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Buxar News: '62 करोड़ की लागत से गोकुल जलाशय का होगा जीर्णोद्धार'- अश्विनी चौबे - ETV Bharat News

बक्सर में 35 किलोमीटर में फैले गोकुल जलाशय का 62 करोड़ की लागत से जीर्णोद्धार होगा. ब्रह्मपुर पहुंचे केन्द्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने विभागीय अधिकारियों के साथ जलाशय का निरीक्षण करने के बाद घोषणा की. वहीं ग्रामीणों ने कहा डीएम से लेकर विधायक और सांसद ने कई बार घोषणा कर चुनाव के बाद भूल जाते हैं. पढ़ें पूरी खबर..

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Published : Jun 8, 2023, 6:10 PM IST

गोकुल जलाशय के जीर्णोद्धार की घोषणा

बक्सर: केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे एक दिवसीय दौरे पर बक्सर पहुंचे. यहां सबसे पहले विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर उन्होंने ब्रह्मपुर के गंगा दियारा इलाके में गोकुल जलाशय के तट पर स्कूली बच्चों के संग पौधरोपण किया. साथ ही 62 करोड़ की लागत से इस गोकुल जलाशय का जीर्णोद्धार कराने की घोषणा की. इसको लेकर स्थानीय लोगों में खुशी के साथ मायूसी भी है. क्योंकि जब भी चुनाव आता है, नेता और अधिकारी इस गोकुल जलाशय को लेकर कई घोषणाएं करते हैं. लेकिन चुनाव बाद यह जुमला ही साबित होता है.

ये भी पढ़ें: जमुई में जल्द ही बरनार जलाशय योजना का काम होगा पूरा, लाखों किसानों को मिलेगा लाभ

62 करोड़ की लागत से होगा विकास: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर अपने संसदीय क्षेत्र ब्रह्मपर में पहुंचे केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पौधरोपण किया. इसके बाद इस जलाशय का निरीक्षण भी किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि इस जलाशय के जीर्णोद्धार के लिए बहुत बड़ा प्रोजेक्ट बन रहा है. 62 करोड़ रुपए की लागत से यह वेटलैंड पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा इस पर तेजी से काम चल रहा है.

"इस जलाशय के जीर्णोद्धार के लिए बहुत बड़ा प्रोजेक्ट बन रहा है. 62 करोड़ रुपए की लागत से यह वेटलैंड पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा इस पर तेजी से काम चल रहा है. यहां एक ईकोफ्रैंडली माहौल तैयार किया जाएगा. इसके लिए गोकुल जलाशय के आसपास ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण किये जा रहे हैं" - अश्विनी चौबे, केंद्रीय मंत्री

2021 में तत्कालीन डीएम ने भी की थी घोषणा: 2021 में तत्कालीन जिलाधिकारी अमन समीर ने इस जलाशय का निरीक्षण कर पर्यटन स्थल के रूप में इसे विकसित करने का संकल्प लिया था, लेकिन अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में इस जलाशय के जीर्णोद्धार के लिए एक ईंट तक नही वहां रखवाई गई. एक बार फिर केंद्रीय मंत्री ने 62 करोड़ की लागत से इसका जीर्णोद्धार कराने की घोषणा की है. ग्रामीण हरिप्रसाद ने बताया कि जब भी चुनाव आता है नेता, मंत्री, अधिकारी, विधायक ,सांसद आते हैं. और इस जलाशय के जीर्णोद्धार कराने की बात कहकर ग्रामीणों का वोट लेकर भूल जाते है.

35 किमी में फैला है जलाशय: चक्की प्रखंड से लेकर ब्रह्मपर प्रखण्ड के नैनीजोर तक 35 किमी में फैला यह जलाशय विदेशी पक्षियों के लिए आकर्षण का केंद्र है. दो दशक पूर्व इस विशालकाय जलाशय का महत्व गंगा नदी के समान ही था.ग्रामीणों की माने तो 1952- 53 में गंगा नदी अपनी धारा को मोड़कर यहां से लगभग 8 किलोमीटर उत्तर दिशा में जवही दियारा के उस पार चली गई और तब वह अपनी निशानी के तौर पर एक उप धारा छोड़ गई. इसे ही लोग आज गंगा नदी का भागड़ या गोकुल जलाशय के नाम से जानते हैं.

