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बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था: कागजी दावों की धरातल पर बदहाल तस्वीर, जिम्मेदार कौन?

बक्सर में गौरवशाली बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था (Bihar Poor Education System) की तस्वीर सामने आई है. जहां सरकारी उदासीनता के कारण सैकड़ों छात्र-छात्राएं जाड़े, गर्मी और बरसात में खुले आसमान के नीचे पढ़ते हैं. देखिए रिपोर्ट..

बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था
बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था
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Published : Jan 2, 2022, 7:23 AM IST

बक्सर: बिहार में सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था (Government Schools in Buxar) किसी से छुपी हुई नहीं है. सरकार हमेशा शिक्षा में सुधार के दावे करती नजर आती है. लेकिन इन दावों को आइना दिखा रहा है, बिहार के बक्सर के डुमरांव अंचल का प्राथमिक विद्यालय महरौरा, जहां मात्र दो कमरे हैं. दोनों कमरे जर्जर हो चुके हैं, जिसके कारण खुले आसमान के नीचे जाड़े, गर्मी, बरसात में कक्षाएं लगती हैं. इस प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे गरीब मजदूर परिवार से आते हैं. 2 कमरे वाले इस स्कूल में प्रतिदिन 300 बच्चे नियमित रूप से पढ़ने के लिए आते हैं. उसके बाद भी सरकारी उदासीनता के कारण 5 सालों में भी भवन बनकर तैयार नहीं हो सका है.

ये भी पढ़ें- बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था: घर से बोरा लाकर बैठते हैं बच्चे, सालों से खडंहर बना हुआ है स्कूल

मध्याह्न भोजन, साइकिल, स्कूल ड्रेस, छात्रवृत्ति सहित तमाम योजनाओं के माध्यम से बच्चों को विद्यालय की ओर खींचने की कोशिश तो हुई, लेकिन वो शिक्षा के असल उद्देश्य यानि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के मामले में पूरी तरह नाकाम रही है. इसका बड़ा कारण इस व्यवस्था की रीढ़ शिक्षकों की अनदेखी है.

सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कागजों पर भले ही लाख दावा कर ले, लेकिन इसकी जमीनी सच्चाई बेहद डरावनी है. अधिकांश सरकारी स्कूल सालों से शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं, तो कई स्कूलों से मास्टर साहब महीनों से गायब हैं. दो-चार शिक्षकों की तैनाती में अधिकांश डाटा संग्रह और भोजन बनवाने में व्यस्त रह जाते हैं. ऐसे में सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाले बच्चे अपने बेहतर भविष्य का निर्माण कैसे कर पाएंगे.

बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था

ये भी पढ़ें- 'यही है.. यही है..' कहकर बक्सर में अपराधियों ने युवक को मार दी गोली

किसी भी राष्ट्र का सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है. यदि देश या प्रदेश की शिक्षा नीति सुदृढ़ नहीं होगी, तो वहां की प्रतिभा दबकर रह जाएगी. निःसंदेह शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का अतीत गौरवशाली रहा है और बिहार की प्रतिभा ने देश दुनिया में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है. लेकिन, वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य में बिहार की शिक्षा व्यवस्था बदहाली का शिकार है.

बिहार के अधिकांश उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय और उच्च माध्यमिक विद्यालय शिक्षक विहीन हैं. बावजूद इसके प्रत्येक वर्ष वहां से सैकड़ों विद्यार्थी मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर रहे हैं. आश्चर्यजनक है कि मध्य विद्यालयों के शिक्षकों के भरोसे उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय चलाए जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- बक्सर में भी बदली स्कूलों की टाइमिंग, डीएम ने कहा- सुबह 9 बजे से संचालित होंगे विद्यालय

सरकारी विद्यालयों में नामांकित अधिकांश बच्चे आर्थिक रूप से पिछड़े, गरीब और वंचित समाज के होते हैं. अक्सर उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं. नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर, अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा सम्पन्न प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाई करते हैं. भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी. गौरतलब है कि बिहार का अतीत गौरवशाली रहा है. नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने प्राचीन काल में पूरे विश्व में बिहार का मान बढ़ाया, लेकिन आज इस बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षा एक कोने में सहमी और सिसकती दिख रही है.

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बक्सर: बिहार में सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था (Government Schools in Buxar) किसी से छुपी हुई नहीं है. सरकार हमेशा शिक्षा में सुधार के दावे करती नजर आती है. लेकिन इन दावों को आइना दिखा रहा है, बिहार के बक्सर के डुमरांव अंचल का प्राथमिक विद्यालय महरौरा, जहां मात्र दो कमरे हैं. दोनों कमरे जर्जर हो चुके हैं, जिसके कारण खुले आसमान के नीचे जाड़े, गर्मी, बरसात में कक्षाएं लगती हैं. इस प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे गरीब मजदूर परिवार से आते हैं. 2 कमरे वाले इस स्कूल में प्रतिदिन 300 बच्चे नियमित रूप से पढ़ने के लिए आते हैं. उसके बाद भी सरकारी उदासीनता के कारण 5 सालों में भी भवन बनकर तैयार नहीं हो सका है.

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मध्याह्न भोजन, साइकिल, स्कूल ड्रेस, छात्रवृत्ति सहित तमाम योजनाओं के माध्यम से बच्चों को विद्यालय की ओर खींचने की कोशिश तो हुई, लेकिन वो शिक्षा के असल उद्देश्य यानि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के मामले में पूरी तरह नाकाम रही है. इसका बड़ा कारण इस व्यवस्था की रीढ़ शिक्षकों की अनदेखी है.

सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का कागजों पर भले ही लाख दावा कर ले, लेकिन इसकी जमीनी सच्चाई बेहद डरावनी है. अधिकांश सरकारी स्कूल सालों से शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं, तो कई स्कूलों से मास्टर साहब महीनों से गायब हैं. दो-चार शिक्षकों की तैनाती में अधिकांश डाटा संग्रह और भोजन बनवाने में व्यस्त रह जाते हैं. ऐसे में सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाले बच्चे अपने बेहतर भविष्य का निर्माण कैसे कर पाएंगे.

बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था

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किसी भी राष्ट्र का सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है. यदि देश या प्रदेश की शिक्षा नीति सुदृढ़ नहीं होगी, तो वहां की प्रतिभा दबकर रह जाएगी. निःसंदेह शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का अतीत गौरवशाली रहा है और बिहार की प्रतिभा ने देश दुनिया में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है. लेकिन, वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य में बिहार की शिक्षा व्यवस्था बदहाली का शिकार है.

बिहार के अधिकांश उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय और उच्च माध्यमिक विद्यालय शिक्षक विहीन हैं. बावजूद इसके प्रत्येक वर्ष वहां से सैकड़ों विद्यार्थी मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर रहे हैं. आश्चर्यजनक है कि मध्य विद्यालयों के शिक्षकों के भरोसे उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय चलाए जा रहे हैं.

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सरकारी विद्यालयों में नामांकित अधिकांश बच्चे आर्थिक रूप से पिछड़े, गरीब और वंचित समाज के होते हैं. अक्सर उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं. नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर, अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा सम्पन्न प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाई करते हैं. भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी. गौरतलब है कि बिहार का अतीत गौरवशाली रहा है. नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने प्राचीन काल में पूरे विश्व में बिहार का मान बढ़ाया, लेकिन आज इस बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षा एक कोने में सहमी और सिसकती दिख रही है.

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