पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में जन सुराज पार्टी नाम से एक और दल मैदान में आ गया है. चुनाव रणनीतिकार से पदयात्री बने प्रशांत किशोर द्वारा रची-बुनी गई इस पार्टी का पहला नेता और कार्यकारी अध्यक्ष मधुबनी के मनोज भारती को बनाकर बिहार में दलित कार्ड खेला है. दूसरी तरफ चिराग पासवान ने कहा है कि अगर दलितों को उचित हिस्सेदारी नहीं मिली तो वो मंत्री पद को छोड़ देंगे. बिहार जातीय गणना की रिपोर्ट की माने तो राज्य में 13 करोड़ की आबादी में 19 फीसदी दलित वोटर्स है. ऐसे में यह 2025 बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी है या सियासी मजबूरी?.
प्रशांत किशोर ने दलित कार्ड खेला: प्रशांत किशोर ने जन सुराज के कार्यकारी अध्यक्ष को लेकर मनोज भारती के नाम की घोषणा करते हुए यह कहा था कि यह उनसे काबिल व्यक्ति हैं. उनके कार्यकारी अध्यक्ष बनने के पीछे दलित चेहरा नहीं बल्कि एक काबिल चेहरा है. जिनके पास बिहार को आगे ले जाने का विजन है. लगभग 20 प्रतिशत दलित वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए प्रशांत किशोर ने दलित कार्ड खेला है.बिहार में दलित राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है.
नीतीश कुमार का महादलित कार्ड: 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने महादलित योजना की शुरुआत की. उन्होंने दलित मानी जाने वाली 21 उपजातियों को मिलाकर महादलित श्रेणी तैयार की थी, लेकिन इसमें से पासवान जाति को अलग रखा. अन्य सभी अनुसूचित जातियों की उपजातियों को इस महादलित कैटेगरी में रखा. इन्हें नीतीश सरकार ने कई तरह की सहूलियतें दीं. हालांकि, बाद में पासवान को भी महादलित में शामिल किया. इस तरह बिहार में दलित ही महादलित बन गए.
बिहार में दलित वोट असर: बिहार की राजनीति में दलित वोट बैंक का शुरू से ही असर रहा है. बिहार में आजादी के बाद से दलित वोट कांग्रेस के साथ रहा. कई वर्षों तक बिहार में कांग्रेस ब्राह्मण, दलित और मुसलमान के सहारे राजनीति करती रही.90 के दशक में लालू प्रसाद का बिहार की राजनीति में प्रभाव बढ़ा. दलितों का झुकाव लालू प्रसाद के साथ हुआ. 2005 में नीतीश कुमार बिहार की सत्ता में आये तो दलितों का झुकाव जदयू के तरफ होने लगा. नीतीश कुमार ने दलित के अनेक छोटे छोटे समूह वाली जातियों को महादलित श्रेणी में रखकर उनके उत्थान के लिए अनेक योजनाओं की शुरुआत की.
दलित पर चिराग की पकड़: बिहार की राजनीति में दलितों की यदि बात की जाए तो बाबू जगजीवन राम के बाद रामविलास पासवान दलित के सबसे बड़े चेहरे थे. रामविलास पासवान शुरू से ही दलितों की उत्थान को लेकर दलित सेना बनाये. बिहार में 5.31% पासवान की आबादी पर पहले रामविलास पासवान और अब चिराग पासवान का पकड़ है. दलित की राजनीति के बड़े चेहरे में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का नाम भी आता है. मुसहर समुदाय के सबसे बड़े चेहरा के रूप में मांझी हैं।.करीब 3% आबादी वोटबैंक पर उनका पकड़ है.
2024 लोकसभा चुनाव में दलित वोट: बिहार की 40 लोकसभा सीट में 6 सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार में NDA और INDIA गठबंधन ने अनेक सीटों पर दलित उम्मीदवार खड़े किए. NDA गठबंधन में बीजेपी और जदयू ने एक-एक, लोजपा ने 3 और हम ने 1 उम्मीदवार खड़े किए. वहीं इंडिया गठबंधन से राजद ने 4, VIP ने 1, कांग्रेस ने 1 दलित उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाया था.