इलाके के किसानों के लिए है वरदान: गंगा नदी की धारा गायघाट, सपही, दल्लुर, चंद्रपुरा उधूरा, महुआर होते हुए नैनीजोर तक पहुंचती है. इस जलाशय से किसान खेतों में लहलहाती फसलों की सिंचाई करने के साथ ही, मछली मार कर अपने परिवार का भरण पोषण भी करते हैं. जलाशय के विस्तृत क्षेत्र में पशुओं के लिए पूरे वर्ष हारा चारा मिलता रहता है. इस क्षेत्र में निवास करने वाले नीलगाय व हिरणों की प्यास बुझाने और उन्हें आश्रय देने का यही एकमात्र जलाशय है, लेकिन जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उदासीनता के कारण इस जलाशय के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगा है.

दो दशक से उठ रही जीर्णोद्धार की मांग: ब्रह्मपुर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता गोकुल जलाशय का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही उसको पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने तथा उसमें मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र खोलने को लेकर पिछले दो दशक से संघर्ष करते आ रहे हैं. इसके लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से लेकर सीएम और पीएम तक को पत्र लिखकर गुहार लगाई. 2006 में इसे बिहार विधानसभा की याचिका समिति के सामने भी रखा गया. यह जलाशय दियारांचल क्षेत्र के मत्स्य पालकों एवं कृषकों के लिए वरदान साबित हो रहा था, जो आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहा है.

2008 में भी जलाशय का बना था प्राक्कलन: तत्कालीन विधायक व समिति के सदस्य प्रो. हृदय नारायण सिंह के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय टीम ने गोकुल जलाशय का निरीक्षण कर जलाशय के विकास के लिए संबंधित विभाग को अनुसंशा भी की थी. समिति की रिपोर्ट अनुशंसा के बाद 2008 में इस जलाशय के विकास के लिए 3 करोड़ 71 लाख का प्राक्कलन तैयार कर उसे निदेशक मत्स्य विभाग पटना व जिला प्रशासन को जिला मत्स्य पदाधिकारी द्वारा उपलब्ध कराया गया था, लेकिन 15 वर्षों के बाद भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

"जब भी चुनाव आता है नेता, मंत्री, अधिकारी, विधायक ,सांसद आते हैं. और इस जलाशय के जीर्णोद्धार कराने की बात कहकर ग्रामीणों का वोट लेकर भूल जाते है.चार साल बाद एक बार फिर मंत्री जी ने इस जलाशय का जीर्णोद्धार कराने की बात कही है, तो हमलोगों में फिर भरोसा जगा है" - हरिप्रसाद, ग्रामीण

गोकुल जलाशय के जीर्णोद्धार की घोषणा

बक्सर: केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे एक दिवसीय दौरे पर बक्सर पहुंचे. यहां सबसे पहले विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर उन्होंने ब्रह्मपुर के गंगा दियारा इलाके में गोकुल जलाशय के तट पर स्कूली बच्चों के संग पौधरोपण किया. साथ ही 62 करोड़ की लागत से इस गोकुल जलाशय का जीर्णोद्धार कराने की घोषणा की. इसको लेकर स्थानीय लोगों में खुशी के साथ मायूसी भी है. क्योंकि जब भी चुनाव आता है, नेता और अधिकारी इस गोकुल जलाशय को लेकर कई घोषणाएं करते हैं. लेकिन चुनाव बाद यह जुमला ही साबित होता है.

ये भी पढ़ें: जमुई में जल्द ही बरनार जलाशय योजना का काम होगा पूरा, लाखों किसानों को मिलेगा लाभ

62 करोड़ की लागत से होगा विकास: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर अपने संसदीय क्षेत्र ब्रह्मपर में पहुंचे केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पौधरोपण किया. इसके बाद इस जलाशय का निरीक्षण भी किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि इस जलाशय के जीर्णोद्धार के लिए बहुत बड़ा प्रोजेक्ट बन रहा है. 62 करोड़ रुपए की लागत से यह वेटलैंड पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा इस पर तेजी से काम चल रहा है.

