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बक्सर में 23 अप्रैल को विजय उत्सव का आयोजन, गृह मंत्री अमित शाह होंगे शामिल - बक्सर में 23 अप्रैल को विजय उत्सव

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Union Minister of State for Home Nityanand Rai) ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में बक्सर में 23 अप्रैल को विजय उत्सव (Vijay Utsav on 23rd April in Buxar) का आयोजन किया जाएगा. कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) भी शिरकत करेंगे.

आजादी का अमृत महोत्सव
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Published : Feb 22, 2022, 3:48 PM IST

बक्सर: देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है. इसी सिलसिले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Union Minister of State for Home Nityanand Rai) ने बिहार के बक्सर में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि देश की आजादी के लिए ऐसे लोगों को, जो कभी याद नहीं किए गए. जिनके समर्पण और बलिदान से आजादी की लड़ाई को बड़ी ताकत मिली थी, उन सभी गुमनाम शहीदों को याद किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: युवा नए उत्साह और अच्छे माहौल के साथ कदम बढ़ाएं, यह हम सब की जिम्मेवारी: विजय सिन्हा

नित्यानंद राय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे महापुरुषों को याद करते हुए एक बार फिर आत्मगौरव को पढ़ाने का संकल्प लिया है. उन्होंने कहा कि 1857 में आजादी की पहली लड़ाई बिहार की धरती पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी लड़ी थी. उनकी हुंकार से अंग्रेजी सत्ता हिल गई थी. बक्सर में 23 अप्रैल को विजय उत्सव (Vijay Utsav on 23rd April in Buxar) बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा. आजादी के 75 वर्ष में 75000 ध्वज लगेंगे. लाखों लोग जुटेंगे और उन वीरों को सम्मान देने का काम करेंगे. देश के गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शरीक होंगे.

बाबू कुंवर सिंह का जन्म 13 नवंबर 1777 को बिहार के शाहाबाद अब भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था. उनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से एक थे. उनकी माताजी का नाम पंचरत्न देवी था. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह थे. कहा जाता है कि 1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर विद्रोह का बिगुल फूंका था. मंगल पांडे की बहादुरी ने पूरे देश में प्रेरणा का काम किया.

बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी. मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी विद्रोह की आग भड़क उठी. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने अपने सेनापति मैकु सिंह और भारतीय सैनिकों का आरा से नेतृत्व किया. बताया जाता है कि 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों और स्थानीय लोगों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक अंग्रेजी कब्जा से मुक्त रहा.

जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया. बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को अपनी जन्म भूमि छोड़नी पड़ी. अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विद्रोह के शंख को गुंजायमान रखा.

ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी. यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी. अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता.' बाबू वीर कुंवर सिंह ने 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी. ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को इन्होंने पूरी तरह खदेड़ दिया. उस दिन बुरी तरह घायल होने पर भी इस बहादुर ने जगदीशपुर किले से "यूनियन जैक" नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया. वहां से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को इन्होंने वीरगति पाई. कुंवर सिंह की इस अप्रतिम वीरता को देश हमेशा याद करेगा.

ये भी पढ़ें: नालंदा में अमृत महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन, श्रवण कुमार ने कहा- महापुरुषों को याद करने का अवसर

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बक्सर: देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है. इसी सिलसिले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Union Minister of State for Home Nityanand Rai) ने बिहार के बक्सर में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि देश की आजादी के लिए ऐसे लोगों को, जो कभी याद नहीं किए गए. जिनके समर्पण और बलिदान से आजादी की लड़ाई को बड़ी ताकत मिली थी, उन सभी गुमनाम शहीदों को याद किया जा रहा है.

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नित्यानंद राय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे महापुरुषों को याद करते हुए एक बार फिर आत्मगौरव को पढ़ाने का संकल्प लिया है. उन्होंने कहा कि 1857 में आजादी की पहली लड़ाई बिहार की धरती पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी लड़ी थी. उनकी हुंकार से अंग्रेजी सत्ता हिल गई थी. बक्सर में 23 अप्रैल को विजय उत्सव (Vijay Utsav on 23rd April in Buxar) बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा. आजादी के 75 वर्ष में 75000 ध्वज लगेंगे. लाखों लोग जुटेंगे और उन वीरों को सम्मान देने का काम करेंगे. देश के गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शरीक होंगे.

बाबू कुंवर सिंह का जन्म 13 नवंबर 1777 को बिहार के शाहाबाद अब भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था. उनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से एक थे. उनकी माताजी का नाम पंचरत्न देवी था. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह थे. कहा जाता है कि 1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर विद्रोह का बिगुल फूंका था. मंगल पांडे की बहादुरी ने पूरे देश में प्रेरणा का काम किया.

बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी. मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी विद्रोह की आग भड़क उठी. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने अपने सेनापति मैकु सिंह और भारतीय सैनिकों का आरा से नेतृत्व किया. बताया जाता है कि 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों और स्थानीय लोगों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक अंग्रेजी कब्जा से मुक्त रहा.

जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया. बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को अपनी जन्म भूमि छोड़नी पड़ी. अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विद्रोह के शंख को गुंजायमान रखा.

ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी. यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी. अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता.' बाबू वीर कुंवर सिंह ने 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी. ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को इन्होंने पूरी तरह खदेड़ दिया. उस दिन बुरी तरह घायल होने पर भी इस बहादुर ने जगदीशपुर किले से "यूनियन जैक" नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया. वहां से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को इन्होंने वीरगति पाई. कुंवर सिंह की इस अप्रतिम वीरता को देश हमेशा याद करेगा.

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