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बक्सर : पोषण की अलख जगा रही आंगनबाड़ी सेविका शबनम, अब बन गईं पोषण चैंपियन - आंगनबाड़ी सेविका बनी पोषण चैंपियन

केसठ प्रखंड की आंगनबाड़ी सेविका शबनम पोषण चैम्पियन बन गई हैं. कोरोना काल में गृह भ्रमण कर गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को जागरूक कर रही हैं.

महिलाओं को कर रही जागरुक
महिलाओं को कर रही जागरुक
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Published : Mar 11, 2021, 3:28 PM IST

बक्सर: केसठ प्रखंड की आंगनबाड़ी सेविका शबनम पोषण की अलख जगा रही हैं. समुदाय को जागरूक करने में उनकी भूमिका ने उन्हें नई पहचान दी है. अब शबनम पोषण चैंपियन बन गई हैं. पोषण के साथ- साथ स्वच्छता के प्रति भी लोगों को जागरूक कर रही हैं.

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कोरोना महामारी के दौरान भी काम रखा जारी
कोई भी बदलाव एक दिन में संभव नहीं होता है. इसके लिए सकारात्मक सोच एवं सुनियोजित तरीके से निरंतर प्रयास करने की जरूरत होती है. कुछ ऐसी ही सोच रखने वाली केसठ पंचायत के स्थानीय गांव की आंगनबाड़ी कोड संख्या 77 की सेविका शबनम सोनी ने अपने पोषण क्षेत्र में बदलाव लाकर पोषण सेवाओं को सुचारू रखने में सफल हुई हैं. अपने क्षेत्र में पोषण की अलख जगाने के कारण उनकी एक अलग पहचान बनी है. बीते एक साल से कोरोना महामारी के कारण आंगनबाड़ी केन्द्र बंद थे, उसके बाद भी वह अपने पोषक क्षेत्र में पोषण गतिविधियों को सुचारू रखा. गृह भ्रमण के दौरान लाभार्थी महिलाओं, किशोरियों व बच्चों के संपूरक आहार, स्तनपान एवं अन्य महत्वपूर्ण पोषण गतिविधियों पर समुदाय को जागरूक करने में उनकी भूमिका सराहनीय रही है. इन्ही कारणों से शबनम के पोषक क्षेत्र में उनकी पहचान पोषण चैंपियन के रूप में बन चुकी है.

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महिलाओं को पोषण के प्रति कर रहीं जागरुक
महिलाओं को पोषण के प्रति कर रहीं जागरुक

पोषण क्षेत्र की बाधाओं को किया दूर
शबनम ने बताया की उन्हें 2015 में सेविका का दायित्व मिला. पूर्व में उनके पोषण क्षेत्र में में पौष्टिक आहार की उपलब्धता के बावजूद जानकारी के अभाव में महिलाएं इससे वंचित रह जाती थी. इसलिए उन्होंने इस पर अधिक ध्यान दिया. महिलाओं को फोटो और वीडियो के माध्यम से पौष्टिक आहार के संबंध में जानकारी दी और उन्हें जागरूक किया. धीरे-धीरे महिलाएं उनकी बातों को समझने और अमल करने लगीं. वह घर-घर जाकर महिलाओं को पोषण से संबंधित सही जानकारी दी. साथ ही, उन्हें खाने में हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे सहजन का पत्ता, धनिया का पत्ता, पालक की साग का सेवन और पीले नारंगी व फलों को शामिल करने पर जोर दिया. उन्होंने बताया की गर्भवती महिलाओं एवं धात्री महिलाओं को स्वयं व बच्चे के स्वस्थ रहने के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत होती है. पोषण की कमी से महिलाओं में खून की कमी हो जाती है. जिससे जन्म लेने वाले बच्चों में कुपोषण के शिकार होने की संभावना बढ़ जाती है.

ये भी पढ़े: गरीबी और गुमनामी में जी रहा अमर शहीद जुब्बा सहनी का परिवार, मजदूरी कर पाल रहा पेट

स्वच्छता के लिए भी किया जागरूक
शबनम के अनुसार उन्होंने लोगों को न केवल पोषण के लिए जागरूक किया, बल्कि महिलाओं, किशोरियों व बच्चों को स्वच्छता के प्रति भी जागरूक किया. वह गर्भवती एवं महिलाओं को समझाती हैं कि खाने से पहले और शौच के बाद विधिवत रूप से हाथ धोते रहें. पोषण पर सामुदायिक जागरूकता बढ़ाने के क्रम में वह साफ-सफाई पर विशेष जोर देती है. साफ़-सफाई पोषण व्यवहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कुपोषण से सुपोषण की तरफ बढ़ने में सहयोग करता है. गृह भ्रमण के दौरान साफ-सफाई की महत्ता को लेकर सभी को जागरूक किया. वहीं कोरोनाकाल में लोग स्वच्छता को लेकर पहले से अधिक सतर्क हुए. केसठ-चौगाईं परियोजना की सीडीपीओ ने बताया कोरोनाकाल में भी शबनम ने अपने पोषण क्षेत्र में गोदभराई व अन्नप्राशन जैसी गतिविधियां बंद नहीं की. शबनम की कार्यशैली काफी सराहनीय है.

