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बक्सर में लिट्टी चोखा महोत्सव के साथ विख्यात पंचकोशी परिक्रमा मेला का समापन, हजारों श्रद्धालु हुए शामिल

बक्सर में लिट्टी चोखा महोत्सव मनाया गया. 17 नवंबर से प्रारंभ पांच दिनों तक चलने वाला पंचकोशी परिक्रमा मेला (Five Day Panchkoshi Parikrama In Buxar) का चरित्रवन में लिट्टी चोखा के भोग के साथ समापन हो गया. प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है. जिसमें भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से बक्सर आते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

बक्सर में मनाया जा रहा लिट्टी चोखा महोत्सव
बक्सर में मनाया जा रहा लिट्टी चोखा महोत्सव
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Published : Nov 17, 2022, 5:51 PM IST

बक्सर: बिहार के बक्सर जिले की पहचान बन चुकी पांच दिवसीय पंचकोशी परिक्रमा मेला का समापन (Panchkoshi Parikrama Fair Complet In Buxar) आज लिट्टी चोखा महोत्सव के साथ संपन्न हो गया. 17 नवंबर से प्रारंभ पांच दिनों तक चलने वाला पंचकोशी परिक्रमा मेला का चरित्रवन में लिट्टी चोखा के भोग के साथ (Litti Chokha Festival in Buxar) समापन हुआ. ठंड होने के बावजूद भी पंचकोशी परिक्रमा मेला में आये श्रद्धालु और संत समाज पांच दिनों तक मेला के भक्तिमय माहौल से आनंदित दिखे. त्रिदंडी स्वामी गंगापुत्र ने बताया कि बक्सर के इस पंचकोशी परिक्रमा मेला के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब बताई गई है.

ये भी पढ़ें- गजब..! ड्राई फ्रूट खाता है सोनपुर मेला पहुंचा ये 'डांसर बाहुबली', पैर में घुंघरू बांधते ही दौड़ने लगता

पंचकोशी परिक्रमा मेला का समापन : बक्सर की पहचान इस मेले की सरकारी उपेक्षा होती रही है. परिक्रमा करने आये श्रद्धालुओं के लिए किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं की गई. बात पीने के पानी का हो या साफ-सफाई की हो या शौचालय की. यहां कोई व्यवस्था नहीं हुई थी. गौरतलब है कि पंचकोशी परिक्रमा मेला यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आये थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था.

बक्सर में राक्षसों का आतंक था : इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण किया था. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किये. इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली भगवान राम पहुंचे, जहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया और उत्तरायणी गंगा में स्नान कर पुआ-पकवान खाये.

नारद मुनि के आश्रम नदवां गए थे भगवान राम : यात्रा के दूसरे पड़ाव में भगवान राम नारद मुनि के आश्रम नदवां पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया. इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चूड़ा दही, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में खिचड़ी और पांचवें एवं अंतिम पड़ाव चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं. प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है.

पंचकोशी परिक्रमा यात्रा : पंचकोशी परिक्रमा यात्रा में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से बक्सर आते हैं. बता दें कि इस मेले के अंतिम दिन को लेकर मान्यता रही है कि, अंतिम दिन प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है, क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है जिसके रजकण में अनन्त यज्ञ किये गए हैं. जिस धरा पर यज्ञ रक्षा हेतु श्री राम लक्ष्मण के कदम चलें और उनके चरणों की पवित्रता उसमें समाहित हुई. मेला के बारे में कहा जाता है कि इस परिक्रमा मेला का अर्थ यह है कि अंतनिहिर्त भाव, संकल्प और इसी विश्वास के साथ पूर्ण होती है, पंचकोसी यात्रा. जो जीव के पांचो तत्वों को पवित्र करती है.

बक्सर: बिहार के बक्सर जिले की पहचान बन चुकी पांच दिवसीय पंचकोशी परिक्रमा मेला का समापन (Panchkoshi Parikrama Fair Complet In Buxar) आज लिट्टी चोखा महोत्सव के साथ संपन्न हो गया. 17 नवंबर से प्रारंभ पांच दिनों तक चलने वाला पंचकोशी परिक्रमा मेला का चरित्रवन में लिट्टी चोखा के भोग के साथ (Litti Chokha Festival in Buxar) समापन हुआ. ठंड होने के बावजूद भी पंचकोशी परिक्रमा मेला में आये श्रद्धालु और संत समाज पांच दिनों तक मेला के भक्तिमय माहौल से आनंदित दिखे. त्रिदंडी स्वामी गंगापुत्र ने बताया कि बक्सर के इस पंचकोशी परिक्रमा मेला के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब बताई गई है.

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पंचकोशी परिक्रमा मेला का समापन : बक्सर की पहचान इस मेले की सरकारी उपेक्षा होती रही है. परिक्रमा करने आये श्रद्धालुओं के लिए किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं की गई. बात पीने के पानी का हो या साफ-सफाई की हो या शौचालय की. यहां कोई व्यवस्था नहीं हुई थी. गौरतलब है कि पंचकोशी परिक्रमा मेला यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आये थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था.

बक्सर में राक्षसों का आतंक था : इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण किया था. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किये. इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली भगवान राम पहुंचे, जहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया और उत्तरायणी गंगा में स्नान कर पुआ-पकवान खाये.

नारद मुनि के आश्रम नदवां गए थे भगवान राम : यात्रा के दूसरे पड़ाव में भगवान राम नारद मुनि के आश्रम नदवां पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया. इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चूड़ा दही, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में खिचड़ी और पांचवें एवं अंतिम पड़ाव चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं. प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है.

पंचकोशी परिक्रमा यात्रा : पंचकोशी परिक्रमा यात्रा में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से बक्सर आते हैं. बता दें कि इस मेले के अंतिम दिन को लेकर मान्यता रही है कि, अंतिम दिन प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है, क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है जिसके रजकण में अनन्त यज्ञ किये गए हैं. जिस धरा पर यज्ञ रक्षा हेतु श्री राम लक्ष्मण के कदम चलें और उनके चरणों की पवित्रता उसमें समाहित हुई. मेला के बारे में कहा जाता है कि इस परिक्रमा मेला का अर्थ यह है कि अंतनिहिर्त भाव, संकल्प और इसी विश्वास के साथ पूर्ण होती है, पंचकोसी यात्रा. जो जीव के पांचो तत्वों को पवित्र करती है.

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