बक्सर: 1978 में भारत में महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल की गई थी. अब केंद्र ने इस उम्र को बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया है. 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से यह संकेत दिया था कि आने वाले समय में लड़कियों की शादी की उम्र (Marriage Of Girls From 18 To 21) संबंधी कोई कानून लाया जा सकता है. सरकार का दावा है कि इस कानून के आ जाने से लड़कियों के पोषण, हेल्थ, आर्थिक और एजुकेशनल स्थित में काफी सुधार आएगा. इसी मसले को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने बिहार के बक्सर जिले में स्थित महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय में जाकर छात्राओं और शिक्षकों के विचार जानने की कोशिश की.
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लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने को लेकर कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर छाया चौबे ने बताया कि केंद्र की मोदी सरकार का यह तीसरा सुधार है. पहला सुधार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ था तो दूसरा भ्रूण हत्या रोकने का था. उसी कड़ी में यह तीसरा है. इससे न केवल मातृ मृत्यु दर बल्कि शिशु मृत्यु दर में भी कमी आएगी. यदि शादी की उम्र (Marriage Age Of Girls) 21 साल हो जाती है, तो उनका ब्रेन मैच्योर हो जाएगा. जिससे वे बच्चों के हित में समाज के हित में कार्य कर सकेंगी.
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'नेपोलियन ने भी कहा था कि मुझे मजबूत राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षित माता चाहिए क्योंकि एक मां ही स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकती हैं. अगर आंकड़ों की बात करें, तो सामने आया है कि 10 में से 9 लड़कियों को ससुराल जाने के बाद आगे पढ़ने की अनुमति नहीं मिलती है. इनमे कुछ जद्दोजहद के बाद पढ़ भी लेती हैं, तो ससुराल और व्यक्तिगत जीवन दोनों से लड़ना पड़ता है. अगर 21 साल की उम्र में शादी होती है, तो निर्णय लेने के स्तर में अपने शिशु को पढ़ाने के लिए शिक्षा की दृष्टि से, जागरूकता की दृष्टि से आगे होंगी जो भविष्य में राष्ट्र के निर्माण में अच्छा योगदान देंगी.' -छाया चौबे, हिंदी प्रोफेसर
प्रोफेसर ने कहा कि यदि नकारात्मक की बात करें, तो आज भी 15 लाख से ज्यादा बाल विवाह होतें हैं. बिहार में भागलपुर सबसे अव्वल है. पश्चिम बंगाल, राजस्थान, कर्नाटक और बिहार में 18 से कम में शादियां सबसे ज्यादा होती है. कानून है रोकने का फिर भी शादी हो रही है. कानूनी रूप से प्रखर रूप से लागू नहीं है. जन जागरूकता की कमी है. देखा जाता है कि बीए प्रथम वर्ष में ही बच्चियों के गोद में बच्चा हो जाता है. ऐसी स्थिति में वे अपने जीवन का निर्णय नहीं ले पाती हैं. क्योंकि तब वे एक मां बन चुकी होती हैं. इन सभी को देखते हुए सरकार का यह कदम सराहनीय है.
'लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष हो जाने से पढ़ने के लिए पूरा समय मिलेगा. स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ठीक रहेगा. जिससे लड़कियां अपने भविष्य को बेहतर बना सकेंगी.' -सौम्या कुमारी, छात्रा
'विवाह की उम्र 18 से 21 करना निश्चित रूप लाभदायक सिद्ध होगा. अभी नहीं लेकिन आने कुछ सालों बाद इसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकता है.' -डॉ यशवंत कुमार, विभागाध्यक्ष , मनोविज्ञान
आपकों बता दें कि केन्द्र सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने के पीछे की मंशा है मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाना. यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 27 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल तक कि आयु में और 7 फीसदी की 15 साल तक कि उम्र में हो रही है. इसका सीधा असर कम उम्र में मां बनने और मां की प्रसव के दौरान मौत पर पड़ रहा है. इससे देश में मातृत्व मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो रही है. सरकार के इस आदेश के पीछे सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी अहम है.
कोर्ट का आदेश कहता है कि लड़कियों को वैवाहिक दुष्कर्म से बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध घोषित करना चाहिए. हालांकि कोर्ट ने शादी की उम्र पर फैसला लेने का निर्णय सरकार पर छोड़ दिया था. भारत सरकार लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु पर फिर से विचार कर रही है. सबसे पहले पीएम मोदी 15 अगस्त को सांकेतिक रूप से इसकी घोषणा भी किये थे. इस बदलाव के बारे में महिलाएं भी सोचती हैं कि ये बेहतर फैसला है. उनका कहना है कि 18 साल में लड़कियां घर-गृहस्थी संभालने लायक नहीं हो पाती. ये उम्र भविष्य बनाने और दुनियादारी सीखने की होती है न की गृहस्थी चलाने बिहार जैसे पिछड़े राज्य के लिए ये फैसला बेहद अहम हो सकता है. यहां पहले ही साक्षरता का अभाव है.
अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे में जिंदगी जीने को मजबूर हैं. इन हालातों में जागरुकता का भी इतना अभाव है कि लोग अपनी बेटियों की कम उम्र में शादी कर देने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को समझ ही नहीं पाते. मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि ये फैसला सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि देश की हर बेटी के लिए फायदेमंद होगा. हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि फैसला करना और उस फैसले को अमल में लाने में काफी अंतर है. इसके लिए सरकार को कुछ अहम कदम उठाने की जरुरत है, तभी ये फैसला कारगर होगा.
आंकड़ों की बात करें, तो बिहार में 1000 पुरुषों के अनुपात में 918 महिलाएं हैं. सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के अनुसार मातृ मृत्यु दर 16 अंको की गिरावट दर्ज की गई है. पहले प्रति 1 लाख गर्भवती महिलाओं में 165 महिलाओं की मौत हो जाती थी. यह आंकड़ा अब गिर कर 1 लाख गर्भवती महिलाओं में 149 पर पहुंच गया है. बिहार में महिलाओं के शादी की औसतन 21.7 वर्ष में होती है. यूपी में ये उम्र-सीमा 22.3 है. राज्य की शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत के बराबर है. प्रति हजार बच्चों में 32 शिशुओं की मौत हो जाती है. प्रजनन दर में बिहार सबसे आगे है. राज्य का प्रजनन प्रतिशत 3.2 है. आंकड़ों के आधार पर यकीनन ये कहना गलत नहीं होगा कि केंद्र सरकार के इस फैसले से देश में महिलाओं की मौजूदा स्थिति में सुधार तो होगा ही, जनसंख्या पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा. साथ ही शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर जैसे अभिशापों से भी बहुत हद तक निजात मिल सकेगी.
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