बक्सर: कोरोना की दूसरी लहर (Second Wave of Corona) ने पूरे भारत में हाहाकार मचा कर रख दिया था. बिहार में भी संक्रमित मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही थी. बक्सर में भी मौत के आंकड़ों में लगातार इजाफा हो रहा था. बक्सर जिले के अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों का क्या हाल है, यह पता लगाने के लिए ईटीवी भारत की टीम सिमरी प्रखंड के अंतर्गत दुल्लहपुर पंचायत के उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंची.
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तीसरी लहर के लिए हम कितने तैयार
उप स्वास्थ्य केंद्र के खंडहरनुमा कमरे में भैंस बांधी हुई थी और मेडिकल उपकरणों की जगह पर खाना बनाने के लिए बर्तन रखे हुए थे. हैरानी की बात ये है कि इस उप स्वास्थ्य केंद्र पर एक नर्स साल 1990 से एक ही जगह पर तैनात है. जिसने इस उप स्वास्थ्य केंद्र को पूरी तरह से अपना घर बना रखा है. जहां खाना बनाने के तमाम बर्तन और आराम फरमाने के लिए बेड लगा हुआ है. पड़ोस में रहने वाले लोग अस्पताल को भैंस का तबेला और मरीजों के बैठने वाली जगह पर गोबर का ढेर जमा करके रखे हुए हैं.
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क्या कहते हैं ग्रामीण?
जब इस उप स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली को लेकर ग्रामीणों से पूछा गया तो इस उप स्वास्थ्य केंद्र में भैंस बांधने वाले लोगों ने बताया कि जब यहां किसी प्रकार का इलाज होता ही नहीं है. यह अस्पताल असामाजिक तत्वों का अड्डा न बन जाये, इसके लिए साफ-सफाई कर हम लोग भैंस बांधते हैं. सर्दी, खांसी, बुखार जैसे छोटी-छोटी बीमारियों का इलाज कराने के लिए भी यहां से 20 किलोमीटर दूर बक्सर या फिर डुमराव ही जाना पड़ता है.
''जब ये अस्पताल भगवान भरोसे ही चल रहा है, तो हम लोग अपने काम में थोड़ा सा इस्तेमाल करके कौन सा गलती कर दिए. महीने में एक बार कभी स्वास्थ्य कर्मी आकर केवल अपनी हाजिरी बनाते हैं. बेड लगा हुआ है, जिस पर आराम फरमाते हैं, तो ऐसे अस्पताल रहने से क्या फायदा.''- ग्रामीण
क्या कहते हैं स्वास्थ्यकर्मी?
साल 1990 से इस प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात एएनएम कुसुम कुमारी ने बताया कि 1990 से मैं इस उप स्वास्थ्य केंद्र पर कार्यरत हूं. इस बीच ना तो मेरी कहीं बदली हुई और ना ही किसी के द्वारा कोई सवाल उठाया गया, जिसके कारण मैं इस स्वास्थ्य केंद्र पर पिछले 30 साल से योगदान दे रही हूं. इस उपस्वास्थ्य केंद्र पर ना तो पीने के लिए पानी की व्यवस्था है और ना ही शौचालय है.
''संसाधन नहीं होने के कारण छोटे-छोटे इलाज कराने के लिए भी लोगों को बक्सर या डुमरांव जाना पड़ता है, क्योंकि हमारे पास संसाधन ही नहीं हैं और ना ही मैन पावर है. जिस व्यक्ति के घर से डिलीवरी कराने की सूचना आती है. उसके घर पर ही जाकर जो उचित सलाह होता है उसे दे देती हूं.''- कुसुम देवी, एएनएम, उपस्वास्थ्य केंद्र
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बता दें कि गांव-गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार हजारों करोड़ रुपए का बजट बनाती हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर लोगों को यह सुविधा कितना मिल पाती है, यह तस्वीर देखकर आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं. सरकार और सिस्टम में बैठे हुए लोग इस व्यवस्था को बदलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं.