पटना: सावन का महीना आते ही हर तरफ हरियाली छा जाती है. इस खास मौसम में लोकगीतों का विशेष महत्व है. जिसमें कजरी सबसे ज्यादा मशहूर है. खेतों में धान रोपनी कर रही महिलाएं हो या पेड़ों की डालियों पर झूला झूल रही युवती. बारिश के साथ ही कजरी सुनाई देने लगती थी. लेकिन, बदलते समय में कजरी लोकगीत खत्म होती दिख रही है.
'कजरी भाइयों में मतभेद नहीं आने देती है'
कहते है कि कजरी सामूहिक परिवार का संदेश और संस्कार का गीत है. हर शब्द और अंतरे का मतलब होता है. इसमें पत्नी की विरह, प्रेम और नोंकझोंक है. अगर लोग कजरी को जीवन में आत्मसात कर लें, तो घर के झगड़े खत्म हो जाएंगे. वर्तमान में विवाह होते ही भाई अलग रहने लगते हैं, जबकि एक कजरी में इसका वर्णन है, जब भौजाई कहती है कि देवर बिन अंगना सून लागे राजा. इसका मतलब है कि कजरी भाइयों में मतभेद नहीं आने देती है.
कजरी : चला चली धान रोपे सजना
भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ब्रज और भोजपुरी के अलावा संस्कृत में भी कजरी रचना की है. कजरी की बात हो और सुप्रसिद्ध गायिका गिरजा देवी जी का स्मरण न किया जाए ऐसा संभव नहीं. 'भारतरत्न' सम्मान से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्ला खान की शहनाई पर तो कजरी और भी मीठी हो जाती थी. कजरी गाने के लिए मालिनी अवस्थी, शारदा सिंहा का नाम लिया जाता है. इतना ही नहीं कजरी का जिक्र आते ही स्मरण आते हैं भोजपुर के अमर गायक भिखारी ठाकुर, महेंद्र मिसिर.
कजरी को बचाने का प्रयास
भोजपुरी जगत के कलाकारों ने भी कजरी को एक पहचान दी है. विलुप्त होती कजरी को बचाने के लिए कई कदम उठाए जा रहे है. इस लोकगीत को लेकर बक्सर में रविवार को कजरी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में भोजपुरी गायकों को भी सम्मिलित किया जाएगा. इनमें भोजपुरी गायक भरत शर्मा व्यास प्रमुख होंगे.