति सैकड़ा लीची की बिक्री कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले समय में लीची का भाव घटेगा. ग्राहकों का कहना है कि अभी इसमें ठीक से गुद्दा भी नहीं हुआ है. लेकिन सीजनल फल होने के कारण 25 से 50 पीस खरीद रहे हैं. लेकिन अभी इसमें कोई स्वाद नहीं है.

दरभंगाः शहर के बाजार में मुजफ्फरपुर की रसभरी लीची आ गई है. शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर टोकरी भर-भरकर बगीचे से पहुंच रही है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि लीची का रंग ना तो लाल है और ना ही इसका स्वाद मीठा है.

लीची की गुणवत्ता में कमी
लीची का रंग हल्का लाल और हरा होने के कारण इसकी डिमांड कम है. अभी इसकी बिक्री 100 रुपये सैकड़ा से लेकर 130 रुपये सैकड़ा तक हो रही है. लेकिन लीची की गुणवत्ता में कमी और महंगे दाम होने के कारण खरीदार भाव पूछ कर रह जाते हैं. समस्तीपुर, पूसा, कल्याणपुर और मुजफ्फरपुर आदि क्षेत्रों से आने वाली लीची शहर के लहेरियासराय, टावर चौक, बेता चौक, बस अड्डा, दरभंगा टावर, रेलवे स्टेशन सहित कई इलाकों के बाजार में सज चुकी है.

लीची बेचते हुए विक्रेता और बात करते ग्राहक

खट्टी और महंगी है लीची
वहीं, लीची खरीदार सुनील कुमार कहते हैं कि अभी जो बाजार में लीची आई है वो खट्टी साथ-साथ महंगी भी है. जिसका मुख्य कारण है वर्षा का समय पर ना होना. साथ ही उन्होंने कहा कि पूरवा हवा के कारण कीड़ा लगने के डर से कच्ची लीची तोड़कर बिक्री की जा रही है. वहीं, विक्रेता का कहना है कि लीची तो कम से कम दो-तीन बार प्राकृतिक पानी मिलने पर इसका रंग लाल और मीठा होता है. इस वर्ष पानी नहीं होने से यह लाल नहीं हो सका है. इसके कारण आकार भी छोटा है.

लीची में नहीं है स्वाद
वहीं, उन्होंने कहा कि आकार बड़ा और लाल होने पर इसकी मांग बढ़ेगी. अभी फिलहाल हम लोग एक सौ से 130 रुपया प्रति सैकड़ा लीची की बिक्री कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले समय में लीची का भाव घटेगा. ग्राहकों का कहना है कि अभी इसमें ठीक से गुद्दा भी नहीं हुआ है. लेकिन सीजनल फल होने के कारण 25 से 50 पीस खरीद रहे हैं. लेकिन अभी इसमें कोई स्वाद नहीं है.

Intro:दरभंगा शहर के बाजार में रसभरी लीची आ गई है। शहर के प्रमुख चौक - चौराहों पर टोकरी भर भरकर बगीचे से पहुंच रही है। लेकिन लीची का रंग लाल नहीं होने के साथ ही स्वाद भी मीठा नहीं है। लीची हल्का लाल और हरा होने से इसकी डिमांड कम है। इसका भाव अभी 100 रुपया सैकड़ा से लेकर 130 रुपया सैकड़ा बिक्री हो रही है। लेकिन लीची की गुणवत्ता में कमी और महंगे दाम होने के कारण खरीदार भाव पूछ कर रह जाते हैं।

समस्तीपुर, पूसा, कल्याणपुर और मुजफ्फरपुर आदि क्षेत्रों से आने लीची का बाजार शहर के लहेरियासराय टावर चौक, बेता चौक, बस अड्डा, दरभंगा टावर, रेलवे स्टेशन सहित कई इलाकों में लीची का बाजार सज चुका है। वही लीची ख़रीदार सुनील कुमार कहते है कि अभी जो बाजार में लीची आई है वो खट्टे साथ साथ महंगे भी है। जिसका मुख्य कारण है वर्षा का समय पर ना होना।साथ ही उन्होंने कहा कि पूरबा हवा के कारण इसमें कीड़ा लगने की आशंका से, कच्ची लीची को तोड़कर बिक्री की जा रही है।

वहीं विक्रेता का कहना है कि लीची तो कम से कम दो-तीन बार प्राकृतिक पानी मिलने पर इसका रंग लाल और मीठा होता है। इस वर्ष पानी नहीं होने से यह लाल नहीं हो सका है। इसके कारण आकार भी छोटा है। अभी इसमें ठीक से गुद्दा भी नहीं हुआ है। लेकिन सीजनल फल होने के कारण स्वाद के लिए 25 से 50 पीस खरीद रहे हैं। वही उन्होंने कहा कि आकार बड़ा और लाल होने पर इसकी मांग बढ़ेगी। अभी फिलहाल हम लोग एक सौ से 130 रुपया प्रति सैकड़ा लीची की बिक्री कर रहे हैं।साथ ही उन्होंने कहा कि आने वाले समय में लीची की भाव घटेगी।

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सुनील कुमार, लीची ख़रीदार
महेश कुमार सहनी, लीची दुकानदार



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Last Updated : May 25, 2019, 9:39 AM IST
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