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जानें आखिर गया के 8 गांव के ग्रामीण खुद को औरंगाबाद में क्यों करना चाहते हैं शामिल? - देव प्रखंड

गया जिले के 8 गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. तीन तरफ से पहाड़ी से घिरे होने के कारण इन्हें अपने जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय और पंचायत मुख्यालय तक जाने के लिए सोचना पड़ता है.

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Published : Sep 2, 2020, 10:41 PM IST

औरंगाबादः जिले के देव प्रखंड से लगे गया जिले के डुमरिया प्रखंड के चकरबंधा पंचायत के बूढा बूढ़ी गांव समेत 8 गांव के ग्रामीण अपने गांव को औरंगाबाद जिले में शामिल कराना चाहते हैं. इसका कारण है आवागमन के साधन का न होना. यह गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. यहां आज तक जिले के कोई भी अधिकारी दौरा करने नहीं आये हैं. भले ही यह गांव कागज पर गया जिले के अंतर्गत आता हो पर भौगोलिक रूप से औरंगाबाद जिले से ही जुड़ा हुआ है.

8 गांव बदहाली पर बहा रहा आंसू
जिलें की सीमा से लगा गया जिले के 8 गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. तीन तरफ से पहाड़ी से घिरे होने के कारण इन्हें अपने जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय और पंचायत मुख्यालय तक जाने के लिए सोचना पड़ता है. पहाड़ों से घिरे इन गांव से 14 किलोमीटर से लेकर के 40 किलोमीटर तक पहाड़ों पर पैदल चलकर यह अपने जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय और पंचायत मुख्यालय को जाते हैं. यही नहीं ग्रामीण बताते हैं कि जब उन्हें राशन लेना होता है, तो भी यह 15 किलोमीटर की पहाड़ी रास्ते को पैदल पार करके राशन लेने जाते हैं. वहीं जिला में कुछ काम होता है तो यह गया एक दिन जाकर आते है. हरिहरगंज या शेरघाटी के रास्ते जाते हैं.

पेश है खास रिपोर्ट

प्रखंड मुख्यालय ग्रामीण जयनन्दन सिंह भोक्ता, रामदीप सिंह आदि बताते हैं कि उन्हें जब कभी डुमरिया स्थित प्रखंड मुख्यालय पर जाना होता है तो वे लोग शेरघाटी के रास्ते या फिर झारखंड के हरिहरगंज के रास्ते बस पकड़ कर प्रखंड मुख्यालय को जाते हैं. इस दौरान उन्हें दिन भर का समय लग जाता है जिस कारण अपने साधारण कार्य के लिए भी उन्हें 2 दिनों का समय देना पड़ता है.

गांव में नहीं हुआ नल जल योजना का काम
भोक्ता जनजाति खेती, पशुपालन और पत्तल बनाने का कार्य करते हैं. इनका मुख्य पेशा खेती करना और पशुपालन करना है. कुछ लोग पत्तल बनाने का भी कार्य करते हैं. स्थानीय निवासी देवनन्दन सिंह भोक्ता बताते हैं कि जीविकोपार्जन के लिए उनका समाज यही कार्य करता है. उनके गांव में अभी तक विकास का कोई कार्य नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि उनके गांव में एक ही हैंडपंप है. अभी तक नल जल योजना का काम नहीं हुआ है. पानी की काफी समस्या रहती है.

गांवों में पानी की समस्या
पहाड़ी की तलहटी में स्थानीय निवासी रामजी सिंह भोक्ता बताते हैं कि पहाड़ के इस पार तलहटी में 7 से 8 गांव हैं, जो पहाड़ी तलहटी में बसे हुए हैं. यह गांव भौगोलिक रूप से औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के पास है, जबकि वर्तमान में गया जिले के अंतर्गत डुमरिया प्रखंड में हैं. इधर बूढ़ाबूढ़ी, अरवन, नावा, बरवाडीह, अंकडी आदि 8 गांव है. ये सभी गांव एक ही पंचायत के अंतर्गत आते हैं. इन गांवों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनका पंचायत 15 किलोमीटर पहाड़ी के पार है. यहां के ग्रामीण बड़े ही परेशान हैं. वे अपने आपको औरंगाबाद जिले में शामिल करने की वर्षों से मांग करते रहे हैं.

