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भगवान श्रीराम की धरती बक्‍सर में आज से पंचकोसी मेला, 28 नवंबर को खाया जाएगा लिट्टी चोखा - खाया जाएगा लिट्टी चोखा

हर साल बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रद्धालु बक्सर आते हैं. 5 दिन तक चलने वाले इस पंचकोसी परिक्रमा मेला (Panchkosi Parikrama Mela) में भाग लेते हैं. आज से मेले की शुरुआत हो रही है. पढ़ें पूरी खबर...

बक्‍सर में आज से पंचकोसी मेला शुरू
बक्‍सर में आज से पंचकोसी मेला शुरू
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Published : Nov 24, 2021, 10:15 AM IST

बक्सर : लोक संस्कृति और आस्था पर आधारित बक्सर का सुप्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा मेला (Panchkosi Parikrama Mela) की शुरुआत आज से हो रही है. इस मेले की शुरुआत बक्सर के अहिरौली से होती है, जिसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम ने यहीं पर अहिल्या का उद्धार किया था. तभी से यहां परंपरा बन गई और हर साल बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रद्धालु यहां पर आते हैं और 5 दिन तक चलने वाले इस परिक्रमा मेला में भाग लेते हैं. 5 दिनों तक चलने वाला यह परिक्रमा मेला अहिरौली से शुरू होकर चरित्रवन में समाप्त होता है.

इसे भी पढ़ें : बक्सर: बुधवार से पंचकोसी परिक्रमा यात्रा... श्रद्धालुओं के लिए नहीं की गयी है कोई व्यवस्था

बक्सर में पांच दिवसीय मेले की शुरुआत हो गई है. लेकिन यहां मेले में आये श्रद्धालुओं की शिकायत है कि यहां कोई व्यवस्था नहीं की गई है. ईटीवी भारत से बातचीत में स्थानीय श्रद्धालु विद्याशंकर चौबे ने बताया कि मेले के लिए प्रशासन की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गई है. पंचकोसी कमिटी में पैसा आता है लेकिन सभी सदस्य 20-20 हजार रुपये लेकर गबन कर जाते हैं. मेले की तैयारी से पहले नगर पालिका के अधिकारी भी आये थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया है.

देखें वीडियो

'एसडीओ साहेब , एसपी भी आये लेकिन सिर्फ आश्वासन देकर चले गये हैं, रिजल्ट कुछ नहीं निकला है. मेले के नाम पर सिर्फ लोग यहां राजनीति करते हैं. विधायक मुन्ना तिवारी और बक्सर सांसद अश्विनी चौबे के पास भी मेला की तैयारी को लेकर गये हैं. लेकिन उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी.' :- विद्याशंकर चौबे , स्थानीय श्रद्धालु

'काफी सुप्रसिद्ध मेला यहां आज से शुरु हो रहा है लेकिन व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है. जहां-तहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है. पांच दिनों तक मेला यहां लगता है. इस हिसाब से यहां प्रशासन द्वारा तैयारी होनी चाहिए थी. श्रद्धालुओं को काफी परेशानी हो रही है.' :- चंदा पाठक, महिला श्रद्धालु

बता दें कि महर्षि विश्वामित्र के तपोस्थली और भगवान श्रीराम के शिक्षा स्थली के रूप सुप्रसिद्ध यह नगर आज भी अपने आंगन में उन पौराणिक और आध्यात्मिक स्मृतियों को संजोए हुए हैं. उन्हीं परंपराओं में एक बक्सर का सुप्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा मेला होता है. पांच दिवसीय पंचकोसी परिक्रमा मेला की शुरुआत अहिल्या के उद्धारस्थली अहिरौली से होती है. दूसरा पड़ाव नंदाव होता है जहां नारद मुनि का आश्रम था, तीसरा पड़ाव भभुअर होता है जहां भार्गव मुनि का रहते थे, चौथा पड़ाव नुवाव में होता है जहां उद्दालक ऋषि का आश्रम था और पांचवा एवं अंतिम पड़ाव चरित्रवन में होता है जहां महर्षि विश्वामित्र का आश्रम अवस्थित था.

मान्यता है कि जब महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ बक्सर आये थे तो ताड़का वध के पश्चात इन्हीं पांच स्थलों पर गये. पांचों मुनियों से आशीर्वाद लिए और इन पांच स्थानों पर पांच तरह का भोजन ग्रहण किये. बताया जाता है कि अहिरौली में पकवान, नदाव में खिचड़ी चोखा, भभुअर में चूड़ा दही, नुवाव में सत्तू मूली और चरित्रवन में लिट्टी चोखा खाये थे जो आज भी परंपरा के रूप में श्रद्धालु करते हैं.