"इस जलाशय के जीर्णोद्धार के लिए बहुत बड़ा प्रोजेक्ट बन रहा है. 62 करोड़ रुपए की लागत से यह वेटलैंड पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा इस पर तेजी से काम चल रहा है. यहां एक ईकोफ्रैंडली माहौल तैयार किया जाएगा. इसके लिए गोकुल जलाशय के आसपास ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण किये जा रहे हैं" - अश्विनी चौबे, केंद्रीय मंत्री

2021 में तत्कालीन डीएम ने भी की थी घोषणा: 2021 में तत्कालीन जिलाधिकारी अमन समीर ने इस जलाशय का निरीक्षण कर पर्यटन स्थल के रूप में इसे विकसित करने का संकल्प लिया था, लेकिन अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में इस जलाशय के जीर्णोद्धार के लिए एक ईंट तक नही वहां रखवाई गई. एक बार फिर केंद्रीय मंत्री ने 62 करोड़ की लागत से इसका जीर्णोद्धार कराने की घोषणा की है. ग्रामीण हरिप्रसाद ने बताया कि जब भी चुनाव आता है नेता, मंत्री, अधिकारी, विधायक ,सांसद आते हैं. और इस जलाशय के जीर्णोद्धार कराने की बात कहकर ग्रामीणों का वोट लेकर भूल जाते है.

35 किमी में फैला है जलाशय: चक्की प्रखंड से लेकर ब्रह्मपर प्रखण्ड के नैनीजोर तक 35 किमी में फैला यह जलाशय विदेशी पक्षियों के लिए आकर्षण का केंद्र है. दो दशक पूर्व इस विशालकाय जलाशय का महत्व गंगा नदी के समान ही था.ग्रामीणों की माने तो 1952- 53 में गंगा नदी अपनी धारा को मोड़कर यहां से लगभग 8 किलोमीटर उत्तर दिशा में जवही दियारा के उस पार चली गई और तब वह अपनी निशानी के तौर पर एक उप धारा छोड़ गई. इसे ही लोग आज गंगा नदी का भागड़ या गोकुल जलाशय के नाम से जानते हैं.

इलाके के किसानों के लिए है वरदान: गंगा नदी की धारा गायघाट, सपही, दल्लुर, चंद्रपुरा उधूरा, महुआर होते हुए नैनीजोर तक पहुंचती है. इस जलाशय से किसान खेतों में लहलहाती फसलों की सिंचाई करने के साथ ही, मछली मार कर अपने परिवार का भरण पोषण भी करते हैं. जलाशय के विस्तृत क्षेत्र में पशुओं के लिए पूरे वर्ष हारा चारा मिलता रहता है. इस क्षेत्र में निवास करने वाले नीलगाय व हिरणों की प्यास बुझाने और उन्हें आश्रय देने का यही एकमात्र जलाशय है, लेकिन जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उदासीनता के कारण इस जलाशय के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगा है.

दो दशक से उठ रही जीर्णोद्धार की मांग: ब्रह्मपुर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता गोकुल जलाशय का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही उसको पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने तथा उसमें मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र खोलने को लेकर पिछले दो दशक से संघर्ष करते आ रहे हैं. इसके लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से लेकर सीएम और पीएम तक को पत्र लिखकर गुहार लगाई. 2006 में इसे बिहार विधानसभा की याचिका समिति के सामने भी रखा गया. यह जलाशय दियारांचल क्षेत्र के मत्स्य पालकों एवं कृषकों के लिए वरदान साबित हो रहा था, जो आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहा है.

2008 में भी जलाशय का बना था प्राक्कलन: तत्कालीन विधायक व समिति के सदस्य प्रो. हृदय नारायण सिंह के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय टीम ने गोकुल जलाशय का निरीक्षण कर जलाशय के विकास के लिए संबंधित विभाग को अनुसंशा भी की थी. समिति की रिपोर्ट अनुशंसा के बाद 2008 में इस जलाशय के विकास के लिए 3 करोड़ 71 लाख का प्राक्कलन तैयार कर उसे निदेशक मत्स्य विभाग पटना व जिला प्रशासन को जिला मत्स्य पदाधिकारी द्वारा उपलब्ध कराया गया था, लेकिन 15 वर्षों के बाद भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

"जब भी चुनाव आता है नेता, मंत्री, अधिकारी, विधायक ,सांसद आते हैं. और इस जलाशय के जीर्णोद्धार कराने की बात कहकर ग्रामीणों का वोट लेकर भूल जाते है.चार साल बाद एक बार फिर मंत्री जी ने इस जलाशय का जीर्णोद्धार कराने की बात कही है, तो हमलोगों में फिर भरोसा जगा है" - हरिप्रसाद, ग्रामीण

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