औरंगाबादः जिले के देव प्रखंड से लगे गया जिले के डुमरिया प्रखंड के चकरबंधा पंचायत के बूढा बूढ़ी गांव समेत 8 गांव के ग्रामीण अपने गांव को औरंगाबाद जिले में शामिल कराना चाहते हैं. इसका कारण है आवागमन के साधन का न होना. यह गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. यहां आज तक जिले के कोई भी अधिकारी दौरा करने नहीं आये हैं. भले ही यह गांव कागज पर गया जिले के अंतर्गत आता हो पर भौगोलिक रूप से औरंगाबाद जिले से ही जुड़ा हुआ है.

8 गांव बदहाली पर बहा रहा आंसू
जिलें की सीमा से लगा गया जिले के 8 गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. तीन तरफ से पहाड़ी से घिरे होने के कारण इन्हें अपने जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय और पंचायत मुख्यालय तक जाने के लिए सोचना पड़ता है. पहाड़ों से घिरे इन गांव से 14 किलोमीटर से लेकर के 40 किलोमीटर तक पहाड़ों पर पैदल चलकर यह अपने जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय और पंचायत मुख्यालय को जाते हैं. यही नहीं ग्रामीण बताते हैं कि जब उन्हें राशन लेना होता है, तो भी यह 15 किलोमीटर की पहाड़ी रास्ते को पैदल पार करके राशन लेने जाते हैं. वहीं जिला में कुछ काम होता है तो यह गया एक दिन जाकर आते है. हरिहरगंज या शेरघाटी के रास्ते जाते हैं.

पेश है खास रिपोर्ट

प्रखंड मुख्यालय ग्रामीण जयनन्दन सिंह भोक्ता, रामदीप सिंह आदि बताते हैं कि उन्हें जब कभी डुमरिया स्थित प्रखंड मुख्यालय पर जाना होता है तो वे लोग शेरघाटी के रास्ते या फिर झारखंड के हरिहरगंज के रास्ते बस पकड़ कर प्रखंड मुख्यालय को जाते हैं. इस दौरान उन्हें दिन भर का समय लग जाता है जिस कारण अपने साधारण कार्य के लिए भी उन्हें 2 दिनों का समय देना पड़ता है.

गांव में नहीं हुआ नल जल योजना का काम
भोक्ता जनजाति खेती, पशुपालन और पत्तल बनाने का कार्य करते हैं. इनका मुख्य पेशा खेती करना और पशुपालन करना है. कुछ लोग पत्तल बनाने का भी कार्य करते हैं. स्थानीय निवासी देवनन्दन सिंह भोक्ता बताते हैं कि जीविकोपार्जन के लिए उनका समाज यही कार्य करता है. उनके गांव में अभी तक विकास का कोई कार्य नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि उनके गांव में एक ही हैंडपंप है. अभी तक नल जल योजना का काम नहीं हुआ है. पानी की काफी समस्या रहती है.

गांवों में पानी की समस्या
पहाड़ी की तलहटी में स्थानीय निवासी रामजी सिंह भोक्ता बताते हैं कि पहाड़ के इस पार तलहटी में 7 से 8 गांव हैं, जो पहाड़ी तलहटी में बसे हुए हैं. यह गांव भौगोलिक रूप से औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के पास है, जबकि वर्तमान में गया जिले के अंतर्गत डुमरिया प्रखंड में हैं. इधर बूढ़ाबूढ़ी, अरवन, नावा, बरवाडीह, अंकडी आदि 8 गांव है. ये सभी गांव एक ही पंचायत के अंतर्गत आते हैं. इन गांवों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनका पंचायत 15 किलोमीटर पहाड़ी के पार है. यहां के ग्रामीण बड़े ही परेशान हैं. वे अपने आपको औरंगाबाद जिले में शामिल करने की वर्षों से मांग करते रहे हैं.

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