अहिरौली जहां से इस पांच दिवसीय मेले की शुरुआत हो गई है, वहीं बक्सर में आकर लिट्टी-चोखा के साथ सम्पन्न हो जाएगी. मेले का अंतिम पड़ाव बक्सर का चरित्रवन होता है, पूरे चरित्रवन इलाके में चाहे वो जिला अतिथि गृह हो या किला का मैदान या फिर यूं कहे कि इस दिन पूरा बक्सर लिट्टी-चोखा मय हो जाता है, और श्रद्धालु इस लाजवाब व्यंजन का लुत्फ उठाते हैं.

मान्यता है कि जब भगवान राम महर्षि विश्वामित्र के साथ ताड़िका वध के लिए बक्सर आये थे. इसी समय महर्षि गौतम की शापित पत्नी अहिल्या का अपने चरण से छूकर उद्धार किये थे. भगवान राम के इसी यात्रा के बाद पंचकोशी परिक्रमा मेला शुरू हो गई. जिसमें देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं. इस अवसर पर यहां भजन संध्या का कार्यक्रम भी आयोजित होता है.पंचकोशी परिक्रमा मेला बक्सर की पहचान है. इसके महत्व को लेकर ही यहां एक बहुत ही पुरानी कहावत प्रचलित है. 'माई बिसरी…चाहे बाबू बिसरी..पंचकोशवा के लिए लिट्टी चोखा नाहीं बिसरी' शास्त्रीय मान्यता के अनुसार मार्ग शीर्ष अर्थात अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मेला प्रारंभ होता है.

यज्ञ में व्यवधान पैदा करने वाली ताड़का व मारीच-सुबाहू को उन्होंने मारा था. इसके बाद इस सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले पांच ऋषियों के आश्रम पर वे आर्शीवाद लेने गए. जिन पांच स्थानों पर वे गए. वहां रात्रि विश्राम किया. मुनियों ने उनका स्वागत जो पदार्थ उपलब्ध था, उसे प्रसाद स्वरुप देकर किया. उसी परंपरा के अनुरुप यह मेला यहां त्रेता युग से अनवरत चलता आ रहा है. यदि इन स्थलों को रामायण सर्किट से जोड़कर विकसित किया जाए तो यह क्षेत्र भी विकसित हो सकता है.

जिले में इतना महत्वपूर्ण और बड़ा आयोजन होने के बावजूद भी यह कहीं न कहीं सरकारी उदासीनता का शिकार हैं और यही वजह है कि बनारस यानी काशी से मात्र 120 किलोमीटर की दूरी होने के बावजूद भी धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में यह लघु काशी यानी बक्सर बहुत पिछड़ा हुआ है. ऐसे में यदि बक्सर की इस धार्मिक स्थलों का सुव्यवस्थित विकास कर धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित विश्व मानचित्र पर प्रदर्शित किया जाए तो बक्सर को एक विशेष पहचान मिल सकती है.

ये भी पढ़ें : ग्राउंड रिपोर्ट: गरीब और असहायों के लिए आसरा बना रैन बसेरा, व्यवस्था से लोग संतुष्ट

बक्सर : लोक संस्कृति और आस्था पर आधारित बक्सर का सुप्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा मेला (Panchkosi Parikrama Mela) की शुरुआत आज से हो रही है. इस मेले की शुरुआत बक्सर के अहिरौली से होती है, जिसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम ने यहीं पर अहिल्या का उद्धार किया था. तभी से यहां परंपरा बन गई और हर साल बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रद्धालु यहां पर आते हैं और 5 दिन तक चलने वाले इस परिक्रमा मेला में भाग लेते हैं. 5 दिनों तक चलने वाला यह परिक्रमा मेला अहिरौली से शुरू होकर चरित्रवन में समाप्त होता है.

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बक्सर में पांच दिवसीय मेले की शुरुआत हो गई है. लेकिन यहां मेले में आये श्रद्धालुओं की शिकायत है कि यहां कोई व्यवस्था नहीं की गई है. ईटीवी भारत से बातचीत में स्थानीय श्रद्धालु विद्याशंकर चौबे ने बताया कि मेले के लिए प्रशासन की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गई है. पंचकोसी कमिटी में पैसा आता है लेकिन सभी सदस्य 20-20 हजार रुपये लेकर गबन कर जाते हैं. मेले की तैयारी से पहले नगर पालिका के अधिकारी भी आये थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया है.