बक्सर: केसठ प्रखंड की आंगनबाड़ी सेविका शबनम पोषण की अलख जगा रही हैं. समुदाय को जागरूक करने में उनकी भूमिका ने उन्हें नई पहचान दी है. अब शबनम पोषण चैंपियन बन गई हैं. पोषण के साथ- साथ स्वच्छता के प्रति भी लोगों को जागरूक कर रही हैं.

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कोरोना महामारी के दौरान भी काम रखा जारी
कोई भी बदलाव एक दिन में संभव नहीं होता है. इसके लिए सकारात्मक सोच एवं सुनियोजित तरीके से निरंतर प्रयास करने की जरूरत होती है. कुछ ऐसी ही सोच रखने वाली केसठ पंचायत के स्थानीय गांव की आंगनबाड़ी कोड संख्या 77 की सेविका शबनम सोनी ने अपने पोषण क्षेत्र में बदलाव लाकर पोषण सेवाओं को सुचारू रखने में सफल हुई हैं. अपने क्षेत्र में पोषण की अलख जगाने के कारण उनकी एक अलग पहचान बनी है. बीते एक साल से कोरोना महामारी के कारण आंगनबाड़ी केन्द्र बंद थे, उसके बाद भी वह अपने पोषक क्षेत्र में पोषण गतिविधियों को सुचारू रखा. गृह भ्रमण के दौरान लाभार्थी महिलाओं, किशोरियों व बच्चों के संपूरक आहार, स्तनपान एवं अन्य महत्वपूर्ण पोषण गतिविधियों पर समुदाय को जागरूक करने में उनकी भूमिका सराहनीय रही है. इन्ही कारणों से शबनम के पोषक क्षेत्र में उनकी पहचान पोषण चैंपियन के रूप में बन चुकी है.

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महिलाओं को पोषण के प्रति कर रहीं जागरुक
महिलाओं को पोषण के प्रति कर रहीं जागरुक

पोषण क्षेत्र की बाधाओं को किया दूर
शबनम ने बताया की उन्हें 2015 में सेविका का दायित्व मिला. पूर्व में उनके पोषण क्षेत्र में में पौष्टिक आहार की उपलब्धता के बावजूद जानकारी के अभाव में महिलाएं इससे वंचित रह जाती थी. इसलिए उन्होंने इस पर अधिक ध्यान दिया. महिलाओं को फोटो और वीडियो के माध्यम से पौष्टिक आहार के संबंध में जानकारी दी और उन्हें जागरूक किया. धीरे-धीरे महिलाएं उनकी बातों को समझने और अमल करने लगीं. वह घर-घर जाकर महिलाओं को पोषण से संबंधित सही जानकारी दी. साथ ही, उन्हें खाने में हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे सहजन का पत्ता, धनिया का पत्ता, पालक की साग का सेवन और पीले नारंगी व फलों को शामिल करने पर जोर दिया. उन्होंने बताया की गर्भवती महिलाओं एवं धात्री महिलाओं को स्वयं व बच्चे के स्वस्थ रहने के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत होती है. पोषण की कमी से महिलाओं में खून की कमी हो जाती है. जिससे जन्म लेने वाले बच्चों में कुपोषण के शिकार होने की संभावना बढ़ जाती है.

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स्वच्छता के लिए भी किया जागरूक
शबनम के अनुसार उन्होंने लोगों को न केवल पोषण के लिए जागरूक किया, बल्कि महिलाओं, किशोरियों व बच्चों को स्वच्छता के प्रति भी जागरूक किया. वह गर्भवती एवं महिलाओं को समझाती हैं कि खाने से पहले और शौच के बाद विधिवत रूप से हाथ धोते रहें. पोषण पर सामुदायिक जागरूकता बढ़ाने के क्रम में वह साफ-सफाई पर विशेष जोर देती है. साफ़-सफाई पोषण व्यवहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कुपोषण से सुपोषण की तरफ बढ़ने में सहयोग करता है. गृह भ्रमण के दौरान साफ-सफाई की महत्ता को लेकर सभी को जागरूक किया. वहीं कोरोनाकाल में लोग स्वच्छता को लेकर पहले से अधिक सतर्क हुए. केसठ-चौगाईं परियोजना की सीडीपीओ ने बताया कोरोनाकाल में भी शबनम ने अपने पोषण क्षेत्र में गोदभराई व अन्नप्राशन जैसी गतिविधियां बंद नहीं की. शबनम की कार्यशैली काफी सराहनीय है.

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