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दरभंगा के दिव्यांग जलालुद्दीन की ऊंची उड़ान, तजाकिस्तान में पारा साइकिलिंग प्रतियोगिता में भारत का करेंगे प्रतिनिधित्व

तजाकिस्तान में पारा साइकिलिंग प्रतियोगिता का आयोजन (Para Cycling Competition In Tajikistan) हो रहा है. दरभंगा के दिव्यांग जलालुद्दीन इस प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. जलालुद्दीन के चयन होने पर उनकी मां ने काफी हर्ष व्यक्त किया है. पढ़ें पूरी खबर.

दिव्यांग जलालुद्दीन की ऊंची उड़ान
दिव्यांग जलालुद्दीन की ऊंची उड़ान
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Published : Mar 21, 2022, 10:29 PM IST

दरभंगा: बिहार के दरभंगा के सिंहवाड़ा प्रखंड के टेकटार गांव के जलालुद्दीन (29 वर्ष) महज 6 साल की उम्र में ट्रेन की चपेट में आकर अपना एक पैर गंवा दिया था. जलालुद्दीन बचे हुए एक पैर से फर्राटे से साइकिल चलाते हैं. उन्होंने भारत की कई बड़ी प्रतियोगिताओं में घंटों साइकिल चलाकर कई रिकॉर्ड बनाए हैं. अब जलालुद्दीन भारत से बाहर तजाकिस्तान के दुशांबे में 25-29 मार्च तक होने वाले एशियन पारा रोड साइकिलिंग चैंपियनशिप (Asian Para Road Cycling Championship) में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे.

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जलालुद्धीन करेंगे भारत का प्रतिनिधित्व: एशियन पारा रोड साइकिलिंग चैंपियनशिप प्रतियोगिता को लेकर साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने इससे संबंधित पत्र जारी किया है. पत्र में बिहार के जलालुद्दीन समेत देश के अलग-अलग राज्यों के कुल 10 पुरुष और महिला खिलाड़ियों के नाम शामिल हैं. जलालुद्दीन फिलहाल दिल्ली में हैं. जहां से मंगलवार को वे 13 सदस्यीय टीम के साथ तजाकिस्तान के लिए रवाना होंगे. उनकी इस उपलब्धि से गांव और पूरे इलाके में खुशी का माहौल है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता खेलने का था सपना: जलालुद्दीन ने कहा कि उनका बचपन का सपना था कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में खेलें और देश के लिए गोल्ड मेडल जीत कर लाएं. उन्होंने कहा कि अब यह सपना हकीकत बनने जा रहा है तो उन्हें बेहद खुशी हो रही है. वे देश को इस प्रतियोगिता में पूरी दुनिया में अव्वल स्थान पर लाने के लिए खेलेंगे. जलालुद्दीन ने बताया कि छह साल की उम्र में उन्होंने अपना एक पांव ट्रेन की चपेट में आकर गंवा दिया था.

एक पैर गंवाने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत: जलालुद्दीन ने बताया कि पैर गंवाने के बाद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और साइकिलिंग को अपना करिअर बनाने के लिए कड़ी मेहनत और प्रैक्टिस करते रहे. साल 2016 में लखनऊ में आयोजित एक रेस में उन्होंने लगातार 12 घंटे तक साइकिल चलाई. इस दौरान उन्होंने 300 किलोमीटर साइकिल चलाकर रिकॉर्ड कायम किया था. तब यूपी के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने उसे पुरस्कृत किया था.

अबतक जीत चुके हैं कई प्रतियोगिता: जलालुद्दीन ने बताया कि वर्ष 2019 में इंडोनेशिया में दिव्यांगों के लिए हुई अंतरराष्ट्रीय साइकिलिंग प्रतियोगिता में चयनित होने के बाद भी संसाधनों के अभाव में वे देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर सके. उन्होंने कहा कि 2011 में दरभंगा जिला स्थापना दिवस पर आयोजित साइकिलिंग प्रतियोगिता में 600 सामान्य बच्चों के बीच उन्हें 14वां स्थान मिला. उसके बाद तो उसके जैसे पंख लग गए. मुजफ्फरपुर, पटना, अहमदाबाद, हैदराबाद और लखनऊ में उन्होंने अपनी साधारण सी पुरानी साइकिल से कई प्रतियोगिताएं जीते.

