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दरभंगा: 139 साल पुराने दरभंगा राज के लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का शुरू हुआ जीर्णोद्धार

यह महल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कई यादों को अपने में समेटे हुए है. वर्ष 2011 से 2015 के बीच कई बार के भूकंप में यह काफी क्षतिग्रस्त हो गया है. साइट इंचार्ज रामनाथ ने बताया कि महल के हर एक कोने की मरम्मत की जा रही है.

लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का शुरू हुआ जीर्णोद्धार
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Published : Nov 13, 2019, 9:11 PM IST

दरभंगा: दरभंगा राज के ऐतिहासिक लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का जीर्णोद्धार का काम शुरू हो गया है. लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का जीर्णोद्धार 'बिहार राज्य आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड' के अंतर्गत किया जा रहा है. मिली जानकारी के अनुसार नौ महीने में परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. वहीं बताया जा रहा है कि परियोजना में कुल 7 करोड़ का खर्च निर्धारित किया गया है.

भूकंप में हो गया है क्षतिग्रस्त
गौरतलब है कि यह महल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कई यादों को अपने में समेटे हुए है. वर्ष 2011 से 2015 के बीच कई बार के भूकंप में यह काफी क्षतिग्रस्त हो गया है. साइट इंचार्ज रामनाथ ने बताया कि महल के हर एक कोने की मरम्मत की जा रही है. घड़ी बदलने के साथ ही गुम्बदों को भी ठीक किया जाएगा. फिलहाल महल को खाली कराकर मरम्मत की शुरुआत छत से की गई है.

दरभंगा
मरम्मत करते कर्मचारी

मूल स्वरूप से नहीं होगी छेड़छाड़
वहीं, संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि विवि ने महल की फोटोग्राफी कराकर निगम को दी है. हमारा मुख्य उद्देश्य महल के मूल स्वरूप को संजोये रखना है. इसे हू-ब-हू वैसा ही बनाया जाएगा जैसे यह मूल स्वरूप में रहा है. इसमें थ्रीडी टाइल्स, फ्लोरिंग पत्थर, दरवाजे-खिड़कियों की सिटकिनी सबकुछ महल के पारंपरिक स्वरूप में ही रखा जाएगा. साथ ही उन्होंने बताया कि निगम के साथ यह लिखित करार हुआ है. जीर्णोद्धार के बाद इसे वीडियो और फोटो से मैच भी कराया जाएगा.

लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का शुरू हुआ जीर्णोद्धार

देश-विदेश में होती है खूबसूरती की चर्चा
बता दें कि लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का निर्माण 1880 में महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह के लिए उनके जनेऊ संस्कार के मौके पर कराया गया था. यह महल फ्रेंच और मुगल वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश आर्किटेक्ट मेजर मंत ने इसका नक्शा बनाया था. वहीं, फ्रांसीसी आर्किटेक्ट डीबी मार्सेल ने इसका निर्माण कराया था. लाल और पीले रंग के इस महल में करीब 100 कमरे हैं. इसका दरबार हॉल फ्रांस के दरबार हॉल का नैनो वर्जन माना जाता है. इसकी खूबसूरती की चर्चा देश-विदेश में होती रहती है. बता दें कि महल में महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और इंदिरा गांधी समेत कई देसी-विदेशी रियासतों के राजे-महाराजे और अंग्रेज अधिकारी अतिथि बनकर आ चुके हैं. साथ ही यह महल आजादी की लड़ाई के समय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए बड़ा केंद्र था. अंतिम महाराजा कामेश्वर सिंह ने वर्ष 1961 में इसमें संस्कृत विवि की स्थापना कर इसे दान दे दिया. तब से महल का मालिकाना हक और अधिकार विवि के पास है.

दरभंगा: दरभंगा राज के ऐतिहासिक लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का जीर्णोद्धार का काम शुरू हो गया है. लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का जीर्णोद्धार 'बिहार राज्य आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड' के अंतर्गत किया जा रहा है. मिली जानकारी के अनुसार नौ महीने में परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. वहीं बताया जा रहा है कि परियोजना में कुल 7 करोड़ का खर्च निर्धारित किया गया है.

भूकंप में हो गया है क्षतिग्रस्त
गौरतलब है कि यह महल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कई यादों को अपने में समेटे हुए है. वर्ष 2011 से 2015 के बीच कई बार के भूकंप में यह काफी क्षतिग्रस्त हो गया है. साइट इंचार्ज रामनाथ ने बताया कि महल के हर एक कोने की मरम्मत की जा रही है. घड़ी बदलने के साथ ही गुम्बदों को भी ठीक किया जाएगा. फिलहाल महल को खाली कराकर मरम्मत की शुरुआत छत से की गई है.