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'एसडीओ साहेब , एसपी भी आये लेकिन सिर्फ आश्वासन देकर चले गये हैं, रिजल्ट कुछ नहीं निकला है. मेले के नाम पर सिर्फ लोग यहां राजनीति करते हैं. विधायक मुन्ना तिवारी और बक्सर सांसद अश्विनी चौबे के पास भी मेला की तैयारी को लेकर गये हैं. लेकिन उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी.' :- विद्याशंकर चौबे , स्थानीय श्रद्धालु

'काफी सुप्रसिद्ध मेला यहां आज से शुरु हो रहा है लेकिन व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है. जहां-तहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है. पांच दिनों तक मेला यहां लगता है. इस हिसाब से यहां प्रशासन द्वारा तैयारी होनी चाहिए थी. श्रद्धालुओं को काफी परेशानी हो रही है.' :- चंदा पाठक, महिला श्रद्धालु

बता दें कि महर्षि विश्वामित्र के तपोस्थली और भगवान श्रीराम के शिक्षा स्थली के रूप सुप्रसिद्ध यह नगर आज भी अपने आंगन में उन पौराणिक और आध्यात्मिक स्मृतियों को संजोए हुए हैं. उन्हीं परंपराओं में एक बक्सर का सुप्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा मेला होता है. पांच दिवसीय पंचकोसी परिक्रमा मेला की शुरुआत अहिल्या के उद्धारस्थली अहिरौली से होती है. दूसरा पड़ाव नंदाव होता है जहां नारद मुनि का आश्रम था, तीसरा पड़ाव भभुअर होता है जहां भार्गव मुनि का रहते थे, चौथा पड़ाव नुवाव में होता है जहां उद्दालक ऋषि का आश्रम था और पांचवा एवं अंतिम पड़ाव चरित्रवन में होता है जहां महर्षि विश्वामित्र का आश्रम अवस्थित था.

मान्यता है कि जब महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ बक्सर आये थे तो ताड़का वध के पश्चात इन्हीं पांच स्थलों पर गये. पांचों मुनियों से आशीर्वाद लिए और इन पांच स्थानों पर पांच तरह का भोजन ग्रहण किये. बताया जाता है कि अहिरौली में पकवान, नदाव में खिचड़ी चोखा, भभुअर में चूड़ा दही, नुवाव में सत्तू मूली और चरित्रवन में लिट्टी चोखा खाये थे जो आज भी परंपरा के रूप में श्रद्धालु करते हैं.

अहिरौली जहां से इस पांच दिवसीय मेले की शुरुआत हो गई है, वहीं बक्सर में आकर लिट्टी-चोखा के साथ सम्पन्न हो जाएगी. मेले का अंतिम पड़ाव बक्सर का चरित्रवन होता है, पूरे चरित्रवन इलाके में चाहे वो जिला अतिथि गृह हो या किला का मैदान या फिर यूं कहे कि इस दिन पूरा बक्सर लिट्टी-चोखा मय हो जाता है, और श्रद्धालु इस लाजवाब व्यंजन का लुत्फ उठाते हैं.

मान्यता है कि जब भगवान राम महर्षि विश्वामित्र के साथ ताड़िका वध के लिए बक्सर आये थे. इसी समय महर्षि गौतम की शापित पत्नी अहिल्या का अपने चरण से छूकर उद्धार किये थे. भगवान राम के इसी यात्रा के बाद पंचकोशी परिक्रमा मेला शुरू हो गई. जिसमें देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं. इस अवसर पर यहां भजन संध्या का कार्यक्रम भी आयोजित होता है.पंचकोशी परिक्रमा मेला बक्सर की पहचान है. इसके महत्व को लेकर ही यहां एक बहुत ही पुरानी कहावत प्रचलित है. 'माई बिसरी…चाहे बाबू बिसरी..पंचकोशवा के लिए लिट्टी चोखा नाहीं बिसरी' शास्त्रीय मान्यता के अनुसार मार्ग शीर्ष अर्थात अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मेला प्रारंभ होता है.

यज्ञ में व्यवधान पैदा करने वाली ताड़का व मारीच-सुबाहू को उन्होंने मारा था. इसके बाद इस सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले पांच ऋषियों के आश्रम पर वे आर्शीवाद लेने गए. जिन पांच स्थानों पर वे गए. वहां रात्रि विश्राम किया. मुनियों ने उनका स्वागत जो पदार्थ उपलब्ध था, उसे प्रसाद स्वरुप देकर किया. उसी परंपरा के अनुरुप यह मेला यहां त्रेता युग से अनवरत चलता आ रहा है. यदि इन स्थलों को रामायण सर्किट से जोड़कर विकसित किया जाए तो यह क्षेत्र भी विकसित हो सकता है.

जिले में इतना महत्वपूर्ण और बड़ा आयोजन होने के बावजूद भी यह कहीं न कहीं सरकारी उदासीनता का शिकार हैं और यही वजह है कि बनारस यानी काशी से मात्र 120 किलोमीटर की दूरी होने के बावजूद भी धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में यह लघु काशी यानी बक्सर बहुत पिछड़ा हुआ है. ऐसे में यदि बक्सर की इस धार्मिक स्थलों का सुव्यवस्थित विकास कर धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित विश्व मानचित्र पर प्रदर्शित किया जाए तो बक्सर को एक विशेष पहचान मिल सकती है.

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