बक्सर: बिहार में नगर निकाय चुनाव का मुद्दा गरम है. एक ओर जहां बिहार जदयू के नेता पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहें हैं तो वहीं दूसरी ओर इसको लेकर बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने भी बिहार सरकार पर निशाना साधा है. इस मुद्दे पर प्रदेश की राजनीति में सियासी घमासान भी मचा हुआ है. सत्ता पक्ष बीजेपी पर ये आरोप लगा रहा है कि वो साजिश रचकर पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने जा रही है. तो विपक्ष सरकार पर हमलावर है.
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EBC पर नीतीश ने जानबूझकर ऐसा किया: बक्सर से केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने नीतीश कुमार पर जम कर निशाना साधा है. केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि नीतीश कुमार जानबूझकर कर जनता के साथ धोखा किया है. यदि पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में कार्य किया गया रहता तो यह नौबत नहीं आती. सरकार जानबूझकर ऐसा की है. नीतीश कुमार ही इसके लिए दोषी हैं.
''नीतीश कुमार जानबूझकर कर जनता के साथ धोखा किया है. यदि पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में कार्य किया गया रहता तो यह नौबत नहीं आती. सरकार जानबूझकर ऐसा की है. नीतीश कुमार ही इसके लिए दोषी हैं''- अश्विनी चौबे, केंद्रीय मंत्री
सुशील मोदी भी कर चुके हैं अटैक: इससे पहले पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने मोर्चा खोलकर नीतीश सरकार पर निशाना साध रहें हैं. बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने एक ट्वीट में कहा है कि नीतीश जी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में समय बर्बाद न करें. कोर्ट के निर्देशों का पालन कर डेडिकेटेड आयोग का तुरंत गठन करें. ऐसा नहीं किया तो 6 महीने का और विलंब हो जाएगा. नीतीश सरकार को AG और स्टेट इलेक्शन कमीशन के पत्रों को भी सार्वजनिक करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो नीतीश EBC को आरक्षण से वंचित करने का जिम्मा भी लें.
नगर निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट की रोक: दरअसल, बिहार में इस महीने होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव कराने से फिलहाल रोक लगा दी. पटना हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद आनन-फानन में बिहार राज्य निर्वाचन आयोग की बैठक हुई. जिसमें अधिकारियों ने पूरे मामले पर हाईकोर्ट के निर्णय की जानकारी ली. जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारी और नगर विकास विभाग के सचिव भी मौजूद रहे. इस बैठक में चुनाव को फिलहाल स्थगित करने का निर्णय लिया गया.
ये है मामला: गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़ें जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ईबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करें. ऐसे में कहा जा सकता है कि नगर निकाय चुनाव पर मचा यह सियासी संग्राम अभी थमने वाला नहीं है.