बक्सर: सच ही कहा जाता है कि प्रतिभा अपना अवसर ढूंढ ही लेती है, मौका पाकर अपनी रंगत दिखाती ही हैं और अपने होने का एहसास करवा ही देती हैं. बक्सर की दिव्यांग महिला विनीता (Buxar Divyang women Vinita) अपनी कलाकृतियों से बक्सर, बिहार या भारत में ही नहीं बल्कि देश की सीमा के बाहर सात समंदर पार अमेरिका तक अपने हुनर की दस्तक देने लगी हैं.
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30 अगस्त 1982 को जन्मी विनीता की शिक्षा-दीक्षा मात्र तीसरी कक्षा तक ही हो पाई. विनीता का मन चित्रकला में खूब रमा. हालांकि, 2008 में मुफ्फसिल थाना क्षेत्र में गोविंदपुर के रहने वाले बलिराम राय से विवाह के बाद समय की कमी के कारण वो अपनी इस कला से दूर होती गईं. लेकिन, पिछले साल एक बार फिर विनीता को उनकी लगन चित्रकला के पास लाई और वो अपनी लगन और मेहनत की बदौलत पेंटिंग की दुनिया में एक मुकाम हासिल करने लगी हैं.
आलम यह है कि विनीता की बनाई पेंटिग्स अब अमेरिका तक जाने लगी हैं. मधुबनी पेंटिग्स से सुसज्जित मास्क के लिए कोविड काल में खूब ऑर्डर आए. मधुबनी पेंटिग्स वाले प्लेट्स की ऑनलाइन डिमांड देश के प्रत्येक हिस्सों से हो रही है. बेटी लावण्या ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर "कलाकारी विथ विनीता:डेफ आर्टिस्ट" पेज और यूट्यूब चैनल भी बनाया है.
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बक्सर के कमरपुर गांव की विनीता (Vinita of Kamarpur village of Buxar) अपने माता पिता की पहली संतान हैं. एक और छोटी बहन अमृता राय हैं जो अब पेशे से चिकित्सक हैं. विनीता राय दो बेटियों की मां हैं. बड़ी बेटी लावण्या 7वीं में है और छोटी बेटी समृद्धि 5वीं में पढ़ रही हैं. विनीता की मां बृज कुमारी राय ने बताया कि विनीता को बचपन से ही चित्रकारी का शौक रहा है. जब ये डेढ़ साल की थी तब से वो ना बोल सकती है और ना ही सुन सकती है. ऐसे में पूरे परिवार को बड़ी मायूसी हुई. कई जगह डॉक्टर को दिखाया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
लेकिन, कहा जाता है कि ईश्वर लेता है और बहुत कुछ देता भी है. बोलने और सुनने में असमर्थ विनीता का मन चित्रकला में खूब लगता था, जिसका ही नतीजा है कि परिजनों ने चित्रकला को ही विनीता के करियर के रूप में देखा. विनीता के हाथों में वो हुनर है कि मशीन भी फेल हो जाए. घर की रद्दी वस्तुओं से बेहद उपयोगी और खूबसूरत सामान बना डालती हैं. उंगलियों पर नियंत्रण इतना कि कैनवास पर चल रहा ब्रश थोड़ा सा भी इधर उधर नहीं जाता है.
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इंजीनियर पिता तारकेश्वर राय ने बेटी की अभिरुचि को भांपकर पेंटिंग के क्षेत्र में ही उन्हें आगे बढ़ाने का फैसला लिया, लेकिन उनका ट्रांसफर होता रहा, जिसके चलते बहुत परेशानी भी होती थी. विनीता की बेटी लावण्या बताती हैं कि उनकी मां को खूबसूरत और आकर्षक चित्रकला के लिए प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत भी किया जा चुका है.
विनीता आज के युवाओं और युवतियों के लिए एक प्रेरणा हैं. विनीता खासकर ऐसे लोगों के लिए उदाहरण है जो साधन के अभाव का रोना रोते हैं. जिनके अंदर भी कार्य करने की लगन और मेहनत करने का जज्बा होगा, उसके लिए न साधन का अभाव बाधक बन सकता है और ना ही दिव्यांगता आड़े आ सकती है. पति बलिराम राय और बेटी लावण्या ने विनीता की प्रतिभा को घर की चहारदीवारी से निकालकर दुनिया के सामने पहुंचाने के लिए ईटीवी भारत का भी धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि ईटीवी भारत ने ही पहली बार इनकी पेंटिग्स और कलाकृतियों को जाना, समझा और लोगों को बताने के लिए प्रकाशित किया.
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