"प्रशांत किशोर ने मनोज भारती को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर दलितों का अपमान और ठगने का काम किया है. जहां तक राजद की बात है तो शुरू से ही दलित समाज का राजद के साथ लगाव रहा है और आगे भी रहेगा. आरजेडी का कहना है कि प्रशांत किशोर ने दलितों को ठगने का काम किया है." -एजाज अहमद, प्रवक्ता, आरजेडी
लोकसभा में NDA का प्रदर्शन बेहतर: 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार की 6 रिजर्व सीटों में NDA का प्रदर्शन बेहतर रहा. 6 में से 5 सीट NDA के खाते में गई. गया(सु) जीतनराम मांझी, हाजीपुर(सु) से चिराग पासवान, जमुई(सु) से अरुण भारती, समस्तीपुर (सु) से शांभवी चौधरी, गोपालगंज (सु) से डॉ आलोक सुमन चुनाव जीते. सासाराम सुरक्षित सीट से कांग्रेस के मनोज कुमार चुनाव जीते.
बिहार में लोकसभा की सुरक्षित सीटों की स्थिति |
सुरक्षित सीट | पार्टी | वोट मिला | जीत का अंतर |
गया | HAM-S | 48.80% | 15.90 |
हाजीपुर | LJP-R | 53.90% | 20.40% |
जमुई | LJP-R | 55.70% | 25.30% |
समस्तीपुर | LJP-R | 55.20% | 24.20% |
गोपालगंज | JDU | 55.40% | 27.9% |
सासाराम | INC | 50.80% | 17% |
वोट बैंक की चिंता: मनोज भारती के जन सुराज पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से बिहार में इसका असर चिराग पासवान एवं जीतन राम मांझी की पार्टी को होने की बात कही जा रही है. बिहार में दलित वोट बैंक पर सबसे ज्यादा यदि किसी का भी पकड़ है तो वह हैं चिराग पासवान. पिछले हफ्ते चिराग पासवान ने आरक्षण के मुद्दे पर अपने पार्टी के SC-ST प्रकोष्ठ की बैठक में उन्होंने ऐलान किया था कि यदि संविधान एवं आरक्षण के मुद्दे पर उनको गठबंधन एवं मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा तो वह उसके लिए तैयार हैं.
"राजनीति में अभी प्रशांत किशोर की पारी शुरू हुई है. वह दलितों की बात करते हैं जबकि बीजेपी दलित के उत्थान के लिए काम कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दलितों के उत्थान के लिए जितने काम किए गए वह इसका गवाह है. जब प्रशांत किशोर को ही लोग नहीं जानते हैं तो उनके कार्यकारी अध्यक्ष को क्या जानेंगे."-कुंतल कृष्ण, प्रवक्ता, बीजेपी
जन सुराज के भविष्य पर ही सवाल: जीतनराम मांझी के पार्टी के प्रवक्ता विजय यादव का कहना है कि प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में नए-नए आए हैं. उनकी पार्टी कितने दिन चलती है यह देखने वाली बात होगी. प्रशांत किशोर के कार्यक्रम में भाड़े के लोगों को लाया गया. राजनीतिक दलों के पीछे चलने वाले लोग से पार्टी नहीं चलती है. जहां तक दलित अध्यक्ष बनाए जाने की बात है तो कल के उनके कार्यक्रम में कितने दलित समुदाय के लोग शामिल हुए यह सब लोगों ने देखा है. एक बड़े अधिकारी को पार्टी का कमान सौंप दिया गया है लेकिन उसे अधिकारी को बिहार की जनता नहीं पहचानती है.
"जनसुराज के पहले कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती को सिर्फ दलित के रूप में नहीं देखना चाहिए वह नेतरहाट और IIT के प्रोडक्ट है, आईएफएस अधिकारी बने यह भी नहीं भूलना चाहिए. लोजपा प्रवक्ता का कहना है कि बिहार की जनता अब जातपात से ऊपर उठ गई है. 2025 के विधानसभा चुनाव में जात पात से ऊपर उठकर वोट देगी." -विनीत सिंह, प्रवक्ता, लोक जनशक्ति पार्टी
दलित में बड़ा सेंध नीतीश कुमार ने लगाया: वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय का कहना है कि बिहार में शुरू से दलित की राजनीति होती रही है,उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा सेंध नीतीश कुमार ने दलित और महादलित करके लगाया. रामविलास पासवान के बाद चिराग पासवान और जीतन मांझी दलित के बिहार के बड़े चेहरे हैं. दलितों का एक मुस्त वोट लेने के लिए प्रशांत किशोर ने भी मनोज भारती के रूप में दलित कार्ड खेला है उसमें वह शायद ही सफल हो. बिहार के लोग या भली-भांति जानते हैं कि मनोज भारती बाल ही पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हूं, लेकिन पार्टी की पूरी कमान प्रशांत किशोर के हाथ में रहेगी. सुनील पांडेय का कहना है कि यह सही है कि प्रशांत किशोर ने एक दलित के हाथ में पार्टी की कमान सौंपी है.