बक्सर: बिहार की राजधनी पटना से महज 120 किलोमीटर पश्चिम बक्सर के सदर अस्पताल में मरीज हलकान और परेशान हैं. शव के बगल के बेड में मरीजों को रखा जा रहा है. ऐसे में लोग यहां इलाज कराने आने से भी डरने लगें हैं.
'इलाज नहीं होने के कारण मां चली गई': शुक्रवलिया गांव निवासी संतोष शाह की मां ने सदर अस्पताल में दम तोड़ दिया है. संतोष ने बताया कि मां के द्वारा तबीयत ठीक नहीं होने की शिकायत करने पर उसे लेकर सदर अस्पताल आए थे. चिकित्सकों से हाथ जोड़कर कहता रहा कि पहले मां का इलाज तो शुरू कीजिए लेकिन हमें सीधे बोल दिया गया कि हालत खराब है, यहां आईसीयू नहीं है, पटना लेकर जाओ.
"मैंने डॉक्टर को कहा कि इलाज शुरू कर दीजिए. मां की तबीयत बहुत खराब थी लेकिन उन्होंने कह दिया कि ये हमारे वश की बात नहीं है. अगर डॉक्टर इलाज कर ही नहीं सकते तो फिर किस बात के डॉक्टर हैं? मुझे मां को पटना ले जाने की नसीहत देते हुए चिकित्सर इधर-उधर दौड़ाते रहे. मैं एंबुलेंस ढूंढता रहा लेकिन अस्पताल से कोई मदद नहीं मिली और मेरी मां की मौत हो गई."- संतोष शाह, मृतक के बेटे
बक्सर सदर अस्पताल में मरीजों का बुरा हाल: मां की मौत से टूट चुके संतोष ने बताया कि स्वास्थ्य सुविधा के तमाम दावे सिर्फ सियासी हैं. मिशन-60 और क्वालिटी कागजों पर है. अस्पताल में ना मरीजों को एंबुलेंस की सुविधा मिलती है और ना ही चिकित्सक ही सही तरीके से इलाज करते हैं.
मैं जितना कर सकता था, मैंने किया. मरीज का पल्स नहीं मिल रहा था, वह बेहोश थी. मैंने परिजनों को बोला कि पटना लेकर जाइये. उसे आईसीयू की जरूरत थी. हम फर्स्ट एड दे सकते थे, वही दिया.- गोपाल कृष्ण, डॉक्टर, सदर अस्पताल
लाशों के बीच हो रहा इलाज: सदर अस्पताल की लचर हालत इसी बात से समझी जा सकती है कि लाशों के बीच मरीजों का इलाज हो रहा है. परिसर में लंबी कतार और बरामदे में दूर-दूर तक जमीन में लेटे हुए मरीज नजर आए. इतना ही नहीं ग्लूकोस की बोतल और मरीज को संभालने का जिम्मा भी परिजनों पर ही है. एक मरीज को ग्लूकोज चढ़ रहा था और उसके परिजन बोतल हाथ में लिए इधर-उधर भटकते दिखे.
बक्सर सदर अस्पताल तो एक बानगी है, आए दिन इस तरह की तस्वीरें कई जगहों से सामने आती हैं. ऐसे में लोग कह रहे हैं कि बिहार का स्वास्थ्य महकमा वेंटिलेटर पर है. वहीं स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव से सवाल कर रहे हैं कि औचक निरीक्षण और दिशा निर्देश का असर कहां हो रहा है?