बक्सर: रूस और यूक्रेन में जारी युद्ध (russia ukraine war) के चलते जो भारतीय स्टूडेंट्स वहां मेडिकल की पढ़ाई करने गये थे, उनकी जान पर बन आई. वहां से आ रहीं खबरों के चलते उन छात्रों के परिजन डरे हुए हैं. भारत सरकार यूक्रेन से अपने छात्रों को लाने के काम में जुटी है. अधिकांश विद्यार्थियों को वहां से निकला जा चुका है किंतु अभी भी हजारों भारतीय फंसे हुए हैं. इस बीच बक्सर नगर थाना क्षेत्र अंतर्गत सोहनी पट्टी के रहने वाले आशुतोष श्रीवास्तव यूक्रेन से अपने घर बक्सर (Buxar student returned from Ukraine) पहुंचे. इससे परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मिठाइयां बांटी गईं. आशुतोष 2017 से वहां पढ़ाई कर रहे थे. इस मौके पर ईटीवी भारत ने आशुतोष और उनके माता-पिता से बातचीत की.
आशुतोष ने बताया कि वहां बहुत ही गंभीर स्थिति है. कभी भी बमबारी हो जा रही है. बम की आवाज के साथ ही सुबह हो रही है. हम लोग 26 तारीख को वहां से चले थे. वहां से निकलने में भी बहुत खतरा है. कभी बस तो कभी पैदल हमलोग चलकर रोमानिया पहुंचे. फिर भारत सरकार की व्यवस्था से मुंबई पहुंचे. इसके बाद बिहार सरकार ने हमलोगों को घर पहुंचाया. आशुतोष ने कहा कि यूक्रेन की जनता या यूक्रेन के सैनिक हमारे बस पर लगे इंडियन फ्लैग को देखकर बहुत ही सहयोग करते थे. वे हमें आसानी से आगे जाने देते थे. भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एडवाजरी के बारे बताते हुए आशुतोष ने बताया कि यह देर से जारी हुई थी.
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सरकार द्वारा स्पष्ट नहीं कहा गया कि निकल ही जाना है. ऐच्छिक रूप में कहा गया था. हम स्टूडेंट्स थे, क्लासेज चल रहे थे इसलिए नहीं निकले. भारत सरकार द्वारा फ्लाइट की व्यवस्था प्रारंभ में कम थी. शुरू में केवल 2 फ्लाइट थी जबकि आने वालों की संख्या बहुत अधिक थी. इस मेडिकल के छात्र ने कहा कि वहां पढ़ाई कम खर्चीली है जबकि अपने देश में बहुत महंगी है. सरकार को यहीं पर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए. आशुतोष ने बताया कि अभी बहुत से छात्र वहां फंसे हुए हैं. उनको लाने के लिए सरकार को और ऐक्टिव होने की आवश्यकता है.
आशुतोष के पिता अनिल कुमार श्रीवास्तव ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि भारत सरकार के प्रयास से मेरा बेटा सकुशल लौटा है. यहां अधिक फीस और व्यवस्था नहीं होने के कारण ही हम जैसे अभिभावकों को अपने बच्चों को मेडिकल पढ़ने के लिए बाहर भेजना पड़ता है. अगर यहां व्यवस्था हो जाए तो हम क्यों भेजेंगे? सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए. वहीं, यूक्रेन में फंसे होने के कारण घबरायी आशुतोष की मां ने भी आज सुकून की सांस ली. उन्होंने यूक्रेन की सरकार, भारत सरकार और बिहार सरकार का धन्यवाद किया.
आपकों बता दें कि बिहार विधानसभा के बजट सत्र के दौरान निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस में कटौती का मामला उठा था. इसके जवाब में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले की मॉनिटरिंग करता है. उसके द्वारा गठित कमेटी बच्चों की फीस तय करती है. वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जिस तरह पता चला है कि बच्चे यूक्रेन जैसे देशों में पढ़ने जा रहे हैं, वैसे में हमें इस बारे में विचार करना होगा. जेडीयू विधायक डॉ. संजीव कुमार सहित कई विधायकों ने सदन में ये मामला उठाया. संजीव कुमार ने कहा कि फीस में कटौती और फीस निर्धारण कर सीएम नीतीश कुमार देश भर में मिशाल पेश करें. साथ ही सरकार की ओर से हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोला जाए. बीजेपी विधायक नीतीश मिश्रा ने पूछा कि बिहार में मेडिकल की कितनी सीटें हैं और कितने कॉलेज खोले जा रहे हैं.
इस सवाल के जवाब में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कहा कि फिलहाल बिहार में 1850 यूजीसी की सीटें हैं. आजादी के बाद पिछले 56 साल में सिर्फ 6 मेडिकल कालेज खुले, जबकि पिछले 16 साल में एनडीए की सरकार में 6 नए मेडिकल कालेज खोले गए गए हैं. उन्होंने बताया कि निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में 50 फीसदी छात्रों से सरकारी मेडिकल कालेजों के बराबर फीस लेने का प्रावधान किया गया है. यह अगले वर्ष से लागू होगा. कोई भी संस्था कैपिटेशन फीस नहीं वसूल सकती है.
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गौरतलब है कि यूक्रेन में छात्रों के मेडिकल की पढ़ाई को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सदन में कहा कि मेडिकल कॉलेज में पढ़ने के लिए बच्चे वहां जा रहे हैं, यह किसी को मालूम नहीं था. यह तो वास्तव में नेशनल लेवल पर सोचना होगा. उन्होंने कहा कि जो भी कम्पटीशन होता है, नेशनल स्तर से होता है. बाहर जाने के लिए कोई परीक्षा नहीं देनी होती है. सिर्फ बिहार के बच्चे पढ़ने नहीं गए हैं, अमीर राज्यों के बच्चे भी वहां पढ़ने गए हैं. हमलोगों को तो बहुत हाल में ये बात जानने को मिला कि इतने लोग बाहर चले जा रहे हैं तो सचमुच सोचना पड़ेगा. निश्चित रूप से विचार करना पड़ेगा और विचार करेंगे. ये मामला सिर्फ राज्य सरकार का नहीं है, सबको सोचना होगा.
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