गीरीबी ने कई सालों तक रोके रखा: हालांकि गरीबी की वजह और संसाधनों की कमी ने उन्हें आगे बढ़ने से कई साल तक रोके रखा. जलालुद्दीन की मां रजिया खातून ने अपने बेटे की इस उपलब्धि पर बेहद खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि जलालुद्दीन दुनिया भर में भारत का नाम साइकिलिंग में रोशन करेगा, यही सबकी दुआ है. उन्होंने कहा कि जलालुद्दीन में बहुत हौसला है. परिवार की गरीबी उसे आगे बढ़ने में बाधक बनी लेकिन अब जाकर मौका मिला है तो बेटा देश के लिए गोल्ड मेडल जरूर जीतेगा.

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दरभंगा: बिहार के दरभंगा के सिंहवाड़ा प्रखंड के टेकटार गांव के जलालुद्दीन (29 वर्ष) महज 6 साल की उम्र में ट्रेन की चपेट में आकर अपना एक पैर गंवा दिया था. जलालुद्दीन बचे हुए एक पैर से फर्राटे से साइकिल चलाते हैं. उन्होंने भारत की कई बड़ी प्रतियोगिताओं में घंटों साइकिल चलाकर कई रिकॉर्ड बनाए हैं. अब जलालुद्दीन भारत से बाहर तजाकिस्तान के दुशांबे में 25-29 मार्च तक होने वाले एशियन पारा रोड साइकिलिंग चैंपियनशिप (Asian Para Road Cycling Championship) में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे.

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जलालुद्धीन करेंगे भारत का प्रतिनिधित्व: एशियन पारा रोड साइकिलिंग चैंपियनशिप प्रतियोगिता को लेकर साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने इससे संबंधित पत्र जारी किया है. पत्र में बिहार के जलालुद्दीन समेत देश के अलग-अलग राज्यों के कुल 10 पुरुष और महिला खिलाड़ियों के नाम शामिल हैं. जलालुद्दीन फिलहाल दिल्ली में हैं. जहां से मंगलवार को वे 13 सदस्यीय टीम के साथ तजाकिस्तान के लिए रवाना होंगे. उनकी इस उपलब्धि से गांव और पूरे इलाके में खुशी का माहौल है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता खेलने का था सपना: जलालुद्दीन ने कहा कि उनका बचपन का सपना था कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में खेलें और देश के लिए गोल्ड मेडल जीत कर लाएं. उन्होंने कहा कि अब यह सपना हकीकत बनने जा रहा है तो उन्हें बेहद खुशी हो रही है. वे देश को इस प्रतियोगिता में पूरी दुनिया में अव्वल स्थान पर लाने के लिए खेलेंगे. जलालुद्दीन ने बताया कि छह साल की उम्र में उन्होंने अपना एक पांव ट्रेन की चपेट में आकर गंवा दिया था.

एक पैर गंवाने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत: जलालुद्दीन ने बताया कि पैर गंवाने के बाद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और साइकिलिंग को अपना करिअर बनाने के लिए कड़ी मेहनत और प्रैक्टिस करते रहे. साल 2016 में लखनऊ में आयोजित एक रेस में उन्होंने लगातार 12 घंटे तक साइकिल चलाई. इस दौरान उन्होंने 300 किलोमीटर साइकिल चलाकर रिकॉर्ड कायम किया था. तब यूपी के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने उसे पुरस्कृत किया था.

अबतक जीत चुके हैं कई प्रतियोगिता: जलालुद्दीन ने बताया कि वर्ष 2019 में इंडोनेशिया में दिव्यांगों के लिए हुई अंतरराष्ट्रीय साइकिलिंग प्रतियोगिता में चयनित होने के बाद भी संसाधनों के अभाव में वे देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर सके. उन्होंने कहा कि 2011 में दरभंगा जिला स्थापना दिवस पर आयोजित साइकिलिंग प्रतियोगिता में 600 सामान्य बच्चों के बीच उन्हें 14वां स्थान मिला. उसके बाद तो उसके जैसे पंख लग गए. मुजफ्फरपुर, पटना, अहमदाबाद, हैदराबाद और लखनऊ में उन्होंने अपनी साधारण सी पुरानी साइकिल से कई प्रतियोगिताएं जीते.

गीरीबी ने कई सालों तक रोके रखा: हालांकि गरीबी की वजह और संसाधनों की कमी ने उन्हें आगे बढ़ने से कई साल तक रोके रखा. जलालुद्दीन की मां रजिया खातून ने अपने बेटे की इस उपलब्धि पर बेहद खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि जलालुद्दीन दुनिया भर में भारत का नाम साइकिलिंग में रोशन करेगा, यही सबकी दुआ है. उन्होंने कहा कि जलालुद्दीन में बहुत हौसला है. परिवार की गरीबी उसे आगे बढ़ने में बाधक बनी लेकिन अब जाकर मौका मिला है तो बेटा देश के लिए गोल्ड मेडल जरूर जीतेगा.

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