दरभंगा: मिथिला में शास्त्रार्थ की परंपरा काफी पुरानी है. यहां 7वीं सदी में दक्षिण भारत से आये आदि गुरू शंकराचार्य ने मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के साथ शास्त्रार्थ किया था. उस प्राचीन शास्त्रार्थ की परंपरा को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय पुन: जीवित करने जा रहा है. विवि की ओर से बिहार के राजभवन में 5 जुलाई को शास्त्रार्थ का आयोजन किया जायेगा.
इस शास्त्रार्थ में मिथिला, वाराणसी और दक्षिण भारत के संस्कृत के विद्वान भाग लेंगे. राजभवन की ओर से इसकी मंजूरी मिल गयी है. संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया कि शास्त्रार्थ को देखने के लिये राज्यपाल खुद मौजूद रहेंगे. इस शास्त्रार्थ का तत्क्षण हिंदी में भी अनुवाद किया जायेगा ताकि जो भी दर्शक वहां आयें उन्हें समझने में कोई दिक्कत न हो.
शास्त्रार्थ को जीवित करने की परंपरा की शुरुआत
गौरतलब है कि संस्कृत विवि ने इसी साल से शास्त्रार्थ को जीवित करने की परंपरा की शुरुआत की है. विवि स्तर पर बिहार के कॉलेजों के छात्र-छात्राओं के बीच शास्त्रार्थ का आयोजन किया जाता रहा है. अब राजभवन में आयोजन के माध्यम से विवि इसको फिर से लोकप्रिय बनाना चाहता है.