दरभंगा
मरम्मत करते कर्मचारी

मूल स्वरूप से नहीं होगी छेड़छाड़
वहीं, संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि विवि ने महल की फोटोग्राफी कराकर निगम को दी है. हमारा मुख्य उद्देश्य महल के मूल स्वरूप को संजोये रखना है. इसे हू-ब-हू वैसा ही बनाया जाएगा जैसे यह मूल स्वरूप में रहा है. इसमें थ्रीडी टाइल्स, फ्लोरिंग पत्थर, दरवाजे-खिड़कियों की सिटकिनी सबकुछ महल के पारंपरिक स्वरूप में ही रखा जाएगा. साथ ही उन्होंने बताया कि निगम के साथ यह लिखित करार हुआ है. जीर्णोद्धार के बाद इसे वीडियो और फोटो से मैच भी कराया जाएगा.

लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का शुरू हुआ जीर्णोद्धार

देश-विदेश में होती है खूबसूरती की चर्चा
बता दें कि लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का निर्माण 1880 में महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह के लिए उनके जनेऊ संस्कार के मौके पर कराया गया था. यह महल फ्रेंच और मुगल वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश आर्किटेक्ट मेजर मंत ने इसका नक्शा बनाया था. वहीं, फ्रांसीसी आर्किटेक्ट डीबी मार्सेल ने इसका निर्माण कराया था. लाल और पीले रंग के इस महल में करीब 100 कमरे हैं. इसका दरबार हॉल फ्रांस के दरबार हॉल का नैनो वर्जन माना जाता है. इसकी खूबसूरती की चर्चा देश-विदेश में होती रहती है. बता दें कि महल में महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और इंदिरा गांधी समेत कई देसी-विदेशी रियासतों के राजे-महाराजे और अंग्रेज अधिकारी अतिथि बनकर आ चुके हैं. साथ ही यह महल आजादी की लड़ाई के समय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए बड़ा केंद्र था. अंतिम महाराजा कामेश्वर सिंह ने वर्ष 1961 में इसमें संस्कृत विवि की स्थापना कर इसे दान दे दिया. तब से महल का मालिकाना हक और अधिकार विवि के पास है.

Intro:दरभंगा। 1880 में बने दरभंगा राज के ऐतिहासिक लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का जीर्णोद्धार का काम शुरू हो गया है। बिहार राज्य आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड सात करोड़ की लागत से यह काम कर रहा है जिसे नौ महीनों में पूरा कर लिया जाएगा। यह महल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कई यादों को अपने में समेटे हुए है। वर्ष 2011 से 2015 के बीच कई बार के भूकंप में यह काफी क्षतिग्रस्त हो गया है।


Body:साइट इंचार्ज रामनाथ ने बताया कि महल के हर एक कोने की मरम्मत की जा रही है। इसकी घड़ी बदली जाएगी और गुम्बदों को भी ठीक किया जाएगा। फिलहाल छत से शुरुआत हुई है। महल को खाली कराया जा रहा है।

वहीं, संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि विवि ने महल की फोटोग्राफी कराकर निगम को दी है। इसे हू-ब-हू वैसा ही बनाना है जैसा यह रहा है। इसमें थ्री डी टाइल्स लगनी है। फ्लोरिंग के लिए वैसे ही पत्थर का उपयोग करना है जैसा इसमें है। दरवाजे-खिड़कियों की सिटकिनी भी बिल्कुल वैसी ही बननी है। उन्होंने कहा कि निगम के साथ यह लिखित करार हुआ है। जीर्णोद्धार के बाद इसे वीडियो और फ़ोटो से मैच कराया जाएगा।


Conclusion:बता दें कि लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस का निर्माण 1880 में महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह के लिए उनके जनेऊ के मौके पर कराया गया था। यह महल फ्रेंच और मुगल वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश आर्किटेक्ट मेजर मन्त ने इसका नक्शा बनाया था। वहीं फ्रांसीसी आर्किटेक्ट डीबी मार्सेल ने इसका निर्माण कराया था। लाल और पीले रंग के इस महल में करीब 100 कमरे हैं। इसका दरबार हॉल फ्रांस के दरबार हॉल का नैनो वर्सन माना जाता है। इसकी खूबसूरती की चर्चा देश-विदेश में होती है। इस महल में महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और इंदिरा गांधी समेत कई देसी-विदेशी रियासतों के राजे-महाराजे और अंग्रेज अधिकारी अतिथि बनकर आ चुके हैं। यह महल आज़ादी की लड़ाई के समय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए बड़ा केंद्र था। अंतिम महाराजा कामेश्वर सिंह ने वर्ष 1961 में इसमें संस्कृत विवि की स्थापना कर इसे दान दे दिया। तब से यह विवि के अधिकार में है।

बाइट 1- रामनाथ, साइट इंचार्ज.
बाइट 2- प्रो. सर्व नारायण झा, कुलपति, केएसडीएसयू.

विजय कुमार श्रीवास्तव
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